नदियों को अतिक्रमण से बचाने का जतन

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नर्मदा नदी मध्यप्रदेश में नदियों को अतिक्रमण से बचाने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण की पहल पर एक नई मार्गदर्शिका तैयार की गई है। इसमें प्रावधान किया गया है कि अब नदियों के किनारे पर एक निश्चित दूरी तक कोई भी निर्माण नहीं कर सकेगा। इसमें मठ, मंदिर और आश्रम भी शामिल हैं। इस तरह नदियों के जीवन को बचाने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल इसे राज्य सरकार ने अन्तिम रूप दे दिया है और जल्द ही इसे नगरीय विकास विभाग नदी किनारे के शहरों के नगर विकास प्लान में इसे शामिल करेगा। उम्मीद है कि इससे नदी किनारे और नदी प्रवाह क्षेत्र में होने वाले अनधिकृत अतिक्रमण को रोका जा सकेगा। यह केवल मार्गदर्शिका बनकर ही नहीं रह जाए, इसके लिए इसे कानून की शक्ल भी दी जा रही है।

बीते कुछ सालों में हमारे यहाँ अनियन्त्रित निर्माण और अनियोजित विकास की वजह से नदियों के प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र में भी कई जगह निर्माण आदि कर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण किया जा रहा है। इससे न केवल नदियों में बारिश के दौरान बाढ़ का भयावह प्रकोप झेलना पड़ रहा है बल्कि कई पर्यावरणीय समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। इससे नदियों में गंदगी और गाद भी बड़ी संख्या में पहुँच जाती है। अतिक्रमण के कारण ही नदियों का पानी संग्रहण क्षेत्र में भी लगातार कमी हो रही है और नदियों तक आने वाला बरसाती पानी भी कम हो रहा है। बाढ़ की स्थिति में नदियाँ रोद्र रूप धारण कर बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान भी करती हैं। इन्हीं सब समस्याओं से बचने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने नगर एवं ग्राम निवेश योजना (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग) को आदेश दिए थे कि वे नदियों को अतिक्रमण से मुक्त कराने और आगे इसे रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाए।

मध्यप्रदेश सरकार के नगर एवं ग्राम निवेश योजना के अमले ने इसी के मद्देनजर एक मार्गदर्शिका तैयार की है। इसमें नदियों के किनारे से एक सौ मीटर की दूरी तक कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया जा सकेगा। इसमें मठ, मंदिर, आश्रम, उपासना केन्द्र, पाठशालाएँ, साधना केन्द्र, गौशाला, योग पीठ सहित औषधिय पौधे लगाने या पौधरोपणी आदि भी शामिल हैं। नदी किनारे के एक सौ मीटर तक अन्य कोई भी गतिविधि प्रतिबंधित रहेगी। अब तक इनके लिए आवेदन करने पर नदी के किनारों पर सरकारी तौर से लीज के जरिए निश्चित अवधि के लिए जमीन दी जा सकती थी।

प्रदेश में नर्मदा, क्षिप्रा, बेतवा, ताप्ती, कालीसिंध और चम्बल जैसी नदियों के किनारे धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। इसलिए प्रदेश भर में इन नदियों के किनारों पर बड़ी तादाद में मठ, मंदिर, आश्रम और अन्य साधना–उपासना केन्द्र बने हुए हैं। कई जगहों पर तो ये नदियों के प्रवाह क्षेत्र तक भी आ पहुँचे हैं। इतना ही नहीं यहाँ होने वाले जलसों और त्यौहार या पर्व स्नान के दौरान यहाँ पॉलीथिन सहित बड़ी तादाद में कूड़ा–कचरा और गन्दगी यहाँ फैल जाया करती है जो बाद में नदी में ही समाहित होकर नदी के निर्मल पानी को भी दूषित बनाती है। इतना ही नहीं नदी किनारे के कई शहरों और कस्बों की गन्दगी भी बिना फिल्टर किए नदियों में जा रही है।

कई जगह तो गन्दा पानी भी नदियों में ही आकर मिल रहा है। पर अब नई मार्गदर्शिका के बाद इससे भी निजात मिल सकेगी। नए प्रावधान में यह स्पष्ट है कि अनुमति के समय ही आवंटी को यह लिखकर देना होगा कि वह किसी भी सूरत में अपने यहाँ के निस्तारी पानी (सीवेज) को नदी में नहीं छोड़ेंगे। कोशिश की जा रही है कि नदियों के किनारे पर पानी की स्वच्छता और उसकी गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके। प्रतिबंधित क्षेत्र में जैविक खेती पर भी जोर दिया जाएगा ताकि खेतों से बारिश के पानी के साथ हानिकारक रसायन नदियों के पानी में आकर उसे दूषित न कर सकें।

राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश पर नगर और ग्राम निवेश ने प्रदेश में जो नई मार्गदर्शिका तैयार की है, उसके मुताबिक नदियों के किनारों पर सौ मीटर से बाहर भी कोई निर्माण करने पर 12 मीटर की सड़क और 100 पेड़ लगाने की शर्तें माननी होगी। इन शर्तों का पालन करने पर ही नगरीय निकाय यहाँ निर्माण की अनुमति दे सकेंगे। इसी के साथ यह भी जरूरी कर दिया जाएगा कि जमीन आवंटन के लिए आवेदन के साथ ही सम्बन्धित जगह का कंटूर नक्शा भी लगाना होगा। यदि कहीं पाया जाता है कि जमीन आवंटन के बाद भी कोई इसका व्यावसायिक उपयोग कर रहा है तो तत्काल प्रभाव से अनुमति निरस्त की जा सकेगी। मध्यप्रदेश में चित्रकूट, जबलपुर, भेड़ाघाट, अमरकंटक, बुरहानपुर, उज्जैन, होशंगाबाद आदि शहरों सहित ओंकारेश्वर, महेश्वर, खलघाट, मंडलेश्वर आदि कस्बे और करीब पाँच हजार से ज्यादा गाँव भी शरीक हैं।

नए प्रावधान केवल नगरीय निकायों पर ही लागू नहीं होंगे बल्कि प्रदेश सरकार के अन्य विभाग भी अपने मौजूदा कानूनों में बदलाव कर इसे लागू करेंगे। नगर तथा ग्राम निवेश भी खुद इसे अलग–अलग शहरों के मास्टर प्लान में इसे शामिल कराएगा। सरकार अब इसे नदियों ही नहीं बल्कि अन्य जल स्रोतों पर भी अमल करने की दिशा में काम करने पर विचार कर रही है। यह भी तय किया जा रहा है कि जल स्रोतों के आकार के मुताबिक 9 से 500 मीटर तक का क्षेत्र प्रतिबंधित किया जा सकता है और यहाँ निर्माण को अनुमति नहीं दी जा सकेगी। सरकार द्वारा तैयार कराए जाने वाले मास्टर प्लान तथा विकास योजनाओं में भी इस बात को शामिल कराया जा रहा है। यह केवल मार्गदर्शिका बनकर ही नहीं रह जाए, इसके लिए इसे कानून की शक्ल भी दी जा रही है।

नदियों के किनारों से सौ मीटर की दूरी पर भी जो निर्माण होंगे, उनमें भी प्लॉट का आकार एक हेक्टेयर का ही होगा तथा निर्माण की ऊँचाई ज्यादा से ज्यादा (छत सहित) 6 मीटर से ज्यादा नहीं हो सकेगी। नदियों के किनारे इससे पहले के बने मकानों को भी अब अतिरिक्त निर्माण की मंजूरी नगरीय निकाय नए प्रावधानों के अनुसार ही दे सकेंगे।

क्षेत्र में पर्यावरण और पानी के लिए काम कर रहे जन संगठनों ने भी इसका स्वागत करते हुए आग्रह किया है कि इसे जल्द अमल में लाया जाए और इसका कड़ाई से पालन कराया जाए ताकि नदियों के किनारों को अतिक्रमण और निर्माण कार्यों से मुक्त रखा जा सके। इसे नदी के पानी की गुणवत्ता भी काफी हद तक सुधर सकेगी।
 

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