जल मंदिर, जल देवता, जल पूजा जल ध्यान।
जीवन का पर्याय जल, सभी सुखों की खान।।
जल की महिमा क्या कहें, जाने सकल जहान।
बूंद-बूंद बहुमूल्य है, दें पूरा सम्मान।।
जय जलदेव सकल सुखदाता,
मात पिता भ्राता सम त्राता।
सागर जल में विष्णु बिराजे,
शंभु शीश गंगा जल साजे।
इंद्र देव है जल बरसाता,
वरुणदेव जलपति कहलाता।
रामायण की सरयू मैया,
कालिंदी का कृष्ण कन्हैया।
गंगा यमुना नाम धरे जल,
जन्म-जन्म के पाप हरे जल।
ऋषिकेश है, हरिद्वार है,
जल ही काशी मोक्ष द्वार है।
राम नाम की मीठी बानी,
नदिया तट पर केवट जानी।
माता भूमि पिता है पानी,
यही कह रही है गुरबानी।
जन जन हेतु नीर ले आईं,
नदियां तब माता कहलाईं।
सूर्य देव को अर्पण जल से,
पितरों का भी तर्पण जल से।
चाहे हवन करें या पूजा,
पानी के सम और न दूजा।
चाहे नभ हो, या हो जल-थल,
जीव-जंतु की जान सदा जल।
बूंद-बूंद से भरता गागर,
गागर से बन जाता सागर।
नीर क्षीर मधु खिलता तन-मन,
नीर बिना नीरस है जीवन।
नदी सरोवर जब भर जाए,
लहरे खेती मन हरषाए।
तीन भाग जल काया भीतर,
फिर भी चाहिए पानी दिन भर।
तीरथ व्रत निष्फल हो जाएं,
समुचित जल जब हम ना पाएं।
जल बिन कैसे बने रसोई,
भोजन कैसे खाये कोई।
नदियों में जब ना होगा जल,
खाली होंगे सब के ही नल।
घटता भू जल सूखी नदियां,
जाने तो अच्छी हो दुनिया।
पाइप से हम फर्श न धोएं,
गाड़ी पर हम जल ना खोएं।
टूंटी कभी न खुल्ली छोड़ें,
व्यर्थ बहे झटपट दौड़ें।
बिन मतलब छिड़काव करें ना,
जल का व्यर्थ बहाव करें ना।
जल की सोचें, कल की सोचें,
जीवन के पल-पल की सोचें।
बड़ी भूल है भूजल दोहन,
यही बताता है भूकम्पन।
कम वर्षा है अति तड़पाती,
बिन पानी खेती जल जाती।
वर्षा जल एकत्र करेंगे,
इसी बात का ध्यान धरेंगे।
बर्तन मांजें वस्त्र खंगालें,
उस जल को बेकार न डालें।
पौधे सींचें आंगन धोलें,
कण-कण में जीवन रस घोलें।
जीवन जीवाधार सदा जल,
कुदरत का उपहार सदा जल।
धन संचय तो करते हैं सब,
जल-संचय भी हम कर लें अब।
हम सब मिल संकल्प करेंगे,
पानी कभी न नष्ट करेंगे।
सोचें जल बर्बादी का हल,
ताकि न आए संकट का कल।
सुनलें जरा नदी की कल कल,
उसमें कभी नहीं डालें मल।
जीवन का अनमोल रतन जल,
जैसे बचे बचाएं हर पल।
हरे-भरे हम पेड़ लगाएं,
उमड़-घुमड़ घन बरखा लाएं।
पेड़ों के बिन मेघ ना बरसें,
लगें पेड़ तो फिर क्यों तरसें।
जल से जीवन, जीवन ही जल,
समझें जब यह तभी बचे जल।
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा,
बूंद-बूंद से घड़ा भरेगा।
जन जन हमें जगाना होगा,
जल सब तरह बचाना होगा।
कूएं नदियां बावड़ी, जब लौं जल भरपूर।
तब लौं जीवन सुखभरा, बरसे चहुं दिस नूर।।
जल बचाव अभियान की, मन में लिए उमंग।
आओ सब मिलकर चलें, “रमेश गोयल” संग।।
बूंद-बूंद- कीमती है...
जीवन का पर्याय जल, सभी सुखों की खान।।
जल की महिमा क्या कहें, जाने सकल जहान।
बूंद-बूंद बहुमूल्य है, दें पूरा सम्मान।।
जय जलदेव सकल सुखदाता,
मात पिता भ्राता सम त्राता।
सागर जल में विष्णु बिराजे,
शंभु शीश गंगा जल साजे।
इंद्र देव है जल बरसाता,
वरुणदेव जलपति कहलाता।
रामायण की सरयू मैया,
कालिंदी का कृष्ण कन्हैया।
गंगा यमुना नाम धरे जल,
जन्म-जन्म के पाप हरे जल।
ऋषिकेश है, हरिद्वार है,
जल ही काशी मोक्ष द्वार है।
राम नाम की मीठी बानी,
नदिया तट पर केवट जानी।
माता भूमि पिता है पानी,
यही कह रही है गुरबानी।
जन जन हेतु नीर ले आईं,
नदियां तब माता कहलाईं।
सूर्य देव को अर्पण जल से,
पितरों का भी तर्पण जल से।
चाहे हवन करें या पूजा,
पानी के सम और न दूजा।
चाहे नभ हो, या हो जल-थल,
जीव-जंतु की जान सदा जल।
बूंद-बूंद से भरता गागर,
गागर से बन जाता सागर।
नीर क्षीर मधु खिलता तन-मन,
नीर बिना नीरस है जीवन।
नदी सरोवर जब भर जाए,
लहरे खेती मन हरषाए।
तीन भाग जल काया भीतर,
फिर भी चाहिए पानी दिन भर।
तीरथ व्रत निष्फल हो जाएं,
समुचित जल जब हम ना पाएं।
जल बिन कैसे बने रसोई,
भोजन कैसे खाये कोई।
नदियों में जब ना होगा जल,
खाली होंगे सब के ही नल।
घटता भू जल सूखी नदियां,
जाने तो अच्छी हो दुनिया।
पाइप से हम फर्श न धोएं,
गाड़ी पर हम जल ना खोएं।
टूंटी कभी न खुल्ली छोड़ें,
व्यर्थ बहे झटपट दौड़ें।
बिन मतलब छिड़काव करें ना,
जल का व्यर्थ बहाव करें ना।
जल की सोचें, कल की सोचें,
जीवन के पल-पल की सोचें।
बड़ी भूल है भूजल दोहन,
यही बताता है भूकम्पन।
कम वर्षा है अति तड़पाती,
बिन पानी खेती जल जाती।
वर्षा जल एकत्र करेंगे,
इसी बात का ध्यान धरेंगे।
बर्तन मांजें वस्त्र खंगालें,
उस जल को बेकार न डालें।
पौधे सींचें आंगन धोलें,
कण-कण में जीवन रस घोलें।
जीवन जीवाधार सदा जल,
कुदरत का उपहार सदा जल।
धन संचय तो करते हैं सब,
जल-संचय भी हम कर लें अब।
हम सब मिल संकल्प करेंगे,
पानी कभी न नष्ट करेंगे।
सोचें जल बर्बादी का हल,
ताकि न आए संकट का कल।
सुनलें जरा नदी की कल कल,
उसमें कभी नहीं डालें मल।
जीवन का अनमोल रतन जल,
जैसे बचे बचाएं हर पल।
हरे-भरे हम पेड़ लगाएं,
उमड़-घुमड़ घन बरखा लाएं।
पेड़ों के बिन मेघ ना बरसें,
लगें पेड़ तो फिर क्यों तरसें।
जल से जीवन, जीवन ही जल,
समझें जब यह तभी बचे जल।
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा,
बूंद-बूंद से घड़ा भरेगा।
जन जन हमें जगाना होगा,
जल सब तरह बचाना होगा।
कूएं नदियां बावड़ी, जब लौं जल भरपूर।
तब लौं जीवन सुखभरा, बरसे चहुं दिस नूर।।
जल बचाव अभियान की, मन में लिए उमंग।
आओ सब मिलकर चलें, “रमेश गोयल” संग।।
बूंद-बूंद- कीमती है...
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