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नदियां
सभ्यता की जननी हैं नदियाँ
Posted on 17 Sep, 2015 03:34 PMविश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
पानी का चंचल रूप है नदी। यह अपने कछार में बसे लोगों की जीवनरेखा है। नदी के कारण कृषि सम्भव हुआ। जो शिकारी था, वह किसान बन गया। उसे शिकार की भागदौड़ से मुक्ति मिली। वह एक जगह घर बसा कर कला, धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और साहित्य की ओर अग्रसर हो सका। हजारों वर्षों से मनुष्य नदी की ओर खिंचता चला आया है।
संस्कृतियों का जन्म नदियों की कोख से हुआ है। नदी हमारी आत्मा को तृप्त करती है। नदी हमारी चेतना का प्रवाह भी है।
इन शास्त्रीय उल्लेखों के अलावा नदियों के बारे में अनेक साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ भी मिलती हैं। जैसे नदियाँ राष्ट्रों की माताएँ हैं और पर्वत पिता। पिता निष्चेष्ट, निर्बन्ध और चिन्तामुक्त निर्द्वन्द्व पुरुष है तो नदियाँ सचेष्ट, गतिशील-मुक्तिदात्री एवं रसवती सरस्वती हैं। शून्य में स्वच्छन्द विचरण करने वाले मेघ जब क्षितिज की शय्या पर हलचल मचाकर रिक्त हो जाते हैं तब माता पृथ्वी उस तेजोदीप्त जीवन-पुष्प को अपनी सरितन्तुओं द्वारा धारण करती है।
![river](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/river_0_35.jpg?itok=Tt59f8Ck)
एक जीवन रेखा है ‘कमल नदी’
Posted on 17 Sep, 2015 12:36 PMविश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के पुरोला विकासखण्ड में बहने वाली कमल नदी का अपना अलग ही महत्त्व है। स्थानीय लोग इस नदी को ‘कमोल्ड’ नाम से जानते हैं। कमल नदी यहाँ के लोगों की जीवनरेखा है।
![Kamal river](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/Kamal%20river_3.jpg?itok=0VXK5voS)
सभ्यता की वाहक है नदी
Posted on 17 Sep, 2015 09:51 AMविश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष
नदी और समाज के बीच कई हजारों साल पुराना मजबूत और आत्मीय किस्म का रिश्ता रहा है। अब तक का इतिहास देखें तो दुनिया की तमाम सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही पली–बढ़ी और अतिश्योक्ति नहीं होगी कि नदियों के कारण ही सैकड़ों सालों तक उनका अपना अस्तित्व भी बना रहा।
![river](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/river_9_10.jpg?itok=Rc5sH_8u)
नदियों का संरक्षण
Posted on 10 Sep, 2015 01:13 PMदेश की चौदह नदियों में से अधिकांश पिछले कुछ वर्षां के दौरान मानव गतिविधियों में हुई वृद्धि एवं
क्षिप्रा-नर्मदा जोड़-तोड़
Posted on 10 Sep, 2015 12:54 PMउज्जैन में क्षिप्रा नदी ने अपने किनारों को तोड़ कर सब मन्दिरों, घाटों, हाट-बाजारों और गली-मोहल्लों में चक्कर लगा कर एक बार फिर यह बताने, समझाने की कोशिश की है कि नदियों को जीवित करने के लिये उनमें कहीं और से पानी लाकर डालना ठीक नहीं है। ऐसी सूखी मानी गई नदी पूरे शहर-गाँवों को डुबो सकती है। नदी, वर्षा, तालाब और भूजल का यह विचित्र खेल समझा रहे हैं श्री विनायक परिहार।![. .](https://farm8.staticflickr.com/7472/16110175816_cef08a6171_z.jpg)
लेकिन इस पर न तो कोई आम बहस होने दी गई और न सम्बन्धित लोगों, जन संगठनों या स्वतंत्र विशेषज्ञों से कोई राय ही ली गई है। वैसे तो नदी जोड़ो परियोजना कागज और भाषणों में सम्मोहक लगती है लेकिन इस परियोजना के दूसरे पहलुओं पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जब तक यह कागज और जुबान पर है, तभी तक अच्छी है।
केन-बेतवा से होगी नदियों के जोड़ने की परियोजना की शुरुआत
Posted on 31 Aug, 2015 10:23 AMनई दिल्ली, 30 अगस्त (भाषा)। कृत्रिम रूप से नदियों को जोड़ने के महाप्रयोग के तहत केन और बेतवा को जोड़ने की परियोजना को जल संसाधन व नदी विकास मंत्रालय दिसम्बर तक शुरू करना चाहता है। लेकिन मध्य प्रदेश में पर्यावरण व वन्य जीव मंजूरी अभी तक नहीं मिलने से इसमें देरी होने की आशंका है।![](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/16110175816_cef08a6171_z_15.jpg?itok=lCcc5eHd)
कागजों पर बने चेकडैम, करोड़ों का हुआ भुगतान
Posted on 28 Aug, 2015 03:40 PMवर्ष 2009-10 में केन्द्र सरकार ने बुंदेलखण्ड क्षेत्र के उ.प्र. तथा म.प्र.
![check dam](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/check%20dam_1_3.jpg?itok=zIsOocdD)