Posted on 25 Mar, 2010 09:19 AM घर घोड़ा पैदल चलै, तीर चलावे बीन। थाती धरे दमाद घर, जग में भकुआ तीन।।
भावार्थ- घर में घोड़ा होते हुए भी पैदल चलने वाले, बीन-बीन कर तीर चलाने वाले और अपनी धरोहर (थाती) दामाद के घर रखने वाले, ये तीनो महामूर्ख की श्रेणी में आते हैं।
Posted on 25 Mar, 2010 09:17 AM घाघ बात अपने मन गुनहीं, ठाकुर भगत न मूसर धनुहीं।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि जिस प्रकार मूसर (अनाज कूटने वाला उपकरण) झुककर धनुहीं नहीं बन सकता, ठीक उसी प्रकार ठाकुर कभी भगत नहीं बन सकता, न ही झुक सकता है।
Posted on 25 Mar, 2010 09:10 AM गया पेड़ जब बकुला बैठा। गया गेह जब मुड़िया पैठा।। गया राज जहँ राजा लोभी। गया खेत जहँ जामी गोभी।।
शब्दार्थ- मुड़िया-संन्यासी।
भावार्थ- जिस पेड़ पर बगुला बैठता हो, जिस घर में संन्यासी का आना-जाना हो, जिस राज्य का राजा लोभी हो और जिस खेत में गोभी (एक प्रकार की घास) जमने लगे, इन सब को नष्ट हुआ ही समझना चाहिए।
Posted on 25 Mar, 2010 09:08 AM खेत न जोतै राड़ी। न भैंस बेसाहै पाड़ी। न मेहरी मर्द क छाड़ी। क्यों न बिपदा गाढ़ी।।
भावार्थ- राढ़ी घास वाले खेत को नहीं जोतना चाहिए पाड़ी (भैंस का बच्चा) भैंस नहीं खरीदनी चाहिए और चाहे जितना बड़ा संकट हो दूसरे की छोड़ी हुई स्त्री से शादी नहीं करनी चाहिए।
Posted on 25 Mar, 2010 09:04 AM कोपे दई मेघ ना होई, खेती सूखति नैहर जोई। पूत बिदेस खाट पर कन्त, कहैं घाघ ई विपत्ति क अन्त।।
भावार्थ- ईश्वर कुपित हो गया है, बरसात नहीं हो रही है, खेती सूख रही है, पत्नी मायके चली गयी हैं, पुत्र परदेश में हैं, पति खाट पर बीमार पड़ा है, घाघ कहते हैं कि यह स्थिति विपत्ति की चरम सीमा है।
Posted on 25 Mar, 2010 09:00 AM कुतवा मूतनि मरकनी, सरबलील कुच काट। घग्घा चारौ परिहरौ, तब तुम पौढ़ौ खाट।।
शब्दार्थ- मरकनी-खाट। कुच। नस।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जिस खाट पर कुत्ते मूत्ते हों, जो चरमराती हो, जो ढीली-ढाली हो और जो इतनी छोटी हो कि पैर की नस काटती हो, ऐसी खाट को छोड़कर दूसरी खाट पर सोना चाहिए।