ड्रेनज सिस्टम बिगड़ा तो चेन्नई में आई बाढ़


चेन्नई सहित कई ऐसे शहर हैं जो पानी की कमी और बाढ़ की समस्या का सामना कर सकते हैं। दोनों समस्याएँ अनियंत्रित निर्माण जहाँ पानी की खराब निकासी और बन्द प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम से उपज सकती है। सुष्मिता सेन गुप्ता, सीएसई की जल टीम के कार्यक्रम की उपप्रबन्धक का कहना है कि चेन्नई में पीने योग्य पानी की समस्या है। जिसके चलते यहाँ समुद्र के जल को पीने योग्य बनाया जाता है।

चेन्नई सहित कई ऐसे शहर हैं जो पानी की कमी और बाढ़ की समस्या का सामना कर सकते हैं। दोनों समस्याएँ अनियंत्रित निर्माण जहाँ पानी की खराब निकासी और बन्द प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम से उपज सकती है। सुष्मिता सेन गुप्ता, सीएसई की जल टीम के कार्यक्रम की उपप्रबन्धक का कहना है कि चेन्नई में पीने योग्य पानी की समस्या है। जिसके चलते यहाँ समुद्र के जल को पीने योग्य बनाया जाता है। नई दिल्ली : एक तरफ जहाँ दुनिया में बदलते जलवायु पर चर्चा हो रही है, वहीं चेन्नई में इसका साफ प्रभाव दिखाई दे रहा है। मौसम में लगातार हो रहे बदलाव से भारतीय उप-महाद्वीप में ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही हैं। चेन्नई के सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने इस बाढ़ का दोष यहाँ के प्राकृतिक जल के निस्तारण और ड्रेनेज सिस्टम की ख़ामियों को बताया है। सीएसई महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि हमने कई बार दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, श्रीनगर आदि शहरों को पहले से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति आगाह किया है। पर जल निकायों ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। चेन्नई के आसपास के झीलों में शहर के नालों से ही इतनी मात्रा में पानी आ जाता है। जिससे ये झीलें पानी से लबालब भरी रहती हैं। जिससे इसके बहाव में रुकावट आ जाती है।

सीएसई की मदद से प्रकाशित होने वाली पाक्षिक पत्रिका ‘डाउन टू अर्थ’ में चेन्नई के विनाश की सूचना पहले ही दे दी थी। जुलाई 2014 में, नारायण ने चेन्नई में एक इमारत के ढहने पर लेख प्रकाशित किया था। ये इमारत पोरुर झील पर बनाई गई थी। उन्होंने लिखा था कि जल बोर्ड का काम शहरों में लोगों तक पानी पहुँचाना और बाढ़ का प्रबन्धन करना है। अब स्वाभाविक सवाल बनता है कि ऐसी दलदली भूमि पर लोगों को निर्माण की अनुमति कैसे दी गई थी, इसका सही जवाब नहीं मिलेगा। ये दलदली जमीनें नगर निगम में दर्ज हैं, तो इसकी जानकारी किसी को क्यों नहीं है। योजनाकारों ने ज़मीन तो ले ली, लेकिन इन लालची बिल्डरों ने पानी के प्रबन्धन से खिलवाड़ कर दिया।

चेन्नई सहित कई ऐसे शहर हैं जो पानी की कमी और बाढ़ की समस्या का सामना कर सकते हैं। दोनों समस्याएँ अनियंत्रित निर्माण जहाँ पानी की खराब निकासी और बन्द प्राकृतिक ड्रेनेज सिस्टम से उपज सकती है। सुष्मिता सेन गुप्ता, सीएसई की जल टीम के कार्यक्रम की उपप्रबन्धक का कहना है कि चेन्नई में पीने योग्य पानी की समस्या है। जिसके चलते यहाँ समुद्र के जल को पीने योग्य बनाया जाता है। जिसमें बहुत ज्यादा लागत आती है।सीएसई के शोध के मुताबिक चेन्नई में 1980 के दशक में 600 से अधिक झीलें थीं, लेकिन 2008 में प्रकाशित एक मास्टर प्लान में इन झीलों पर चिन्ता जाहिर की गई। राज्य के जल संसाधन विभाग के मुताबिक, 19 प्रमुख झीलों का क्षेत्रफल 1980 दशक में 1,130 हेक्टेयर था। जो 2000 में घटकर 645 हेक्टेयर ही बचा है। कुछ जगह ये झीलें नालों में तब्दील हो गईं हैं।

विश्लेषण में ये भी पता चलता है कि तूफानी जल नालियों में भरा हुआ है, जिसे तत्काल निकाले जाने की जरूरत है। चेन्नई में 855 किमी शहरी सड़कों और 2847 किमी ग्रामीण सड़कों पर तूफान का पानी भरा हुआ है। इस प्रकार कई दिनों की बारिश ने पूरे शहर में तबाही मचा रखी है।

हालांकि चेन्नई में मानव-निर्मित जल निकासी व्यवस्था से अच्छी प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था है। सीएसई विश्लेषण से पता चलता है कि प्राकृतिक नहर और नालियाँ सीधे चेन्नई शहर की झीलों और अड्यार और कुवम नदियों से जुड़ी हुई हैं। कुवम नदी में करीब 75 टैंकों का गन्दा पानी छोड़ा जाता है जो चेन्नई महानगर से निकलता है। वहीं अड्यार नदी में करीब 450 टैंकों का पानी आता है और साथ ही चेमबराम्बक्काम टैंक का पानी यहीं आता है जो इसके क्षेत्र में नहीं आता है।चेन्नई में बारिश ने 100 साल का रिकॉर्ड (सिर्फ 24 घंटे में 374 मिमी) तोड़ दिया है। नवम्बर में, शहर में 1218 मिमी बारिश का पानी आ गया है जो औसत पानी 407 मिमी से करीब तीन गुना ज्यादा है।

वैज्ञानिक अनुसंधान ने पहले ही जलवायु में भयानक बदलाव की आशंका को जाहिर कर दिया था। आईपीसीसी की 5वीं रिपोर्ट में अत्यधिक वर्षा का आकलन स्पष्ट रूप से कर दिया था और साथ ही भविष्य में इसके बढ़ने की आशंका है।

जर्मनी की पाट्सडैम जलवायु संस्थान और अनुसन्धान केन्द्र ने अपने 2015 के शोध में बताया है कि बीते 30 सालों में जो वर्षा बढ़ी है उसका एक कारण जलवायु परिर्वतन भी है, आने वाले समय में इसकी वजह से 12 फीसदी बारिश बढ़ सकती है।

पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबन्धीय मौसम संस्थान (आईआईटीएम) के साल 2006 में एक अध्ययन के मुताबिक 1950 से 2000 के बीच भारत में बारिश बढ़ी है।

सीएसई के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ सवालिया अन्दाज में कहते हैं कि हालाँकि चेन्नई में आई तबाही का विस्तार से अध्ययन करना जरूरी है। मौजूदा वैज्ञानिकों को चेन्नई में आई तबाही और जलवायु परिवर्तन के बीच और अधिक लिंक का पता लगाने की जरूरत है।

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