ऊपर बदर घुमड़ाय री गोरी धना पनियां खों निकरीं।
जाय जो कईयो उन राजा ससुर सें, अंगना में कुंअला खुदाव रे
तुमारी बहू पनियां खों निकरीं
आसमान में बादल घुमड़ रहे हैं, और यहाँ एक स्त्री पानी भरने को जाती है। वह स्त्री अपनी सखियों से कहती है कि तनिक मेरे स्वसुर जी से तो कह दो कि वे हमारे आँगन में ही कुआँ खुदवा लें जिससे उनकी पुत्रवधू को पानी भरने बाहर तो नहीं जाना पड़ेगा।
जस
माई के भुवन पर बादल हो रहे हो माँ
कौना दिसा बदला भये हो माँ
अरे कहनां बरस गेरे मेव
माता जगतजननी के मठ के ऊपर बादल आच्छादित हो रहे हैं। बादल किस दिशा से होकर आये औऱ कहाँ वृष्टि हुई?
सोहर
आली ब्रज में महाराज भये................
जब हरि जनम लये मथुरा में,
जगत पहरूवा सोय रहे
आंगू धसें जमन जल गेरे,
पीछें सिंग गुंजार रहे
लै वसुदेव चले गोकल खों,
झपट कें जमना मैया चरन गहे
हे सखी! आज ब्रज के कृष्ण का अवतरण हुआ है। जब कृष्ण का जन्म हुआ तो एक चमत्कार सा हो गया कंस के कारागार के सारे प्रहरी गहरी नींद में सो गए। कारागर के द्वार खुले गये, वसुदेव की बेड़ी (हथकड़ी) खुल गई। वसुदेव शिशु को लेकर गोकुल को जा रहे थे, यमुना नदी में पूर आया था। वसुदेव आगे जाते हैं तो यमुना की गहराई बढ़ती जाती है। और पीछे लौटें तो सिंह दहाड़ रहे थे। यमुना को तो शिशु कृष्ण के चरण छूने थे इसीलिए उनके जल का प्रवाह बढ़ रहा था। जैसे ही कृष्ण के चरण स्पर्श किए वैसे उनका जल का प्रवाह कम हो गया।
कर कंगना ने लेंहों महारनी जू-
बहुत दिनन की आसा लागी
सो दिन पहुंचों आय महरानी जू
महारानी जू ने हार उतारो
कर लिए गडुवा पानी महरानी जू।
हे महारानी! मैं पुत्र जन्म की न्यौछावर कंगन थोड़े ही लूँगी। मैं वर्षों से आपके पुत्र जन्म की कामना कर रही थी, अब वह घड़ी आई तो ऐसे नहीं छोड़ूँगी। महारानी ने अपने गले का हार उतारकर दाई को देना चाहा तो उसने अपने हाथ में जल से भरा लोटा ले लिया
फुलबगियों हो बरसे राजा मेह
गोरी भींज गई गलियों में।
फूलों की बगिया में इतना ज्यादा पानी बरस रहा है कि एक स्त्री बाग में गई तो पानी से सरावोर हो गई।
जल भरे रेशम की डोर मोरी ए गुइयां
रेशम की डोरी जबई विराजे,
सुन्ने घड़ेलना ए गुइयां
मैं कुएँ का पानी तो तभीं भरूँगी जब उसकी डोर रेशम की होगी, और रेशम की डोर हो तो घड़ा भी तो स्वर्ण का होना चाहिए।
कार्तिक गीत
उठो मोरे हरजू भये भुनसारे,
गौवन के बंद खोलो सकारे
काय की दातुन काये को लोटा,
जमना जल भर ल्याई जसोदा।
माता यशोदा अपने कान्हा को जगाती है- अरे लल्ला! भोर हो गई है अब उठ भी जाओ। गायों को भी खोलना है। कृष्ण को माता दातोन लेकर और एक लोटे में यमुना का जल भरकर लायी हैं।
नौरता
तिल के फूल तिली के दाने,
चंदा ऊंगे बड़े भुनसारें
माई को कहो न करहों,
बाबुल को कहो न करहों,
पानी की खेप न धरहों,
गोबर की हेल न धरहों।
तिली के दानों से ही तिल के पौधे होते हैं उनमें फुल उगते हैं। आज भोर होने तक चंदा दिखता रहा। मैं माँ का कोई काम न करूँगी, पिता की बात नहीं मानूँगी। न तो मैं पानी के घड़े अपने सिर पर रखूँगी, न ही गोबर ऊठाऊँगी।
मोरी लाड़ी बन्नी नादान, अजुल जू सों अरज करे
मोय ऐसे घर दियो महाराज, जहां बेटी राज करे
जहां बम्मन तपत रसोई, कहर दोर्ह पानी भरे।
जिस कन्या का विवाह होना है, वह अवयस्क है वह अपने बाबा से कहती है कि हे पितामह! मेरा विवाह ऐसे बड़े घर में करना जहाँ मैं रानी बनकर रहूँ। उस घर में रसोई बनाने को ब्राह्मण हों तथा पानी भरने को कहार हों।
जाय जो कईयो उन राजा ससुर सें, अंगना में कुंअला खुदाव रे
तुमारी बहू पनियां खों निकरीं
आसमान में बादल घुमड़ रहे हैं, और यहाँ एक स्त्री पानी भरने को जाती है। वह स्त्री अपनी सखियों से कहती है कि तनिक मेरे स्वसुर जी से तो कह दो कि वे हमारे आँगन में ही कुआँ खुदवा लें जिससे उनकी पुत्रवधू को पानी भरने बाहर तो नहीं जाना पड़ेगा।
जस
माई के भुवन पर बादल हो रहे हो माँ
कौना दिसा बदला भये हो माँ
अरे कहनां बरस गेरे मेव
माता जगतजननी के मठ के ऊपर बादल आच्छादित हो रहे हैं। बादल किस दिशा से होकर आये औऱ कहाँ वृष्टि हुई?
सोहर
आली ब्रज में महाराज भये................
जब हरि जनम लये मथुरा में,
जगत पहरूवा सोय रहे
आंगू धसें जमन जल गेरे,
पीछें सिंग गुंजार रहे
लै वसुदेव चले गोकल खों,
झपट कें जमना मैया चरन गहे
हे सखी! आज ब्रज के कृष्ण का अवतरण हुआ है। जब कृष्ण का जन्म हुआ तो एक चमत्कार सा हो गया कंस के कारागार के सारे प्रहरी गहरी नींद में सो गए। कारागर के द्वार खुले गये, वसुदेव की बेड़ी (हथकड़ी) खुल गई। वसुदेव शिशु को लेकर गोकुल को जा रहे थे, यमुना नदी में पूर आया था। वसुदेव आगे जाते हैं तो यमुना की गहराई बढ़ती जाती है। और पीछे लौटें तो सिंह दहाड़ रहे थे। यमुना को तो शिशु कृष्ण के चरण छूने थे इसीलिए उनके जल का प्रवाह बढ़ रहा था। जैसे ही कृष्ण के चरण स्पर्श किए वैसे उनका जल का प्रवाह कम हो गया।
कर कंगना ने लेंहों महारनी जू-
बहुत दिनन की आसा लागी
सो दिन पहुंचों आय महरानी जू
महारानी जू ने हार उतारो
कर लिए गडुवा पानी महरानी जू।
हे महारानी! मैं पुत्र जन्म की न्यौछावर कंगन थोड़े ही लूँगी। मैं वर्षों से आपके पुत्र जन्म की कामना कर रही थी, अब वह घड़ी आई तो ऐसे नहीं छोड़ूँगी। महारानी ने अपने गले का हार उतारकर दाई को देना चाहा तो उसने अपने हाथ में जल से भरा लोटा ले लिया
फुलबगियों हो बरसे राजा मेह
गोरी भींज गई गलियों में।
फूलों की बगिया में इतना ज्यादा पानी बरस रहा है कि एक स्त्री बाग में गई तो पानी से सरावोर हो गई।
जल भरे रेशम की डोर मोरी ए गुइयां
रेशम की डोरी जबई विराजे,
सुन्ने घड़ेलना ए गुइयां
मैं कुएँ का पानी तो तभीं भरूँगी जब उसकी डोर रेशम की होगी, और रेशम की डोर हो तो घड़ा भी तो स्वर्ण का होना चाहिए।
कार्तिक गीत
उठो मोरे हरजू भये भुनसारे,
गौवन के बंद खोलो सकारे
काय की दातुन काये को लोटा,
जमना जल भर ल्याई जसोदा।
माता यशोदा अपने कान्हा को जगाती है- अरे लल्ला! भोर हो गई है अब उठ भी जाओ। गायों को भी खोलना है। कृष्ण को माता दातोन लेकर और एक लोटे में यमुना का जल भरकर लायी हैं।
नौरता
तिल के फूल तिली के दाने,
चंदा ऊंगे बड़े भुनसारें
माई को कहो न करहों,
बाबुल को कहो न करहों,
पानी की खेप न धरहों,
गोबर की हेल न धरहों।
तिली के दानों से ही तिल के पौधे होते हैं उनमें फुल उगते हैं। आज भोर होने तक चंदा दिखता रहा। मैं माँ का कोई काम न करूँगी, पिता की बात नहीं मानूँगी। न तो मैं पानी के घड़े अपने सिर पर रखूँगी, न ही गोबर ऊठाऊँगी।
मोरी लाड़ी बन्नी नादान, अजुल जू सों अरज करे
मोय ऐसे घर दियो महाराज, जहां बेटी राज करे
जहां बम्मन तपत रसोई, कहर दोर्ह पानी भरे।
जिस कन्या का विवाह होना है, वह अवयस्क है वह अपने बाबा से कहती है कि हे पितामह! मेरा विवाह ऐसे बड़े घर में करना जहाँ मैं रानी बनकर रहूँ। उस घर में रसोई बनाने को ब्राह्मण हों तथा पानी भरने को कहार हों।
Path Alias
/articles/kauan-pauujana