23 मार्च - शहीदी दिवस पर विशेष
चक्की में पिस आटा बनने को
दाने होते हैं मजबूर कई
बीज बन रहते हैं जो हरदम तैयार
मिटने को धरती के भीतर
वे ही बनते हैं दिवस शहीदी के आधार
वे ही बनते हैं वटवृक्ष एक दिन
वे ही भर सकते हैं घर
आंगन खुशबू से बन फूल
उनसे ही रहती है
यह सृष्टि सदाबहार
चक्की में........
वे ही देते हैं छाया अनजानों को
उनसे ही है शीतलता मैदानों को
उनसे ही है पावक जल सहज समीर
वे ही हर सकते हैं दूजों की पीर
उनके पुन्य से ही है यह संसार
चक्की में....
उनसे ही बनता हैं इतिहास
उनका ही नहीं होता कभी हास
उनकी ही होती है एक पहचान
दाह कालिया मार ही बालक
कोई बनता है कृष्ण महान
चक्की में.....
बाकी का मरना क्या, जीना क्या
बाकी का हंसना क्या, रोना क्या
बाकी पर नहीं मनते त्यौहार
बाकी की श्रेणी तो श्री लाचार
चक्की में.....
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