Posted on 17 Jun, 2011 09:09 AMपृथ्वी के तीन हिस्से से अधिक में पानी की बसाहट (है) कितने-कितने तो ढंग की- कितने-कितने तो रंग की
पृथ्वी के भीतर-बाहर पानी की कितनी चहल-पहल जिसमें हलचल नहीं वह पानी कहाँ हुआ पानी की पद्धति से ही हल हो रहा जीवन का गणित प्यार की कितनी भाषाएँ हैं पानी के पास बारिश एक भाषा ही तो है कई तरह के एहसास की
Posted on 10 Jun, 2011 10:52 AMबादल निहारते से ही आँखों में उमड़ पड़ती है: बाबा की कविता-‘बादल को घिरते देखा है’ और महाप्राण की ‘बादल राग’ हुलस कर हम से बोल पड़ता है कालिदास का ‘मेघदूत’
बादल पानी का पुनीत कृतित्व है इसीलिए उसे देखने में हमारी प्रिय रचनाएँ होती हैं हमारे साथ
आसमान में बादल आ रहे हैं- जा रहे हैं जैसे मन में भाव
Posted on 08 Jun, 2011 09:35 AMठीक दोपहर बारह बजे कुएँ में झाँकता है तमतमाया सूरज और कुएँ में बैठा अँधेरा भागता है रख कर सिर पर पाँव दोपहर बारह बजे कुएँ में सिर्फ़ सूरज की आवाज़ गूँज रही है और पानी (उजले मन से) पी रहा है धूप
परम तेजस्वी संज्ञा की सुन्दर क्रिया से कुएँ में हौले-हौले हिल रही है पानी की कायनात