पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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कर्क रासि में मंगलवारी
Posted on 20 Mar, 2010 09:08 AM
कर्क रासि में मंगलवारी।
ग्रहण परै दुर्भिक्ष बिचारी।।


भावार्थ- यदि चन्द्रमा कर्क राशि में हो तथा मंगल के दिन चंद्रग्रहण पड़े तो अकाल पड़ना निश्चित है।

कर्क संक्रमी मंगलवार
Posted on 20 Mar, 2010 09:02 AM
कर्क संक्रमी मंगलवार। मकर संक्रमी सनिहि बिचार।
पंद्रह महुरतावरी होय। देस उजाड़ करै यों जोय।।


शब्दार्थ- मुहुरतवारी – मुहूर्त (दिन रात का 30वां भाग)

भावार्थ- यदि कर्क नक्षत्र की संक्रांति मंगल को पड़े और मकर की संक्रांति शनि को और वह पंद्रह मुहूर्त की हो तो ऐसा भीषण अकाल पड़ेगा की देश उजड़ जायेगा।

कृतिका तो कोरी गई
Posted on 20 Mar, 2010 09:00 AM
कृतिका तो कोरी गई, अद्रा मेह न बूंद।
तो यों जानो भड्डरी, काल मचावे दुंद।।


शब्दार्थ- कोरी-खाली, दुंद – लड़ाई-झगड़ा, संघर्ष। काल-अकाल।

भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा कृत्तिका नक्षत्र भी वर्षा से खाली गयी तो अकाल पड़ना तय है।

काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो
Posted on 20 Mar, 2010 08:56 AM
काहे पंडित पढ़ि पढ़ि मरो, पूस अमावस की सुधि करो।
मूल विसाखा पूरबाषाढ़, झूरा जान लो बहिरें ठाढ़।।


भावार्थ- हे पंडितों! बहुत पढ़-पढ़कर क्यों जान देते हो? पौष की अमावस्या को देखो, यदि उस दिन मूल, विशाखा या पूर्वाषाढ़ नक्षत्र हों तो समझ लो सूखा पड़ेगा और अकाल घर के बाहर ही खड़ा है।

कातिक मावस देखो जोसी
Posted on 20 Mar, 2010 08:52 AM
कातिक मावस देखो जोसी। रवि सनि भौमवार जो होखी।
स्वाति नखत अरु आयुष जोगा। काल पड़ै अरु नासैं लोगा।।


भावार्थ- भड्डरी का कहना है कि ज्योतिषी को कार्तिक की अमावस्या को यह देख लेना चाहिए कि उस दिन रविवार, शनिवार और मंगलवार, स्वाती नक्षत्र तथा आयुष्य योग तो नहीं है। यदि ऐसा है तो अकाल पड़ेगा और मनुष्यों का नाश होगा।

उगे अगस्त फूले बन कास
Posted on 20 Mar, 2010 08:50 AM
उगे अगस्त फूले बन कास।
अब छोड़ो बरखा की आस।।


भावार्थ- अगस्त तारे के निकलते ही जंगल में कास फूलने लगे हैं, अतः अब वर्षा की आशा छोड़ देनी चाहिए।

आगे मघा पीछे भान
Posted on 20 Mar, 2010 08:47 AM
आगे मघा पीछे भान।
पानी पानी रटै किसान।।


भावार्थ- यदि मघा के पीछे सूर्य हो तो वर्षा नहीं होगी और किसान पानी की एक-एक बूँद के लिए तरस जाएगा। वर्षा न होने से कोई फसल पैदा नहीं होगी।

आगे मंगल पीठ रवि
Posted on 20 Mar, 2010 08:44 AM
आगे मंगल पीठ रवि, जो असाढ़ के मास।
चौपट नासै चहुँ दिसा, बिरलै जीवन आस।


भावार्थ- यदि आषाढ़ मास में मंगल आगे और सूर्ये पीछे रहे तो वर्षा नहीं होगी, चारों ओर विनाश-लीला होगी और धरती पर त्राहि-त्राहि मच जायेगी।

आद्रा भरणी रोहिणी
Posted on 20 Mar, 2010 08:42 AM
आद्रा भरणी रोहिणी, मघा उत्तरा तीन।
इन मंगल आँधी चलै, तबलौं बरखा छीन।


भावार्थ- मंगल के दिन आर्द्रा, भरणी, रोहिणी, मघा और तीनो उत्तरा नक्षत्रों में आंधी चले तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा बहुत कम होगी जिससे फसल को नुकसान होगा।

अकाल (सूखा) सम्बन्धी कहावतें
Posted on 20 Mar, 2010 08:40 AM
आद्रा तौ बरसै नहीं, मृगसिर पौन न जोय।
तौ जानौ यो भड्डरी, बरखा बूँद न होय।।


भावार्थ- भड्डरी का मानना है कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में पानी न बरसा और मृगशिरा नक्षत्र में हवा न चली तो वर्षा नहीं होगी, जिससे फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

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