खुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में

खुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में , साफ सी नदियां लाओ ना
मै पानी हूँ लेकिन मेरी अब तक कोई शक्ल नही है
नाम कोई इंसा सा दे दो ,शक्ल कोई इंसा सा दे दो
मेरा कोई रंग नही है पर मै हर रंग में रंग जाता हूँ
तुम भी अब मेरी ही तरह से पानी क्यों नही बन जाते हो
रिश्ते सा कुछ रख भी लो मुझको, खून सा अब कर लो मुझको
तुमने पाले तोते, कबूतर, पानी पाल दिखाओ ना
खुद का मै नीर बहूं गन्दी नदियों में , साफ सी नदियां लाओ ना

तन को तुम अपने धो-धो कर मुझको गन्दा कर देते हो
मुझको नाली, नदियों से बहाकर और समंदर कर देते हो
तब मैं फिर सूरज की गर्मी से तपकर नंगा हो के जाता हूँ
बादल से मैं कपड़े पहनकर फिर धरती पे आता हूँ
बनकर मीठे से खारा फिर मीठा बनकर दिखलाओ ना
मैं भी तुम्हारे सर से उतरा हूँ, फिर से सर पर लगाओ ना
खुद का नीर बहूं गन्दी नदियों में , साफ सी नदियां लाओ ना

मुझको भी गन्दी सी चीजें अच्छी है नहीं लगती
मेरे लिये भी कोई अब सस्ता फ़िल्टर लाओ ना
मैं पानी सा रहकर भी हूँ अब तक प्यासा-प्यासा सा,
मुझको भी पीने में अब अच्छा पानी लाओ ना
मैं ही तेरे तन से पसीना बनकर यूँ ही बह-बह जाता हूँ
मेरे जिस्म से इंसा बह जाये, ऐसा कुछ कर के दिखाओ ना
खुद का नीर बहूं गन्दी नदियों में , सांफ सी नदियां लाओ ना

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