Posted on 20 Mar, 2010 08:56 AM काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो, पूस अमावस की सुधि करो। मूल विसाखा पूरबाषाढ़, झूरा जान लो बहिरें ठाढ़।।
भावार्थ- हे पंडितों! बहुत पढ़-पढ़कर क्यों जान देते हो? पौष की अमावस्या को देखो, यदि उस दिन मूल, विशाखा या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हों तो समझ लो सूखा पड़ेगा और अकाल घर के बाहर ही खड़ा है।
Posted on 20 Mar, 2010 08:52 AM कातिक मावस देखो जोसी। रवि सनि भौमवार जो होखी। स्वाति नखत अरु आयुष जोगा। काल पड़ै अरु नासैं लोगा।।
भावार्थ- भड्डरी का कहना है कि ज्योतिषी को कार्तिक की अमावस्या को यह देख लेना चाहिए कि उस दिन रविवार, शनिवार और मंगलवार, स्वाती नक्षत्र तथा आयुष्य योग तो नहीं है। यदि ऐसा है तो अकाल पड़ेगा और मनुष्यों का नाश होगा।
Posted on 20 Mar, 2010 08:42 AM आद्रा भरणी रोहिणी, मघा उत्तरा तीन। इन मंगल आँधी चलै, तबलौं बरखा छीन।
भावार्थ- मंगल के दिन आर्द्रा, भरणी, रोहिणी, मघा और तीनो उत्तरा नक्षत्रों में आंधी चले तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा बहुत कम होगी जिससे फसल को नुकसान होगा।
Posted on 20 Mar, 2010 08:40 AM आद्रा तौ बरसै नहीं, मृगसिर पौन न जोय। तौ जानौ यो भड्डरी, बरखा बूँद न होय।।
भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा और मृगशिरा नक्षत्र में हवा न चली तो वर्षा नहीं होगी, जिससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।