जंगल में जल

जंगल में जल
कितना घरेलू लग रहा है
कितनी भटकन के बाद
गहरी प्यास में पी रहा हूँ
झरने का जल

झरना छलक रहा है-हुलस रहा है
करता हमारा आतिथ्य

इतना मीठा पानी
छलल-छलल प्रवाह
और इतना उछाह
जैसे झरना कब से रहा है
हमारे ही इंतजार में

पी कर निर्मल-शीतल नीर
हमारे होंठ भी झरने के छन्द में हो गए हैं
आँखें (जो हरहमेशा पानी में रहती हैं)
सुन्दरता के जाल में फँस
जी रही हैं झरने का सुख

पहाड़ी सुन्दरता का यह ताना-बाना
कितना मैदानी ढंग से हमें
आज़ाद कर रहा है!

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