‘हवेली’ क्षेत्र का एक और बड़ा कस्बा है मंडला-रायपुर राजमार्ग पर बसा, अंजनिया। कहते हैं कि हनुमानजी की माँ अंजनी का यहाँ निवास था। बम्हनी की तरह यहाँ भी पुराने तालाब हैं। हर्राही और अंधियारी तालाब गोंडों के समय के हैं। इनकी सफाई में पुराने अवशेष और एक सिल-लोढ़ा मिला था। गाँव की चारों दिशाओं में फूटाताल, केवलाही, बड़ा तालाब और हर्राही बने थे जिनमें से शुरू के तीन मालगुजारों ने बनवाए थे। कहते हैं कि एक समय यहाँ इतना घना जंगल था कि माँदगाँव के मलसागर तालाब तक राजा शिकार करने जाते थे। आसपास के इलाके के गाँवों में भी ऐसे ही पुराने तालाब देखे जा सकते हैं। लेकिन आजकल ये तालाब पंचायतों और मालगुजारों के पास हैं। केवलाही तालाब में सिंघाड़े और मछलियाँ पैदा की जाती हैं तथा तालाबों की जमीनों पर कब्जा करके मकान बनाना आम बात हो गई है।
पहले सिंचाई के लिए बने तालाबों के अलावा झिरियाँ और कुओं से पेयजल लिया जाता था। बिजली और नल नहीं थे और कहार लोग कांवर से पानी भरकर घर-घऱ पहुँचाया करते थे। सन् 1969 में यहाँ बिजली आयी और 1975-76 में नल योजना बनीं। धीरे-धीरे झिरियाँ और कस्बे के सात-आठ कुओं का पानी भी सूखने लगा। जंगल कटने से पानी का रुकना खत्म हुआ। और एक जमाने में फूटाताल पर पानी पीने के लिए आने वाले शेरों, तेन्दुओं सरीखे जंगली जानवरों ने आना बंद कर दिया।
हवेली इलाके की छोटे नालों पर बंधान बनाकर पानी लेने की प्रथा यहाँ भी थी। बम्हनी मार्ग पर कछुनाला और मंडला मार्ग पर चिकनिया नाले ऐसी ही थे। बेहतर जमीनों और भू-गर्भीय तथा सतही पानी व्यवस्थाओं के कारण कहते हैं कि 30-35 साल से यहाँ कोई अकाल नहीं पड़ा लेकिन अब कुछ जगहों पर फ्लोरोसिस की समस्या खड़ी हो गई है। लोगों का कहना है कि अब भी इन पुराने स्रोतों को फिर से जीवन दिया जा सके तो जलसंकट के अलावा बीमारियों से भी बचा जा सकता है। लेकिन इनकी कौन सुनेगा?
पहले सिंचाई के लिए बने तालाबों के अलावा झिरियाँ और कुओं से पेयजल लिया जाता था। बिजली और नल नहीं थे और कहार लोग कांवर से पानी भरकर घर-घऱ पहुँचाया करते थे। सन् 1969 में यहाँ बिजली आयी और 1975-76 में नल योजना बनीं। धीरे-धीरे झिरियाँ और कस्बे के सात-आठ कुओं का पानी भी सूखने लगा। जंगल कटने से पानी का रुकना खत्म हुआ। और एक जमाने में फूटाताल पर पानी पीने के लिए आने वाले शेरों, तेन्दुओं सरीखे जंगली जानवरों ने आना बंद कर दिया।
हवेली इलाके की छोटे नालों पर बंधान बनाकर पानी लेने की प्रथा यहाँ भी थी। बम्हनी मार्ग पर कछुनाला और मंडला मार्ग पर चिकनिया नाले ऐसी ही थे। बेहतर जमीनों और भू-गर्भीय तथा सतही पानी व्यवस्थाओं के कारण कहते हैं कि 30-35 साल से यहाँ कोई अकाल नहीं पड़ा लेकिन अब कुछ जगहों पर फ्लोरोसिस की समस्या खड़ी हो गई है। लोगों का कहना है कि अब भी इन पुराने स्रोतों को फिर से जीवन दिया जा सके तो जलसंकट के अलावा बीमारियों से भी बचा जा सकता है। लेकिन इनकी कौन सुनेगा?
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