Posted on 16 Apr, 2014 03:15 PMजल संरक्षण का हम पर है भार, तभी बचेगा यह संसार। जल है जीवन का अनमोल रत्न, इसे बचाने का करो जतन, जल बचाएं- जीवन बचाएं
जल प्रकृति द्वारा प्रदत्त अनमोल उपहार है, इसका संरक्षण हमारा नैतिक कर्तव्य है, साफ सुथरा पानी, अच्छे स्वास्थ्य की है निशानी, जल संरक्षण का हम पर है भार, तभी बचेगा यह संसार।
Posted on 15 Apr, 2014 03:41 PMप्राकृतिक सौंदर्य को देखता विभोर हो रहा हूँ नव विहान के साथ जल सतह पर तैरता कोहरा ढॅंक लेता है अपने आँचल में मध्धम होती निःशेष छवि काल की कोहरा छंटने पर दिखती हैं स्पष्ट रेखाएं आधुनिक अभियांत्रिकी कौशल की मानव की अदम्य इच्छाशक्ति आशा-विश्वास अद्भुत-अकम्प संकल्प का जीवंत उदाहरण 'टिहरी बाँध'
Posted on 08 Apr, 2014 03:50 PM नदी निश्चल बहती है इसका अर्थ यह तो नहीं कि वह कुछ नहीं कहती। बहुत कुछ कहती है तब जब जानलेवा गरमी में प्यास से बदहाल हम निहारते हैं उसे। स्वाद लेते हैं उसके ममतामयी शीतल नीर का। वह कहती है तब भी जब हम चखते हैं उसके अमृत से सिंचित पेड़ के मीठे सुस्वादु फल को। चलाना हो कल-कारखाने या विपुल विद्युत उत्पादन
Posted on 08 Apr, 2014 03:49 PM देखों नदियां धधक रही हैं, हमको आगे आना होगा। तालाब कुएं सब सूख रहे हैं इनको हमें बचाना होगा। निर्मल-निर्मल पानी है देखो, हमकों क्या-क्या नहीं देते हैं इनसे ही जीवन है अपना, अमृत रस ये देते हैं, गंदगी का है परचम भारी हमें इसे मिटाना होगा। देखों नदियां धधक रही हैं, हमको आगे आना होगा। नदियों से ही पानी मिलता,
Posted on 08 Apr, 2014 03:34 PM मेरे पास नहीं है एक गिलास किसी को कैसे पिलाऊ पानी? मैं चाहता हूं मेरे पास भी हो एक गिलास पिलाने को पानी तभी न पिला पाऊंगा पानी किसी को पर देखता हूं नहीं है पानी हर गिलास में मैं इतना जरूर चाहता हूं न हो गिलास तो भी हो पानी जरूर मेरे पास पानी प्यास को करता है शांत ओक से ही चाहे पीया-पिलाया जाए पानी
Posted on 19 Mar, 2014 12:35 PMगोमती हूं, तीर्थ नैमिष धाम की पहचान हूं। देव-ऋिषियों का सदा से कर रही गुणगान हूं। ज्ञान-गौरव-भक्ति भावों से भरे मेरे किनारे। तीर्थ-मठ-मंदिर-महाऋिषि धाम, गुरूद्वारा हमारे। वृक्ष-वन पावन तपोमय भूमियां सम्पत्ति मेरी। है सभी कुछ किंतु अब तो है अथाह विपत्ति मेरी। एक मां के रूप में, मैंने सदा सबको दुलारा। दी, सदा इस भूमि को शीतल सुधा सी नीरधारा।