मृगसिर वायु न बाजिया, रोहिनि तपै न जेठ।
गोरी बीनै काँकरा, खड़ी खेजड़ी हेठ।।
शब्दार्थ- खेजड़ी- एक प्रकार का वृक्ष। हेठ-नीचे।
भावार्थ- मृगशिरा नक्षत्र में यदि हवा न चले और ज्येष्ठ महीने में रोहिणी नक्षत्र न तपे तो निश्चय ही अकाल पड़ेगा और किसान की स्त्री खेजड़ी वृक्ष के नीचे कंकड़ चुनेगी।
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