Posted on 25 Mar, 2010 12:15 PM सांझै से परि रहती खाट, पड़ी भड़ेहरि बारह बाट। घर आँगन, सब घिन-घिन होय, घग्घा गहिरे देव डुबोय।।
शब्दार्थ- भड़ेहरि- बर्तन आदि। घिन-गंदा।
भावार्थ- जो स्त्री सांझ से ही खाट पर पड़ी सोती हो और उसके घर की चीजें तितर-बितर हों, और जिसका घर-आंगन धिनाता रहता हो, ऐसी औरत को घाघ के अनुसार गहरे पानी में डुबो देना ही श्रेष्ठ होता है।
Posted on 25 Mar, 2010 12:07 PM सावन घोड़ी भादौं गाय। माघ मास जो भैंस बिआय।। कहैं घाघ यह साँची बात। आप मरै कि मालिकै खाय।।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि यदि घोड़ी सावन में और गाय भादों में और भैंस माघ के महीने में बच्चा देती है तो या तो वह स्वयं मर जायेगी या अपने मालिक को खा जायेगी।