Posted on 25 Mar, 2010 10:35 AM बगड़ बिराने जो रहे मानै त्रिया की सीख। तीनों यों हीं जायँगे पाही बोवै ईख।।
शब्दार्थ- बगड़-घर। भावार्थ- घाघ का कहना है कि दूसरे के घर में रहने वाला, स्त्री के कहने पर चलने वाला और दूसरे गाँव में ईख बोने वाला, तीनों ही व्यक्ति सदैव नुकसान ही उठाते हैं।
Posted on 25 Mar, 2010 10:33 AM फूटे से बहि जातु है, ढोल, गँवार, अँगार। फूटे से बनि जातु हैं, फूट, कपास, अनार।।
शब्दार्थ- बहि-नष्ट होना।
भावार्थ- ढोल, गंवार और अंगार ये तीनों फूटने से नष्ट हो जाते हैं, लेकिन फूट, (भदईं ककड़ी) कपास और अनार फूटने से बन जाते हैं अर्थात् उनकी कीमत फूटने के बाद ही अच्छी होती है।