पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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छः ग्रह एकै रासि बिलोकौ
Posted on 25 Mar, 2010 03:17 PM
छः ग्रह एकै रासि बिलोकौ।
महाकाल को दीन्हों कोकौं।।


भावार्थ- जब छः ग्रह एक ही राशि में हो तो समझो महाकाल को निमन्त्रण दिया गया है।

चैत पूर्णिमा होइ जो
Posted on 25 Mar, 2010 03:14 PM
चैत पूर्णिमा होइ जो, सोम गुरौ बुधवार।
घर घर होइ बधावड़ा, घर घर मंगलचार।।


भावार्थ- यदि चैत की पूर्णिम सोमवार, वृहस्पतिवार या बुधवार को पड़े तो घर-घर आनन्द की बधाई बजेगी और मंगलचार होगा।

चैत सुदी रेवतड़ी जोय
Posted on 25 Mar, 2010 03:08 PM
चैत सुदी रेवतड़ी जोय। बैसाखहिं भरणी जो होय।।
जेठ मास मृगसिर दरसंत। पुनरबसू आषाढ़ चरंत।।
जितो नछत्र की बरत्यो जाई। तेतो सेर अनाज बिकाई।।


भावार्थ- चैत सुदी (कृष्ण) में रेवती, वैशाख में भरणी, ज्येष्ठ में मृगशिरा और आषाढ़ में पुनर्वसु जितने भी घड़ी रहेगी, अनाज उतने सेर बिकेगा।

चैत अमावस जै घड़ी
Posted on 25 Mar, 2010 03:06 PM
चैत अमावस जै घड़ी, परती पत्रा माँहिं।
तेता सेरा भड्डरी, कातिक धान बिकाहिं।।


भावार्थ- पचांग में चैत की अमावस जितनी घड़ी की होगी कातिक में धान उतने ही सेर बिकेगा, ऐसा भड्डरी का मानना है।

गहता आथा गहतो ऊगै
Posted on 25 Mar, 2010 03:04 PM
गहता आथा गहतो ऊगै।
तोऊ चोखी साख न पूगै।।


शब्दार्थ- गहता-ग्रहण। आथा-अस्त। ऊगै-उदय।

भावार्थ- यदि ग्रहण ग्रस्तोदय (लगा हुआ ही उदय) और ग्रसातास्त (लगा हुआ अस्त) हो तो फसल अच्छी नहीं होगी।

कै जु सनीचर मीन को
Posted on 25 Mar, 2010 03:02 PM
कै जु सनीचर मीन को, कै जु तुला को होय।
राजा बिग्रह प्रजा छय, बिरला जीवै कोय।।


भावार्थ- शनिश्चर मीन का हो या तुला का, दोनों ही परिस्थिति में राजाओं में युद्ध होगा, प्रजा का नाश होगा और शायद ही कोई जीवित बचे।

एक मास में ग्रहण जो दोई
Posted on 25 Mar, 2010 03:01 PM
एक मास में ग्रहण जो दोई।
तो भी अन्न महंगो होई।।


भावार्थ- यदि एक महीने में दो ग्रहण लगे तो अन्न महँगा होगा।

एक पाख दो गहना
Posted on 25 Mar, 2010 02:59 PM
एक पाख दो गहना।
राजा मरै कि सहना।।


शब्दार्थ- सहना- अधीनस्थ राजकर्मचारी। नगर प्रधान।

भावार्थ- यदि एक पक्ष में दो ग्रहण लगे तो राजा या शाहंशाह में से कोई एक मरेगा।

असाढ़ मास पुनगौना
Posted on 25 Mar, 2010 02:55 PM
असाढ़ मास पुनगौना। धुजा बाँधि के देखौ पौना।
जो पै पवन पुरब से आवै। उपजै अन्न मेघ झर लावै।।

अगिन कोन जो बहै समीरा। पड़ै काल दुख सहै सरीरा।।

दखिन बहै जल थल अलगीरा। ताहि समें जूझैं बड़ बीरा।।
तीरथ कोन बूँद ना परैं। राजा परजा भूखन मरैं।।

पच्छिम बहै नीक कर जानो। पड़ै तुसार तेज डर मानो।।
अद्रा भद्रा कृत्तिका
Posted on 25 Mar, 2010 02:52 PM
अद्रा भद्रा कृत्तिका, असरेखा जो मघाहिँ।
चन्दा ऊगै दूज को, सुख से नरा अघाहिँ।।


भावार्थ- द्वितीया का चन्द्रमा यदि आर्द्रा, भद्रा (भाद्रपद), कृत्तिका, अश्लेषा या मघा में उदित हो, तो मनुष्य को सुख ही सुख प्राप्त होगा।

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