पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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मैं गंगा...
Posted on 01 Aug, 2014 01:53 PM विष्णुपद से निकल चली
करती कलकल गान
एक अनूठे तप का फल हूँ
भू पर स्वर्ग सोपान
मेरी लहरों में बसते थे
शुचिता और उल्लास
काल पटल में सिमट रहा हैं
मेरा मधुमय हास
मैं सुर सरि युग युग से
मनुज का करती हूँ उद्धार
कलुष हरण कर होती जाती
मैं कलुषित लाचार
मैं माँ हूँ दुखियारी भी हूँ
किसको अपनी व्यथा सुनाऊँ
घुटती जाती मन ही मन
नदियों का आंगन सूना है-
Posted on 22 Jul, 2014 11:43 AM रामगंगाहिमधर के अश्रु पिघल रहे
सरि तीरे पीड़ा पसरी है
जहां भोर सुहानी खिलती थी
वहां गहन उदासी बिखरी है

पूजा की थाली में सज कर
कबीर व रहीम के पानीदार दोहे
Posted on 07 Jul, 2014 09:43 AM
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुष की जात।
देखत ही छिपि जाएगा, ज्यों तारा परभात।।

संगति भई तो क्या भया, हिरदा भया कठोर।
नौनेजा पानी चढ़ै, तऊ न भीजै कोर।

दान किए धन ना घटै, नदी ना घटै नीर।
अपनी आंखों देखिए, यों कथि गए ‘कबीर’।।

ऊंचै पानी ना टिकै, नीचै ही ठहराय।
नीचा होय सो भरि पिवै, ऊंचा प्यासा जाए।।
पर्यावरण-प्रदूषण और हमारा दायित्व
Posted on 02 Jun, 2014 10:05 AM भोपाल गैस कांड से प्रभावित मनुष्यों की 20-25 वर्ष तक होने वाली संता
हे गंगे
Posted on 19 May, 2014 02:51 PM

गंगाबार बार मैं आता रहता
गंग तुम्हारे तट पर
बहती रहतीं रुकीं नहीं तुम
कलकल करतीं सस्वर
शिव अलकों में उमड़ घुमड़तीं
मुक्ति मार्ग की दानी

Maa Ganga
गंगा प्रश्न
Posted on 16 May, 2014 09:03 AM

ऐ नए भारत के दिन बता...
ए नदिया जी के कुंभ बता!!
उजरे-कारे सब मन बता!!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गए?
या भूल गए कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही थी महान नहीं।
नदी सभ्यताएं तो खूब जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
नदियों में गंगधार हूं मैं,
क्या श्रीकृष्ण वाक्य तुम भूल गए?
ए नए भारत के दिन बता...

Ganga
गंगा तट से बोल रहा हूं
Posted on 16 May, 2014 08:42 AM

गंगा तट पर देखा मैंने
साधना में मातृ के
सानिध्य बैठा इक सन्यासी
मृत्यु को ललकारता
सानंद समय का लेख बनकर
लिख रहा इक अमिट पन्ना
न कोई निगमानंद मरा है,
नहीं मरेगा जी डी अपना
मर जाएंगे जीते जी हम सब सिकंदर
नहीं जिएगा सुपना निर्मल गंगा जी का
प्राणवायु नहीं बचेगी
बांधों के बंधन में बंधकर
खण्ड हो खण्ड हो जाएगा

Ganga
पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण प्रदूषण
Posted on 09 May, 2014 01:46 PM आधुनिक युग में विकास के नाम पर मानव प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर तुल
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