Posted on 25 Mar, 2010 11:56 AM माघ पूस की बादरी, औ कुँवारा घाम। ये दोनों जो कोइ सहै, करै पराया काम।।
भावार्थ- माघ और पूस महीने की बदली और क्वार की धूप को जो सहन कर ले, वही दूसरे का काम कर सकता है क्योंकि माघ और पूस में ठंडी बहुत होती है और क्वार में धूप अधिक तेज होती है।
Posted on 25 Mar, 2010 11:48 AM बाछा बैल, बहुरिया जोय, ना घर रहै न खेती होय।
भावार्थ- जो किसान नये बछड़ो को बैल बनाकर खेती करता है और जिसकी पत्नी नई-नवेली हो, तो न तो उस किसान की खेती अच्छी हो पाती है और न ही वह घर संभल पाता है।
Posted on 25 Mar, 2010 11:44 AM बिन बैलन खेती करै, बिन भैयन के रार। बिन मेहरारू घर करै, चौदह साख लबार।।
शब्दार्थ- साख-पीढ़ी या पुश्त।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जो गृहस्थ यह कहता है कि मैं बिना बैलों के खेती करता हूँ; बिना भाइयों की सहायता के दूसरों से झगड़ा करता हूँ और बिना स्त्री के गृहस्थी चलाता हूँ, वह चौदह पुश्तों का झूठा होता है।
Posted on 25 Mar, 2010 11:42 AM बैल चौंकना जोत में, औ चमकीली नार। ये बैरी हैं जान के, कुसल करैं करतार।।
भावार्थ- वह बैल जो हल जोतते समय चौंकता हो और वह स्त्री जो अधिक चमक-दमक कर चलती हो, ये दोनों जान के दुश्मन हैं, जिसके घर में ये दोनों हो, उसकी रक्षा ईश्वर ही करे।