पुस्तकें और पुस्तक समीक्षा

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पानी के हँसने में
Posted on 03 May, 2011 11:11 AM पानी के हँसने में
हयात है
लहरों में जिन्दगी का
पैगाम हुआ करता है

जाहिली से घूँट भरने से
पानी को चोट पहुँचती है
प्यास और पानी का रिश्ता
बहुत पाक है
इसे समझने में बात है

कोई पूर्वाभ्यास नहीं
Posted on 02 May, 2011 10:45 AM पानी कोई पूर्वाभ्यास नहीं करता
और मंच पर प्रकट हो जाता है सीधे
फिर भी इतनी अभिनय कुशलता-
इतना सुन्दर खेला
कि भीतर का पानी हँस-हँस कर
हो जाता है लहालोट

मंच पर नाट्य पारंगत
और मंच परे की भी उसकी भूमिका सुदक्ष
एक ओर पात्र को इतनी संजीदगी से
वहीं दूसरी ओर पूरी निर्लिप्तता के साथ
जीकर बताना
यह है पानी के ही बूते की बात
पानी से ही जाना
Posted on 30 Apr, 2011 10:31 AM पानी में
सुन्दर कविता

पानी में
बड़ी कहानी

पानी-पानी-पानी

पानी में अपनी पीड़ा
पानी में अपना प्यार
पानी से ही जाना
दुर्गम से होना पार

पानी बहुत उदास है
Posted on 29 Apr, 2011 09:08 AM पानी बहुत उदास है
बोतल में पानी का चेहरा उतरा हुआ है
याद आ रही हैं उसे अपनी लहरें
वह पार्वती नदी याद आ रही है
जिसका वेग उसे बाँधता था

सोचा था उसने किसी मटके में हो
वह खूब ठण्डाएगा
और बुझाएगा किसी अतिथि की प्यास
अब भी वह सोच रहा है मन ही मनः
काश! उसे चुल्लू से पीता कोई भर प्यास

या काम-धन्धे से लौट
लोटे से पी जाता एक साँस,
प्यास
Posted on 28 Apr, 2011 10:03 AM जिन्दगी प्यास को जिन्दा रख
पानी को मरने से बचाती है

प्यास की पगडण्डी
नदी-घाट तक जाती है
झरने के पास सुदूर पहाड़ तक

पनिमास (पनघट) हमारे जनपद की दिनचर्या हैं
बहुरियों की हँसी-खुशी से शीतल होता रहता है
जल

प्यास की रस्सी से
कुएँ का पानी हलक में गिरता है
लोटा-गगरी-कलश-बाल्टी-गिलास
प्यास की खिदमत में हैं दिन-रात
हचक के बरसा पानी
Posted on 27 Apr, 2011 09:27 AM हचक के बरसा पानी
धान खेत टहके
खेत को मेड़ का बल मिला

पानी का करिश्मा
कि हरियाली है निरोग
थाली और खेत में

इतनी समानता
कि पाकर अन्न
दोनों होंय प्रसन्न

हचक के बरसा पानी
नदी-नार बलवान हो गए
गा-गा कर के
झींगुर-दादुर गुणवान हो गए!

बारिश में भीग-भीग
Posted on 26 Apr, 2011 09:02 AM बारिश में भीग-भीग
धान रोपने के लिए
लेउ लगाता खेतिहर
हुलक कर कहता है-

पानी पा गया
तो किसानी बन गयी
लगता है बाल-बच्चों के
नसीब में बदा है
भात!

सानी-पानी के नशे में
डूबे हुए बैल
जड़ता जोत रहे हैं
जैसे कहानी से चलकर हल में नध
गए हैं प्रेमचंद के ‘हीरा-मोती’

खेत भी पानी पाकर
तन गया है चम्मेल
प्यास में
Posted on 25 Apr, 2011 10:15 AM प्यास में
पानी ही भूमिका है
पानी ही विचार है
पानी ही कविता-कथा है
पानी ही उपसंहार है!

जगा रहा है जल
Posted on 25 Apr, 2011 10:07 AM चट्टान सोयी है पत्थर-नींद
बूँद-बूँद कर अपने को
जगा रहा है जल

जल जगाता है
जब-तब इसे मेरे भीतर
एक पाखी गाता है

नदी एक गीत है
Posted on 23 Apr, 2011 12:16 PM नदी एक गीत हैः
जो पहाड़ के कण्ठ से निकल
समुद्र की जलपोथी में छप जाती है
जिस के मोहक अनुरणन से हरा-भरा रहता है
घाटी-मैदान

अपने घुटने मोड़ जिसे पीती है बकरी
हबो-हबो कहने पर पी लेते हैं जिसे गाय-गोरू
खेत-खलिहान की मेहनत की प्यास में
पीते हैं जिसे मजूर-किसान
नदियों में पानी है तो सदानीरा है जुबान

रेत में हाँफती नदियाँ
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