एस.एन. गुप्ता

एस.एन. गुप्ता
हे गंगे
Posted on 19 May, 2014 02:51 PM

गंगाबार बार मैं आता रहता
गंग तुम्हारे तट पर
बहती रहतीं रुकीं नहीं तुम
कलकल करतीं सस्वर
शिव अलकों में उमड़ घुमड़तीं
मुक्ति मार्ग की दानी

Maa Ganga
गंगा गान
Posted on 24 Apr, 2014 10:20 AM
हिमगिरी के उत्तुंग शिखर से
जलधि तट की ओर
दौड़ चलीं तुम पतित पावनी
करतीं कलकल शोर
हे 'जाह्नवी' क्यों उदास हो
बहतीं रुक रुक कर
क्षोभित क्यों 'पुण्या' जन जन को
मोक्ष दान देकर
युग युग के संताप हरे हैं
क्षुधा हरी मन की
इस युग के भी पाप साथ ले
बह लो 'दुःखहन्त्री'
इस धरती पर पर्व भी तुम
संगीत भी तुम 'रम्ये'
×