पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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जग में को पानी की सानी
Posted on 12 Mar, 2010 09:25 AM जग में को पानी की सानी, सब चीजें हरयानी।
ई पानी से प्रगट भये हैं, ऋषि मुनि और ज्ञानी।
पानी की तरवार सीसते, तरवा जाय समानी।
बेपानी बेकार होत हैं, मानुस की जिन्दगानी।
पानी से सब होत नरायन, वहाँ से पैदा पानी।
फाग गणेश वंदना
Posted on 12 Mar, 2010 08:58 AM अरे हाँ देवा सेवा तुम्हारी ना जानों-
गन्नेसा गरीब निवाज
अरे हाँ काहे के गनपति करो,
कहाँ देऊं पौढ़ाय-
अरे हाँ गोवर के गनपति करों,
पटा देऊ पौढ़ाय-
अरे हाँ देवा काहे के भोजन करों,
कहो देऊ अचवाय
अरे हाँ देवा दूध-भात भोजन करो,
गंगाजल अचवाय
कुआँ पूजन
Posted on 10 Mar, 2010 09:04 AM ऊपर बदर घुमड़ाय री गोरी धना पनियां खों निकरीं।
जाय जो कईयो उन राजा ससुर सें, अंगना में कुंअला खुदाव रे
तुमारी बहू पनियां खों निकरीं
चौकड़िया
Posted on 10 Mar, 2010 08:50 AM सब सों बोलो मीठी बानी, थोड़ी सी जिन्दगानी
येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी
येई बानी हाथी चढ़वायै, येई उतारे पानी
येई बानी सें तरें ईसुरी, बड़े-बड़े मुनी ज्ञानी।
समाधान हेतु उपयुक्त जल नीति
Posted on 09 Mar, 2010 08:27 AM चूँकि जल का स्वभाव ही स्थलाकृति के अनुरूप अपना आकार बदल लेना तथा ऊपर से नीचे की ओर बहना है इसलिए उसके स्वभाव के विपरीत उसपर नियंत्रण कायम करना आंशिक तौर पर ही संभव हो पाता है। ऐसी स्थिति में वर्चस्वशाली व्यक्ति अथवा समूह जल पर इस प्रकार नियंत्रण स्थापित करते हैं कि उसका लाभ तो उन्हें मिले लेकिन नुकसान दूसरों को झेलना पड़े। उदाहरणस्वरूप जलस्रोत के समीप ऊपर की ओर रहने वाले लोग पानी की कमी के दिनों म
मगध की जल समस्या
Posted on 08 Mar, 2010 10:45 PM क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप जल व्यवस्था मगध क्षेत्र में लम्बे समय तक कायम रही। किन्तु अनेक कारकों के प्रभाववश अब यहाँ की जल-व्यवस्था काफी हद तक छिन्न-भिन्न हो गई है।
जल को जानने-पहचानने वाले
Posted on 08 Mar, 2010 10:36 AM बैतूल के हरिनारायण मालवीय को पता नहीं था कि वे अपनी नौकरी छोड़कर एक बड़ा काम करने वाले हैं। किसी तरह थोड़ी-बहुत पढ़ाई करके मध्यप्रदेश सरकार में ग्राम सेवक की नौकरी पा जाने वाले मालवीय नहीं जानते थे कि आसपास के इलाकों में उनका नाम इतने सम्मान से लिया जाएगा। असल में ग्राम सेवक के अपने प्रशिक्षण के सिलसिले में वे एक बार होशंगाबाद जिले के पँवारखेड़ा स्थित प्रशिक्षण केन्द्र में गए थे, जहाँ उनके उस्तादो
नैनपुर, जहाँ खिलौनों-सी रेल और समुद्र-सा तालाब है
Posted on 08 Mar, 2010 09:59 AM मंडला से प्रसिद्ध कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान के कुछ आगे का नैनपुर असल में उमरिया, निवारी और नैनपुर गाँवों की जमीनों पर 19 वीं शताब्दी में बसा था। पहले अंग्रेजों ने यहाँ के पायली, पारेदा, डेहला, अलीपुर आदि 84 गाँवों को मालगुजारों को बेच दिया था जिनमें से चौधरियों ने 400 रुपए में घुघरी गाँव खरीदा था। और कमला ने 900 रुपए में नैनपुर। उस जमाने में ब्राह्मण बहुल इस इलाके को ‘चौरासी इलाका’ इसीलिए कहा
भुआ-बिछिया में, जल-प्रदाय करते थे अहीर
Posted on 08 Mar, 2010 09:47 AM मंडला-रायपुर मार्ग पर भुआ नाले के दोनों और बसा 15 हजार की आबादी वाला कस्बा भुआ-बिछिया पिछले 30-40 सालों में ही बढ़ा है। देश के भिन्न-भिन्न इलाकों से आए व्यापारियों, कर्मचारियों ने ही यहाँ के अधिकांश पक्के मकान बनवाए हैं। लेकिन पानी के मामले में यह कस्बा आजकल संकटग्रस्त ही माना जाता है।
अंजनिया जहाँ का फूटाताल, शेरों की प्याऊ था
Posted on 08 Mar, 2010 09:44 AM ‘हवेली’ क्षेत्र का एक और बड़ा कस्बा है मंडला-रायपुर राजमार्ग पर बसा, अंजनिया। कहते हैं कि हनुमानजी की माँ अंजनी का यहाँ निवास था। बम्हनी की तरह यहाँ भी पुराने तालाब हैं। हर्राही और अंधियारी तालाब गोंडों के समय के हैं। इनकी सफाई में पुराने अवशेष और एक सिल-लोढ़ा मिला था। गाँव की चारों दिशाओं में फूटाताल, केवलाही, बड़ा तालाब और हर्राही बने थे जिनमें से शुरू के तीन मालगुजारों ने बनवाए थे। कहते हैं कि
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