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सूखा और बाढ़
सरकारें करती रहीं सूखे पर फैसले का इन्तजार
Posted on 25 Dec, 2015 03:30 PM केन्द्र और दिल्ली सरकार की टकराहट में एक महत्त्वपूर्ण खबर अखबारों के अन्दर के पृष्ठों में कहीं दबकर रह गई। यह खबर उन आठ सूखा प्रभावित राज्यों से सम्बन्धित थी, जहाँ पीड़ितों के परिवार में भोजन के अभाव में कुपोषण और भूखमरी का खतरा है।
सूखे की चपेट में आधा देश
Posted on 25 Dec, 2015 03:29 PMइस साल सामान्य से कम बारिश होने के कारण देश के 614 में से 302 जिले सूखे का संकट झेल रहे हैं। इससे पहले 2002 में देश को इससे भी अधिक सूखे को झेलना पड़ा था। तब कुल 383 जिले सूखे की चपेट में आये थे।
सूखे पर सर्वोच्च न्यायालय सख्त, माँगा राहत योजना का ब्यौरा
Posted on 25 Dec, 2015 12:27 PMसर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र व सूखाग्रस्त राज्य सरकारों से कहा है कि वे उसे जल्द-से-जल्द उन उपायों के बारे में बताएँ जो सूखा राहत के लिये अपनाए जा रहे हैं।
सूखा राहत राज बनाम स्वराज
Posted on 25 Dec, 2015 11:58 AMयह बात कई बार दोहराई जा चुकी है कि बाढ़ और सुखाड़ अब असामान्य नहीं, सामान्य क्रम है। बादल, कभी भी-कहीं भी बरसने से इनकार कर सकते हैं। बादल, कम समय में ढेर सारा बरसकर कभी किसी इलाके को डुबो भी सकते हैं। वे चाहें, तो रिमझिम फुहारों से आपको बाहर-भीतर सब तरफ तर भी कर सकते हैं; उनकी मर्जी।जब इंसान अपनी मर्जी का मालिक हो चला है, तो बादल तो हमेशा से ही आज़ाद और आवारा कहे जाते हैं। वे तो इसके लिये स्वतंत्र हैं ही। भारत सरकार के वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री ने जलवायु परिवर्तन के कारण भारतीय खेती पर आसन्न, इस नई तरह के खतरे को लेकर हाल ही में चिन्ता व्यक्त की है।
लब्बोलुआब यह है कि मौसमी अनिश्चितता आगे भी बनी रहेगी; फिलहाल यह सुनिश्चित है। यह भी सुनिश्चित है कि फसल चाहे रबी की हो या खरीफ की; बिन बरसे बदरा की वजह से सूखे का सामना किसी को भी करना पड़ सकता है। यदि यह सब कुछ सुनिश्चित है, तो फिर सूखा राहत की हमारी योजना और तैयारी असल व्यवहार में सुनिश्चित क्यों नहीं?
चेन्नई बाढ़ त्रासदी से मिले सबक के बाद करें क्या
Posted on 24 Dec, 2015 04:51 PMबाढ़ ने दो हफ्ते तक चेन्नई को दहशत में बनाए रखा। इस आपदा में 200 से ज्यादा लोगों की मौत और आठ से दस हजार करोड़ के नुकसान के कारण राजनेताओं और सम्बन्धित सरकारी विभागों की चिन्ता स्वाभाविक थी। उनकी चिन्ता के प्रकार और उनकी चिन्ता की तीव्रता की जानकारी मीडिया लगातार देता रहा। यहाँ उसे दोहराने की जरूरत नहीं है।ज्यादातर पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जो पिछले एक डेढ़ साल से कुछ चुप से थे उन्हें भी अपनी ज़िम्मेदारी के कारण मुखर होना पड़ा। पूरी गम्भीरता से इतना सब कुछ होने के बाद भी इस हादसे या कुदरती आफ़त के तर्कपूर्ण कारणों या आगे से बचाव या रोकथाम के उपायों पर सुझाव निकलकर अभी भी आ नहीं पाये।
हो सकता है कि ऐसा इसलिये हुआ हो क्योंकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अकादमिक और व्यावहारिक विद्वानों को आगे बैठाकर उनसे बात करने का चलन अभी शुरू नहीं हो पाया है।
चेन्नई की तबाही के पीछे का सच
Posted on 22 Dec, 2015 11:22 AMचेन्नई पिछले दिनों आई भीषण बाढ़ की विभीषिका से धीरे-धीरे उबर रहा है। इसमें दो राय नहीं है कि चेन्नई ने इस बार जैसी बाढ़ का सामना किया, वैसी बाढ़ पिछले 100 सालों में चेन्नई में नहीं आई। इस बाढ़ ने पिछले 100 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया। इस बाढ़ से चेन्नई में तबाही का जो मंजर देखने को मिला, वह अभूतपूर्व था।
ड्रेनज सिस्टम बिगड़ा तो चेन्नई में आई बाढ़
Posted on 21 Dec, 2015 10:38 AMचेन्नई सहित कई ऐसे शहर हैं जो पानी की कमी और बाढ़ की समस्या का सामना कर सकते हैं। दोनों सम