शहरी सभ्यता से नदियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। भारत में गंगा एवं यमुना नदी की उपयोगिता को देखते हुए इसे माँ की संज्ञा दी गई है। गंगा-यमुना को यदि अलग कर दिया जाए तो उत्तर भारत की कृषि और संस्कृति निष्प्राण हो जाएगी। करोड़ों लोगों के जीवन और आस्था की प्रतीक गंगा एवं यमुना इस समय प्रदूषण से जूझ रही है। केन्द्र सरकार गंगा एवं यमुना की सफाई के लिए दशकों से योजनाएँ चला रही है। हजारों करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। देश में इस समय नदियों को साफ एवं पुनर्जीवित करने का अभियान चल रहा है। गंगा की सफाई के लिए ‘नमामि गंगे’ योजना शुरू की गई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि वर्तमान में गंगा की सहायक नदी यमुना की क्या दशा है।
यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने और इलाहाबाद के गंगा में मिलने के बीच यमुना नदी की कुल लम्बाई 1367 किलोमीटर है। लेकिन यमुना को गन्दा करने में सबसे अधिक योगदान दिल्ली का है। दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज तक यमुना की लम्बाई 22 किलोमीटर है। लेकिन यमुना की गन्दगी का 79 फीसदी हिस्सा दिल्ली के खाते में दर्ज है। दिल्ली को यमुना से लगभग पाँच फीसदी पानी मिलता है। दिल्ली में यमुना को देखने से यह आभास ही नहीं होता कि यह नदी भी है। दिल्ली में यह दिनोंदिन सिमटती जा रही है। दिल्ली यमुना में केवल गन्दगी ही नहीं डाल रही है बल्कि तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करके यमुना बैंक मेट्रो डिपो, अक्षरधाम मन्दिर, मिलेनियम बस डिपो, कॉमनवेल्थ गाँव सहित हजारों झुग्गी-झोपड़ियाँ भी बन गई है।
ऐसा नहीं है कि यमुना के सफाई को लेकर चिन्ता नहीं की जा रही है। पिछले दो दशकों में यमुना की सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रुपए बहाए जा चुके हैं, लेकिन यमुना में गन्दगी घटने के बजाय और बढ़ी है। यमुना की सफाई के नाम पर करीब 5600 करोड़ रुपए के नए प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। लेकिन परिणाम बहुत संतोषजनक नहीं है। यमुना की गन्दगी दिल्ली की आबादी बढ़ने के साथ-साथ बढ़ रही है। केन्द्र और दिल्ली सरकार कभी यमुना को टेम्स नदी जैसी खूबसूरत बनाने के सपने दिखाती हैं तो कभी इसको प्राकृतिक रूप में लाने की योजनाएँ बनाती हैं।
यमुना में प्रदूषण की चर्चा नब्बे के दशक से ही अखबारों की सुर्खियाँ बन रही है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं वकील एमसी. मेहता ने यमुना में भारी प्रदूषण को देखते हुए 1985 में उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। चार साल बाद यानी 1989 में उस याचिका पर फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यमुना नदी को साफ करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद यमुना की सफाई के लिए निर्देश और योजनाओं की कमी नहीं हुई। फिर भी यमुना साफ होने का नाम नहीं ले रही है।
यमुना में गन्दगी की कहानी वजीराबाद बैराज के बाद शुरू होकर ओखला बैराज तक जाती है। इस बीच यमुना में दिल्ली के 22 नाले गिरते हैं। जिसमें नजफगढ़, शाहदरा और तुगलकाबाद नाला नदी को सबसे ज्यादा गन्दा करते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने यमुना प्रवाह क्षेत्र को भौगोलिक व पारिस्थितिकी के आधार पर पाँच भागों में बाँटा है। पहला हिस्सा यमुनोत्री से लेकर ताजेवाला तक है जो 172 किलोमीटर लम्बा है। यमुना की शुरुआत और इस क्षेत्र में कम औद्योगिक इकाइयों के होने के कारण यह हिस्सा स्वच्छ है। ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक का दूसरा हिस्सा 224 किमी लम्बा है। हरियाणा के औद्योगिक एवं कृषि अपशिष्ट के यमुना नदी में गिरने से इस हिस्से से प्रदूषण की शुरुआत हो जाती है।
वजीराबाद से ओखला के बीच यमुना का प्रवाह 22 किमी है और यही हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषित है। चौथे चरण में यमुना की लम्बाई 490 किमी है जो ओखला से चम्बल तक जाती है। इस हिस्से में दिल्ली की गन्दगी का साम्राज्य स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। आखिरी हिस्सा 468 किमी लम्बा है जो चम्बल से इलाहाबाद गंगा संगम तक जाती है। यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य जरिया शहरों के नाले हैं। एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली सहित हरियाणा के यमुनानगर, जगाधरी, करनाल, पानीपत, सोनीपत, गुड़गाँव, फरीदाबाद, पलवल, उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, वृंदावन, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा शहरों का गन्दा पानी यमुना में बेरोकटोक जा रहा है।
यमुना की सफाई के लिए कार्य योजना सरकार ने काफी पहले बनाई थी। पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में लागू हुआ था। जिस पर करीब 680 करोड़ रुपए खर्च हुए। फिर 2004 में दूसरा प्लान बना। इसकी लागत 624 करोड़ रुपए तय की गई। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना की सफाई पर दिल्ली जल बोर्ड ने 1998-99 में 285 करोड़ रुपए और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (डीएसआईडीसी) ने 147 करोड़ रुपए अलग खर्च कर दिए। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इक्कीस शहरों में अब तक यमुना की सफाई पर 276 योजनाएँ क्रियान्वित की जा चुकी है। जिनके माध्यम से 75325 लाख लीटर सीवर के गन्दे पानी के शोधन की क्षमता सृजित किए जाने का सरकारी दावा है। लेकिन ऐसे आधे-अधूरे प्रयासों से न यमुना की गत सुधरने वाली है और न इस प्राकृतिक धरोहर को बर्बाद होने से रोका जा सकता है।
करोड़ों रुपए की योजना के बाद वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर हिस्से में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। यह प्रदूषण इसके बावजूद बढ़ रहा है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 21 शहरों में यमुना एक्शन प्लान के तहत सीवरेज और सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान बनाए जा रहे हैं। यमुना की सफाई के लिए शुरू में उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार को गन्दा जल परिशोधन के 15 अतिरिक्त संयन्त्र और दिल्ली के 28 मान्यता प्राप्त औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 16 संयुक्त कचरा संशोधन संयन्त्र स्थापित करने के निर्देश दिए गए। पहले इन औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण रोकने के लिए न कोई संयन्त्र था और न कोई अन्य व्यवस्था। 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के पहले यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड ने 1900 करोड़ रुपए की लागत से इंटरसेप्टर एंड डायवर्जन की योजना बनाई। इस योजना के तहत यमुना में गिरने वाले नजफगढ़, शाहदरा और सप्लीमेंटरी ड्रेनों के एक ओर 50 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन बिछाई जानी थी, ताकि गन्दा पानी इन नालों में न गिरे और यमुना में नालों की गन्दगी ना जाए। योजना में नालों के दूसरी ओर के छोटे नालों का पानी नाले के नीचे से ले जाकर पाइप लाइन में जोड़ दिया जाएगा। पाइप लाइन के गन्दे पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाकर प्लांट में पानी साफ करके नाले में डालने की योजना बनी। जिससे नालों का गन्दा पानी यमुना में न जाए। पहले चरण में नजफगढ़ और सप्लीमेंटरी ड्रेन को लिया गया। लेकिन यह योजना अभी तक पूरी नहीं हो सकी।
यमुना के किनारे बसे राज्य और शहरों की बात की जाए तो आज भी वे नदी की सफाई को लेकर संजीदा नहीं है। हरियाणा जहाँ अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली और उत्तर प्रदेश अपने गन्दे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी यमुना में गिराने से नहीं हिचक रहे हैं। शहरों के गन्दे नाले गिरने के अलावा यमुना में कम पानी होने से भी प्रदूषण की बात कही जाती है। जो एक तरह से सत्य भी है।
गौरतलब है कि हरियाणा द्वारा यमुना का पानी रोकने का मामला समय-समय पर सुर्खियाँ बनती रही है। जिससे यमुना का प्रवाह रूक जाता है। 1994 में यमुना पानी के बँटवारे पर एक समझौता हुआ था। समझौते के मुताबिक दिल्ली को हरियाणा से पेयजल की जरूरत के लिए यमुना का पानी मिलना तय हुआ था। बदले में दिल्ली से उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए पानी मिलना था। मोटे तौर पर दिल्ली में यमुना का पाट डेढ़ से तीन किलोमीटर तक चौड़ा है। दिल्ली में इसका कुल दायरा 97 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें करीब सत्रह वर्ग किलोमीटर पानी में है, जबकि अस्सी वर्ग किलोमीटर सूखा पाट। करीब पचास किलोमीटर लम्बी यमुना में वजीराबाद बैराज तक पानी साफ दिखता है। लेकिन पच्चीस किलोमीटर दूर जैतपुर गाँव में यह खासा प्रदूषित हो जाता है। दिल्ली सरकार ने यमुना में प्रदूषण कम जाए इसलिए ओखला में कूड़े से खाद बनाने के कारखाना स्थापित किया। लेकिन कारखाने से निकलने वाली जहरीली गैस से आस-पास के लोगों का जीना दूभर हो गया है। ऐसा ही एक संयन्त्र दशकों पहले वजीराबाद पुल के पास बना था।
गौरतलब है कि यह संयन्त्र पानी के शोधन के साथ कूड़े से बिजली बनाने के लिए लगाया गया था। लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद पता चला कि यहाँ का कचरा इस लायक है ही नहीं कि उसका ट्रीटमेंट कर उससे बिजली बनाई जा सके। यही हाल उन नालों पर लगे जल ट्रीटमेंट संयन्त्रों का है जिनका तीन चौथाई गन्दा पानी सीधे यमुना में मिलता है। सच्चाई यह है कि दिल्ली जल बोर्ड के सत्रह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है, जिनकी जलशोधन क्षमता करीब 355 एमजीडी है। जबकि यह 512 एमजीडी प्रतिदिन होनी चाहिए। जाहिर है कि शेष गन्दा पानी नालों के जरिए यमुना में ट्रीटमेंट के बिना ही बहाया जा रहा है।
दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। पूर्व मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित के समय यमुना किनारे विभिन्न स्थानों पर हजारों पेड़ भी लगाए गए। भविष्य में इन्हें पिकनिक स्थल के तौर पर विकसित करने की योजना बनी। लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। सबसे बड़ी बात यह है कि यमुना की सफाई के लिए अभी कोई मानक ही नहीं बना है। लंदन में जब वहाँ की टेम्स नदी को स्वच्छ करने का अभियान शुरू किया गया तो टेम्स वाटर अथॉरिटी ने स्वच्छ जल का एक मानदंड रखा कि उस जल में मछली पैदा होनी चाहिए। यानी पानी एकदम स्वच्छ होना चाहिए। लेकिन दिल्ली में तो जल प्रदूषण बहुत अधिक है। यहाँ के लिए यह मानदंड लागू करना असम्भव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसके लिए बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड (बीओडी) यानी जैविक आॅक्सीजन माँग के स्तर को 30 बीओडी से घटाकर 3 बीओडी पर लाना होगा। तब यह सी वर्ग का पेयजल बन सकेगा। वर्षों की लापरवाही के चलते ही प्रदूषण इतने भयावह स्तर पर पहुँचा है।
यमुना के प्रदूषण को लेकर सरकारी योजनाएँ जहाँ भ्रष्टाचार एवं खानापूर्ति में लगी हैं वहीं पर दिल्ली के नागरिक उदासीन हैं। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओंकार मित्तल कहते हैं कि, ‘दिल्लीवासी यमुना को भुला दिए हैं। यह नदी उनकी स्मृतियों से गायब है। पुरानी पीढ़ी यानी जिनकी उम्र आज लगभग साठ साल की होगी। उनको यमुना के अच्छे दिनों की स्मृति होगी। क्योंकि वे बचपन में यमुना में तैरने और धार्मिक कार्यों के लिए जाते थे। आज की युवा पीढ़ी के लिए यमुना का कोई मतलब नहीं रह गया है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि, बिहार और पूर्वांचल से आए लोगों ने जब यमुना किनारे छठ पर्व की पूजा अर्चना शुरू की तो दिल्ली के युवा पीढ़ी को इसका धार्मिक महत्त्व समझ में आया। छठ पर्व में श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाते हैं। लेकिन उसी दौरान कुछ गैर सरकारी संगठनों ने यह दावा किया कि यमुना नदी के जल में मौजूद प्रदूषक तत्त्व से स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ हो सकती हैं। वजीराबाद से लेकर ओखला तक यमुना जल स्नान योग्य नहीं है। नदी के जल में मौजूद कालीफार्म बैक्टीरिया मानव शरीर के लिए खतरनाक है। इसके प्रभाव से आंत्रशोध, टाइफाइड, चर्म रोग व अन्य जलजनित रोग हो सकते हैं।
दिल्ली में या दूसरे शहरों के नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण अनियन्त्रित गति से बढ़ रहा शहरीकरण है। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली की जनसंख्या यहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में पहले से ही दोगुनी हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यमुना को सिंचाई के पानी के लिए लिए विभिन्न छोटी-छोटी नहरें निकाली गई। इससे नदी में पानी के बहाव में भारी कमी आई है। इसलिए अब नदियों में वार्षिक बाढ़ की बजाय मानसूनी बाढ़ ही आती है, तथा जल का तेज बहाव भी वर्ष में सिर्फ 3 महीने ही होता है।
इससे स्पष्ट है कि नदियों की सफाई की रणनीतियों की समीक्षा और उन पर पुनर्विचार बहुत जरूरी है। जितने इलाकों से यमुना बहती है उनमें से शायद ही कहीं अपनी गन्दगी खुद दूर करने की इसकी क्षमता का प्रदर्शन होता है। इसका कारण यह है कि हर जगह शहर में इसका साफ पानी लेकर उसमें कचरे और प्रदूषण से युक्त पानी छोड़ देते हैं। कचरायुक्त पानी यमुना में बढ़ता जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि जो कचरा उत्पादित होता है और जिसका ट्रीटमेंट होता है, उसके बीच का फर्क बहुत बढ़ गया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो राजधानी सहित कई राज्यों के महत्त्वपूर्ण शहरों में पानी का प्राथमिक स्रोत खत्म हो जाएगा। यमुना का यह संकट इसके प्रवाह वाले क्षेत्र में पानी की कमी का सबसे बड़ा संकट है। प्रभावी ढँग से इससे निपटे बगैर यमुना को स्वच्छ करना सम्भव नहीं होगा।
आम आदमी पार्टी की नजर में राजधानी में पानी की समस्या और यमुना का प्रदूषण युक्त होना अलग-अलग मामला नहीं है। आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि यमुना को पुनर्जीवित किया जाएगा। यमुना नदी लम्बे समय से दिल्ली की सामूहिक स्मृति का हिस्सा रही है। दिल्ली की यह जीवन रेखा है लेकिन वर्तमान में इसका स्वरूप मरी हुई नदी के रूप में रह गई है। दिल्ली सरकार बनने के बाद आम आदमी पार्टी का दावा है कि, इसको फिर से पुनर्जीवित करने के लिए सम्भावित कदम उठाएगी। इसी कड़ी में एक व्यापक सीवरेज नेटवर्क और नई कार्यात्मक मलजल उपचार संयन्त्रों का निर्माण किया जाएगा। साथ ही यमुना नदी में अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्ट के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाएगी। राजधानी में पानी की समस्या न हो इसके वह वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन देगी। वर्षा जल संचयन को अपनाने वाले परिवारों को ‘पानी अनुकूल परिवार’ कहा जाएगा। सरकार ऐसे परिवारों को प्रोत्साहन भी देगी। शहर में गन्दगी न हो इसके लिए दो लाख सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया जाएगा। जिसमें मलिन बस्तियों और जेजे क्लस्टरों में लगभग 1.5 लाख शौचालय और सार्वजनिक स्थलों में 50,000 शौचालय बनवाए जाएँगे। वहीं एक लाख शौचालय सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए जाएँगे।
यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने और इलाहाबाद के गंगा में मिलने के बीच यमुना नदी की कुल लम्बाई 1367 किलोमीटर है। लेकिन यमुना को गन्दा करने में सबसे अधिक योगदान दिल्ली का है। दिल्ली में वजीराबाद से लेकर ओखला बैराज तक यमुना की लम्बाई 22 किलोमीटर है। लेकिन यमुना की गन्दगी का 79 फीसदी हिस्सा दिल्ली के खाते में दर्ज है। दिल्ली को यमुना से लगभग पाँच फीसदी पानी मिलता है। दिल्ली में यमुना को देखने से यह आभास ही नहीं होता कि यह नदी भी है। दिल्ली में यह दिनोंदिन सिमटती जा रही है। दिल्ली यमुना में केवल गन्दगी ही नहीं डाल रही है बल्कि तटीय क्षेत्रों में अतिक्रमण करके यमुना बैंक मेट्रो डिपो, अक्षरधाम मन्दिर, मिलेनियम बस डिपो, कॉमनवेल्थ गाँव सहित हजारों झुग्गी-झोपड़ियाँ भी बन गई है।
ऐसा नहीं है कि यमुना के सफाई को लेकर चिन्ता नहीं की जा रही है। पिछले दो दशकों में यमुना की सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रुपए बहाए जा चुके हैं, लेकिन यमुना में गन्दगी घटने के बजाय और बढ़ी है। यमुना की सफाई के नाम पर करीब 5600 करोड़ रुपए के नए प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है। लेकिन परिणाम बहुत संतोषजनक नहीं है। यमुना की गन्दगी दिल्ली की आबादी बढ़ने के साथ-साथ बढ़ रही है। केन्द्र और दिल्ली सरकार कभी यमुना को टेम्स नदी जैसी खूबसूरत बनाने के सपने दिखाती हैं तो कभी इसको प्राकृतिक रूप में लाने की योजनाएँ बनाती हैं।
यमुना में प्रदूषण की चर्चा नब्बे के दशक से ही अखबारों की सुर्खियाँ बन रही है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं वकील एमसी. मेहता ने यमुना में भारी प्रदूषण को देखते हुए 1985 में उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की थी। चार साल बाद यानी 1989 में उस याचिका पर फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यमुना नदी को साफ करने के निर्देश दिए थे। इसके बाद यमुना की सफाई के लिए निर्देश और योजनाओं की कमी नहीं हुई। फिर भी यमुना साफ होने का नाम नहीं ले रही है।
यमुना में गन्दगी की कहानी वजीराबाद बैराज के बाद शुरू होकर ओखला बैराज तक जाती है। इस बीच यमुना में दिल्ली के 22 नाले गिरते हैं। जिसमें नजफगढ़, शाहदरा और तुगलकाबाद नाला नदी को सबसे ज्यादा गन्दा करते हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने यमुना प्रवाह क्षेत्र को भौगोलिक व पारिस्थितिकी के आधार पर पाँच भागों में बाँटा है। पहला हिस्सा यमुनोत्री से लेकर ताजेवाला तक है जो 172 किलोमीटर लम्बा है। यमुना की शुरुआत और इस क्षेत्र में कम औद्योगिक इकाइयों के होने के कारण यह हिस्सा स्वच्छ है। ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक का दूसरा हिस्सा 224 किमी लम्बा है। हरियाणा के औद्योगिक एवं कृषि अपशिष्ट के यमुना नदी में गिरने से इस हिस्से से प्रदूषण की शुरुआत हो जाती है।
वजीराबाद से ओखला के बीच यमुना का प्रवाह 22 किमी है और यही हिस्सा सबसे अधिक प्रदूषित है। चौथे चरण में यमुना की लम्बाई 490 किमी है जो ओखला से चम्बल तक जाती है। इस हिस्से में दिल्ली की गन्दगी का साम्राज्य स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। आखिरी हिस्सा 468 किमी लम्बा है जो चम्बल से इलाहाबाद गंगा संगम तक जाती है। यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य जरिया शहरों के नाले हैं। एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली सहित हरियाणा के यमुनानगर, जगाधरी, करनाल, पानीपत, सोनीपत, गुड़गाँव, फरीदाबाद, पलवल, उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, वृंदावन, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा शहरों का गन्दा पानी यमुना में बेरोकटोक जा रहा है।
यमुना की सफाई के लिए कार्य योजना सरकार ने काफी पहले बनाई थी। पहला यमुना एक्शन प्लान 1993 में लागू हुआ था। जिस पर करीब 680 करोड़ रुपए खर्च हुए। फिर 2004 में दूसरा प्लान बना। इसकी लागत 624 करोड़ रुपए तय की गई। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना की सफाई पर दिल्ली जल बोर्ड ने 1998-99 में 285 करोड़ रुपए और 1999 से 2004 तक 439 करोड़ रुपए खर्च किए। वहीं दिल्ली राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (डीएसआईडीसी) ने 147 करोड़ रुपए अलग खर्च कर दिए। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के इक्कीस शहरों में अब तक यमुना की सफाई पर 276 योजनाएँ क्रियान्वित की जा चुकी है। जिनके माध्यम से 75325 लाख लीटर सीवर के गन्दे पानी के शोधन की क्षमता सृजित किए जाने का सरकारी दावा है। लेकिन ऐसे आधे-अधूरे प्रयासों से न यमुना की गत सुधरने वाली है और न इस प्राकृतिक धरोहर को बर्बाद होने से रोका जा सकता है।
यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने और इलाहाबाद में गंगा में मिलने के बीच यमुना नदी की कुल लम्बाई 1367 किलोमीटर है। दिल्ली में यमुना का बहाव मात्र 22 किमी. है। लेकिन दिल्ली यमुना को सबसे अधिक प्रदूषित करती है। पिछले दो दशकों में यमुना की सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रूपए बहाए जा चुके हैं, फिर भी यमुना में प्रदूषण घटने की बजाय और बढ़ी है।
यमुना को साफ करने के लिए यमुना एक्शन प्लान प्रथम में दिल्ली समेत उत्तर प्रदेश के आठ और हरियाणा के 6 शहरों से यमुना में गिरने वाली गन्दगी और नालों के रोकथाम की बात की गई। यमुना एक्शन प्लान द्वितीय में सिर्फ दिल्ली के 22 किमी यमुना को साफ करने की रूपरेखा बनाई गई। अब यमुना एक्शन प्लान तृतीय योजना चल रही है। 2013 में 1665 करोड़ के अनुमानित लागत से शुरू हुई यमुना एक्शन प्लान तृतीय को 2015 में समाप्त होने की बात कही गई थी। इसमें यह लक्ष्य रखा गया था कि इस दौरान यमुना को साफ कर लिया जाएगा। यमुना सफाई अभियान देश में सबसे बड़ी नदी सफाई योजना है। भारत और जापान सरकार संयुक्त रूप से यमुना की सफाई के लिए काम कर रहे हैं। जापान सरकार ने इस योजना के लिए 17.7 बिलियन येन की सहायता भी दी है। यमुना सफाई योजना भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के नेतृत्व में चल रहा है। लेकिन दिल्ली समेत कई शहरों की गन्दगी यमुना में डाला जा रहा है। जो सफाई अभियान को अँगूठा दिखाने के लिए काफी है।करोड़ों रुपए की योजना के बाद वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर हिस्से में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। यह प्रदूषण इसके बावजूद बढ़ रहा है कि दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के 21 शहरों में यमुना एक्शन प्लान के तहत सीवरेज और सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लान बनाए जा रहे हैं। यमुना की सफाई के लिए शुरू में उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली सरकार को गन्दा जल परिशोधन के 15 अतिरिक्त संयन्त्र और दिल्ली के 28 मान्यता प्राप्त औद्योगिक क्षेत्रों के लिए 16 संयुक्त कचरा संशोधन संयन्त्र स्थापित करने के निर्देश दिए गए। पहले इन औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण रोकने के लिए न कोई संयन्त्र था और न कोई अन्य व्यवस्था। 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के पहले यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड ने 1900 करोड़ रुपए की लागत से इंटरसेप्टर एंड डायवर्जन की योजना बनाई। इस योजना के तहत यमुना में गिरने वाले नजफगढ़, शाहदरा और सप्लीमेंटरी ड्रेनों के एक ओर 50 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन बिछाई जानी थी, ताकि गन्दा पानी इन नालों में न गिरे और यमुना में नालों की गन्दगी ना जाए। योजना में नालों के दूसरी ओर के छोटे नालों का पानी नाले के नीचे से ले जाकर पाइप लाइन में जोड़ दिया जाएगा। पाइप लाइन के गन्दे पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाकर प्लांट में पानी साफ करके नाले में डालने की योजना बनी। जिससे नालों का गन्दा पानी यमुना में न जाए। पहले चरण में नजफगढ़ और सप्लीमेंटरी ड्रेन को लिया गया। लेकिन यह योजना अभी तक पूरी नहीं हो सकी।
यमुना के किनारे बसे राज्य और शहरों की बात की जाए तो आज भी वे नदी की सफाई को लेकर संजीदा नहीं है। हरियाणा जहाँ अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली और उत्तर प्रदेश अपने गन्दे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी यमुना में गिराने से नहीं हिचक रहे हैं। शहरों के गन्दे नाले गिरने के अलावा यमुना में कम पानी होने से भी प्रदूषण की बात कही जाती है। जो एक तरह से सत्य भी है।
गौरतलब है कि हरियाणा द्वारा यमुना का पानी रोकने का मामला समय-समय पर सुर्खियाँ बनती रही है। जिससे यमुना का प्रवाह रूक जाता है। 1994 में यमुना पानी के बँटवारे पर एक समझौता हुआ था। समझौते के मुताबिक दिल्ली को हरियाणा से पेयजल की जरूरत के लिए यमुना का पानी मिलना तय हुआ था। बदले में दिल्ली से उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिए पानी मिलना था। मोटे तौर पर दिल्ली में यमुना का पाट डेढ़ से तीन किलोमीटर तक चौड़ा है। दिल्ली में इसका कुल दायरा 97 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें करीब सत्रह वर्ग किलोमीटर पानी में है, जबकि अस्सी वर्ग किलोमीटर सूखा पाट। करीब पचास किलोमीटर लम्बी यमुना में वजीराबाद बैराज तक पानी साफ दिखता है। लेकिन पच्चीस किलोमीटर दूर जैतपुर गाँव में यह खासा प्रदूषित हो जाता है। दिल्ली सरकार ने यमुना में प्रदूषण कम जाए इसलिए ओखला में कूड़े से खाद बनाने के कारखाना स्थापित किया। लेकिन कारखाने से निकलने वाली जहरीली गैस से आस-पास के लोगों का जीना दूभर हो गया है। ऐसा ही एक संयन्त्र दशकों पहले वजीराबाद पुल के पास बना था।
गौरतलब है कि यह संयन्त्र पानी के शोधन के साथ कूड़े से बिजली बनाने के लिए लगाया गया था। लेकिन करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद पता चला कि यहाँ का कचरा इस लायक है ही नहीं कि उसका ट्रीटमेंट कर उससे बिजली बनाई जा सके। यही हाल उन नालों पर लगे जल ट्रीटमेंट संयन्त्रों का है जिनका तीन चौथाई गन्दा पानी सीधे यमुना में मिलता है। सच्चाई यह है कि दिल्ली जल बोर्ड के सत्रह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है, जिनकी जलशोधन क्षमता करीब 355 एमजीडी है। जबकि यह 512 एमजीडी प्रतिदिन होनी चाहिए। जाहिर है कि शेष गन्दा पानी नालों के जरिए यमुना में ट्रीटमेंट के बिना ही बहाया जा रहा है।
दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। पूर्व मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित के समय यमुना किनारे विभिन्न स्थानों पर हजारों पेड़ भी लगाए गए। भविष्य में इन्हें पिकनिक स्थल के तौर पर विकसित करने की योजना बनी। लेकिन परिणाम शून्य ही रहा। सबसे बड़ी बात यह है कि यमुना की सफाई के लिए अभी कोई मानक ही नहीं बना है। लंदन में जब वहाँ की टेम्स नदी को स्वच्छ करने का अभियान शुरू किया गया तो टेम्स वाटर अथॉरिटी ने स्वच्छ जल का एक मानदंड रखा कि उस जल में मछली पैदा होनी चाहिए। यानी पानी एकदम स्वच्छ होना चाहिए। लेकिन दिल्ली में तो जल प्रदूषण बहुत अधिक है। यहाँ के लिए यह मानदंड लागू करना असम्भव नहीं तो मुश्किल जरूर है। इसके लिए बायोलॉजिकल आॅक्सीजन डिमांड (बीओडी) यानी जैविक आॅक्सीजन माँग के स्तर को 30 बीओडी से घटाकर 3 बीओडी पर लाना होगा। तब यह सी वर्ग का पेयजल बन सकेगा। वर्षों की लापरवाही के चलते ही प्रदूषण इतने भयावह स्तर पर पहुँचा है।
यमुना के प्रदूषण को लेकर सरकारी योजनाएँ जहाँ भ्रष्टाचार एवं खानापूर्ति में लगी हैं वहीं पर दिल्ली के नागरिक उदासीन हैं। सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. ओंकार मित्तल कहते हैं कि, ‘दिल्लीवासी यमुना को भुला दिए हैं। यह नदी उनकी स्मृतियों से गायब है। पुरानी पीढ़ी यानी जिनकी उम्र आज लगभग साठ साल की होगी। उनको यमुना के अच्छे दिनों की स्मृति होगी। क्योंकि वे बचपन में यमुना में तैरने और धार्मिक कार्यों के लिए जाते थे। आज की युवा पीढ़ी के लिए यमुना का कोई मतलब नहीं रह गया है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि, बिहार और पूर्वांचल से आए लोगों ने जब यमुना किनारे छठ पर्व की पूजा अर्चना शुरू की तो दिल्ली के युवा पीढ़ी को इसका धार्मिक महत्त्व समझ में आया। छठ पर्व में श्रद्धालु यमुना में डुबकी लगाते हैं। लेकिन उसी दौरान कुछ गैर सरकारी संगठनों ने यह दावा किया कि यमुना नदी के जल में मौजूद प्रदूषक तत्त्व से स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियाँ हो सकती हैं। वजीराबाद से लेकर ओखला तक यमुना जल स्नान योग्य नहीं है। नदी के जल में मौजूद कालीफार्म बैक्टीरिया मानव शरीर के लिए खतरनाक है। इसके प्रभाव से आंत्रशोध, टाइफाइड, चर्म रोग व अन्य जलजनित रोग हो सकते हैं।
दिल्ली में या दूसरे शहरों के नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण अनियन्त्रित गति से बढ़ रहा शहरीकरण है। एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली की जनसंख्या यहाँ उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में पहले से ही दोगुनी हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यमुना को सिंचाई के पानी के लिए लिए विभिन्न छोटी-छोटी नहरें निकाली गई। इससे नदी में पानी के बहाव में भारी कमी आई है। इसलिए अब नदियों में वार्षिक बाढ़ की बजाय मानसूनी बाढ़ ही आती है, तथा जल का तेज बहाव भी वर्ष में सिर्फ 3 महीने ही होता है।
इससे स्पष्ट है कि नदियों की सफाई की रणनीतियों की समीक्षा और उन पर पुनर्विचार बहुत जरूरी है। जितने इलाकों से यमुना बहती है उनमें से शायद ही कहीं अपनी गन्दगी खुद दूर करने की इसकी क्षमता का प्रदर्शन होता है। इसका कारण यह है कि हर जगह शहर में इसका साफ पानी लेकर उसमें कचरे और प्रदूषण से युक्त पानी छोड़ देते हैं। कचरायुक्त पानी यमुना में बढ़ता जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि जो कचरा उत्पादित होता है और जिसका ट्रीटमेंट होता है, उसके बीच का फर्क बहुत बढ़ गया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो राजधानी सहित कई राज्यों के महत्त्वपूर्ण शहरों में पानी का प्राथमिक स्रोत खत्म हो जाएगा। यमुना का यह संकट इसके प्रवाह वाले क्षेत्र में पानी की कमी का सबसे बड़ा संकट है। प्रभावी ढँग से इससे निपटे बगैर यमुना को स्वच्छ करना सम्भव नहीं होगा।
यमुना ऐसे होगी स्वच्छ
आम आदमी पार्टी की नजर में राजधानी में पानी की समस्या और यमुना का प्रदूषण युक्त होना अलग-अलग मामला नहीं है। आम आदमी पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा किया था कि यमुना को पुनर्जीवित किया जाएगा। यमुना नदी लम्बे समय से दिल्ली की सामूहिक स्मृति का हिस्सा रही है। दिल्ली की यह जीवन रेखा है लेकिन वर्तमान में इसका स्वरूप मरी हुई नदी के रूप में रह गई है। दिल्ली सरकार बनने के बाद आम आदमी पार्टी का दावा है कि, इसको फिर से पुनर्जीवित करने के लिए सम्भावित कदम उठाएगी। इसी कड़ी में एक व्यापक सीवरेज नेटवर्क और नई कार्यात्मक मलजल उपचार संयन्त्रों का निर्माण किया जाएगा। साथ ही यमुना नदी में अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्ट के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए सख्त कदम उठाएगी। राजधानी में पानी की समस्या न हो इसके वह वर्षा जल संचयन को प्रोत्साहन देगी। वर्षा जल संचयन को अपनाने वाले परिवारों को ‘पानी अनुकूल परिवार’ कहा जाएगा। सरकार ऐसे परिवारों को प्रोत्साहन भी देगी। शहर में गन्दगी न हो इसके लिए दो लाख सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया जाएगा। जिसमें मलिन बस्तियों और जेजे क्लस्टरों में लगभग 1.5 लाख शौचालय और सार्वजनिक स्थलों में 50,000 शौचालय बनवाए जाएँगे। वहीं एक लाख शौचालय सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए जाएँगे।
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