नदियों को साफ रखने के लिए सुपारी के गणेश

Ganesh statue
Ganesh statue

सुपारी के गणेशनदियों को बचाने के लिए अब सुपारी से गणेश प्रतिमाएँ बनाकर घरों में स्थापित करने की तैयारियाँ चल रही है। सुनने में यह भले ही अजीब लगे पर है सौ फीसदी सच। गणेशोत्सव से पहले सुपारी से बनी ऐसी सैकड़ों प्रतिमाएँ तैयार की जा रही है। इन्हें किसी व्यावसायिक संस्था या दुकानों पर नहीं बनाया जा रहा है बल्कि खुद महिलाएँ इन्हें अपने–अपने घरों में ही तैयार कर रही है। इसके लिए उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश के गाँव–गाँव में इन्हें बनाया जा रहा है और लोगों को इस बात के लिए भी जागरूक किया जा रहा है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियाँ हमारी नदियों के लिए बहुत ही घातक साबित हुई हैं और अब हमें अपनी नदियों को बचाने के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियाँ खरीदने से बचना चाहिए। इन्हीं के विकल्प के रूप में अब मिटटी और सुपारी के गणेश बनाने के लिए महिलाओं को निःशुल्क प्रशिक्षित किया जा रहा है।

बताया जाता है कि सुपारी से निर्मित गणेश को जल स्रोतों में विसर्जित किया जाता है तो इससे किसी तरह भी उसका पानी प्रदूषित नहीं हो पाता है। सुपारी न तो इसके पानी और न ही जल स्रोत के पर्यावरण को ही कोई नुकसान पहुँचाती है। धर्मग्रन्थों के जानकार भी बताते हैं कि सुपारी के गणेश बनाये जा सकते हैं और इसमें किसी तरह की धार्मिक रूप से कोई अड़चन नहीं है। धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान भी सुपारी के ही गणेश बनाए जाते रहे हैं।

उज्जैन के कर्म कांडी आचार्य पंडित विपिन शर्मा बताते हैं कि सुपारी में गणेश माने जाते रहे हैं इसलिए गणेशोत्सव के दौरान यदि सुपारी से उनकी प्रतिमा निर्मित की जाए तो यह किसी भी तरह से गलत नहीं है। हमारे धर्म ग्रन्थों में सुपारी को ही गणेश स्वरूप मानकर पूजा का विधान है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमा तो कहीं से भी उचित नहीं है, इसका उपयोग तो चोट या मोच लगने पर डॉक्टर पट्टा चढाने में उपयोग करते हैं। प्रतिमा ही यदि पवित्र नहीं है तो ऐसे पूजन का क्या लाभ। विसर्जन के लिए स्थापित प्रतिमा हमेशा अस्थायी सामग्री से बनी होनी चाहिए, जिनमें सुपारी या मिटटी हो सकती है। शिवमहापुराण में पार्थिव पूजा में इसका उल्लेख मिलता है।

कुछ ही दिनों बाद देशभर में गणेशोत्सव और नवरात्रि के त्यौहार परम्परागत रूप से मनाया जाएगा। इस दौरान लोग अपने घरों में गणेश और दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं और उनकी पाठ पूजा के बाद जल स्रोतों खास तौर पर नदियों में विसर्जित किया जाता है। इसके लिए धर्म ग्रन्थों में पार्थिव पूजा का विधान है पर बदलते समय के साथ लोगों ने पार्थिव यानी मिटटी की मूर्ती की जगह प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियाँ स्थापित करना शुरू कर दी। देखने में ये मूर्तियाँ मिटटी की मूर्तियों से भले ही आकर्षक और सुंदर दिखती हैं पर इन्हें जब विसर्जित किया जाता है तो ये जल स्रोत को प्रदूषित कर देती हैं। यह नदियों, तालाबों और कुएँ–बावड़ियों की तलहटी में जम जाता है और पानी के स्रोत बंद कर देता है। इसके घातक रंग भी पानी और उसमें रहने वाले जीव–जन्तुओं के लिए खतरा बन जाते हैं।

मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय हरित अधिकरण की सख्ती के बाद अब सरकार ने भी कड़े कदम उठाए हैं। प्रदेश के गृह विभाग ने सभी जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों को बाकायदा पत्र जारी कर कहा है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण की भोपाल स्थित क्षेत्रीय बेंच में पारित आदेश दिनांक 14 अगस्त 2015 के परिपालन में वे यह सुनिश्चित करें कि प्रदेश में कहीं भी कोई प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित प्रतिमाएँ न तो बनाए और न ही इसे बेचे। इसमें यह भी उल्लेखित है कि ऐसी प्रतिमाओं को जब्त कर उनका नष्टीकरण किया जाए। जो मूर्तिकार प्रतिमाएँ बनाते हैं, उन्हें भी इस बात को समझाएँ कि वे पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली और आकार में बड़ी प्रतिमाएँ नहीं बनाएँ। मूर्ति बनाने में सिंथेटिक पेंट तथा घातक डाईज का इस्तेमाल प्रतिबंधित है।

लोगों में भी अब धीरे–धीरे इसके प्रति जागरूकता बढ़ रही है। लोग नदियों के पानी को साफ रखने के लिए यह मानने लगे हैं कि त्योहारों के दौरान घातक रसायनों से तैयार प्रतिमाओं के विसर्जन से हमारे जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और इसे पीने से लोगों को कई तरह की बीमारियाँ भी हो सकती है। इसके लिए कई संस्थाएँ भी अब सामने आ रही है। गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार की देशभर में फैली शाखाओं में भी अब इसे लेकर काम हो रहा है। मध्यप्रदेश में भी संस्था अलग-अलग शहरों और कस्बों में सुपारी के गणेश बनाने के लिए लोगों को जोड़ रहे हैं। बीते दिनों इसी कड़ी में मध्यप्रदेश में करीब डेढ़ सौ स्थानों पर इस तरह के प्रशिक्षण महिलाओं को दिए गए हैं। यह प्रतिमाएँ देखने में सुंदर भी लगती हैं और घर में बनी होने से इनके प्रति जुड़ाव भी ज्यादा होता है। यह बाजार में मिलने वाली प्रतिमाओं की तुलना में बहुत सस्ती भी है।

गायत्री परिवार से जुड़े दिनकर राव शर्मा बताते हैं कि आस्था के साथ यह भी जरूरी है कि हम अपने पर्यावरण को बचाकर रखें। यदि पर्यावरण सुरक्षित नहीं होगा तो हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। समय के साथ हमारे धार्मिक आयोजनों में भी कई विकृतियाँ आ गई हैं, जिन्हें समय रहते सुधारा जाना जरूरी है। गणेशोत्सव और नवरात्रि उत्सव की ही बातें करें तो कितनी विकृतियाँ आती जा रही है। प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी मूर्तियाँ स्थापित की जाती है जबकि शास्त्रों में सिर्फ पार्थिव पूजा यानी मिटटी की प्रतिमा की ही पूजा का उल्लेख बताया गया है। यह तो सीमेंट की तरह हो जाती है। इसकी पूजा कैसे हो सकती है और सबसे बड़ी बात यह कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाओं को कब विसर्जित किया जाता है तो वह लम्बे समय तक पानी में घुलती नहीं है। इतना ही नहीं इसे सुंदर बनाने के लिए हानिकारक रंगों का भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है जो पानी के स्रोत को नुकसान पहुँचाता है और इस पानी के पीने से कई तरह की बीमारियाँ भी हो सकती है। यह प्रदूषण को बढाता है और अवैज्ञानिक भी।

प्रशिक्षण प्राप्त कर रही श्रीमती चन्द्रकला पाटीदार बताती हैं कि हमें गायत्री परिवार ने सुपारी से गणेश प्रतिमा बनाने का अच्छा उपाय सुझाया है। यह सभी को पसंद आ रहा है और बड़ी संख्या में महिलाएँ सीख रही हैं। इससे महिलाओं का कौशल भी बढ़ रहा है। केवल एक घंटे के समय में ही प्रतिमा तैयार हो जाती है। हमारी नदियाँ भी इससे दूषित नहीं होती।
 

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