Posted on 19 Mar, 2010 11:13 AM रोहिनि बरसे मृग तपे, कुछ दिन आद्रा जाय। कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि हे घाघिन! यदि रोहिणी नक्षत्र में पानी बरसे और मृगशिरा तपे और आर्द्रा के भी कुछ दिन बीत जाने पर वर्षा हो तो पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाते-खाते ऊब जाएँगे और भात नहीं खाएंगे।
Posted on 19 Mar, 2010 11:00 AM रोहिनि जो बरसै नहीं, बरसै जेठ नित मूर। एक बूँद स्वाती पड़ै, लागै तीनों तूर।।
शब्दार्थ- तूर-अन्न। जेठ-ज्येष्ठा। मूर-मूल।
भावार्थ- यदि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा न हो, पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र में पानी बरस जाय तथा यदि स्वाति नक्षत्र में एक बूँद भी पानी पड़ जाये तो तीनों फसलें अच्छी हो जाती हैं।
Posted on 19 Mar, 2010 10:19 AM माघ सुदी जो सत्तमी, बिज्जु मेह हिम होय। चार महीना बरसती, सोक करौ मति कोय।।
शब्दार्थ – हिम – जाड़ा।
भावार्थ – यदि माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को बिजली चमके और वर्षा हो तथा सर्दी भी लगे तो समझ लेना चाहिए कि इस बार चौमासे (वर्षा के चार महीने) में पानी खूब बरसेगा और चिन्ता की कोई बात नहीं है, फसल भी अच्छी होगी।