Posted on 04 Jun, 2011 08:54 AMपानी को दुख हैः कि दिनोंदिन घट रही है उसकी शीतलता कि कीचड़-कचरा से फूल रही है उसकी साँस कि नदियों में भी बहती है पानी से अधिक दुर्गंध
पृथ्वी की नाडि़यों में कितनी पुलक से दौड़ता था वह। लेकिन अब तो मशीनें खीचें ले रही हैं उसे दिनरात!
पानी को दुख हैः कि उसका पानीपन सूख रहा है कि उसकी तरलता पर नहीं रही अब उसकी पकड़