Posted on 17 Mar, 2010 08:24 AM अद्रा गैलै तीनि गैल, सन, साठी औ कपास। हथिया गैलै सबै गैल, आगिल पाछिल नास।।
भावार्थ- यदि आर्द्रा नक्षत्र चला गया और वर्षा न हुई तो सनई, साठी और कपास इन तीनों में से कोई फसल नहीं होगी। इसी प्रकार यदि हस्त नक्षत्र में वर्षा न हुई तो अगली-पिछली दोनों बोयी फसलें नष्ट हो जायेंगी।
Posted on 16 Mar, 2010 03:16 PM आसाढ़ी पूनो दिना, निर्मल उगै चन्द। पीव जाव तुम मालवै, अट्ठै है दुख द्वंद।।
भावार्थ- यदि आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन आसमान में स्वच्छ (बादल रहित) चंद्रमा निकले, तो हे स्वामी! तुम मालवा चले जाना क्योंकि यहाँ कठिन दु:ख देखना पड़ेगा अर्थात् वर्षा अच्छी नहीं होगी।
Posted on 16 Mar, 2010 03:11 PM अगहन दूना पूस सवाई। फागुन बरसे घर से जाई।।
भावार्थ- यदि अगहन में बारिश होती है तो रबी की फसल को दूना लाभ होता है, पौष मास में पानी बरसता है तो सवाया लाभ होता है और यदि फाल्गुन मास में पानी बरसे तो किसान की फसल नष्ट हो जाती है। उसकी फसल की लागत भी चली जाती है।
Posted on 16 Mar, 2010 03:04 PM अद्रा बरसै पुनर्बस जाय। दीन अन्न कोऊ नहिं खाय।।
भावार्थ- यदि आर्द्रा नक्षत्र में बरसता पानी पुनर्वस तक बरसता रहे तो ऐसे अनाज को यदि कोई मुफ्त में भी दे तो नहीं खाना चाहिए क्योंकि वह अनाज विषैला हो जाता है।
Posted on 16 Mar, 2010 02:26 PM अगहन में सरवा भर, फिर करवा भर।
शब्दार्थ- सरवा – कुल्हड़, करवा – घड़ा ।
भावार्थ- अगहन में यदि फसल को सरवा या सकोरा भर भी पानी मिल जाये तो वह अन्य समय के एक घड़े पानी के बराबर लाभदायक होता है, अर्थात् अगहन का थोड़ा भी पानी फसल के लिए पर्याप्त होता है।