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रेवा से पहले रेवा के पानी के संगीत से
हुआ अपना आत्मीय साक्षात्कार
फिर दरस-परस कूल-कछार से
रेवा! किलक-हुलस बहती है
कहती हैः जीवन! जीवन! जीवन!
जीवन से बड़ा नहीं कोई उद्गार
नहीं कोई चमत्कार
जीवन ही रचता है
अपना प्रिय संसार
रेवा कुलीनः
जिसके कूल भरे हैं
जीवन की गरिमा-महिमा से
सुख का अंतरा