जल चक्र

विश्व में मौजूदा जल-चक्र
विश्व में मौजूदा जल-चक्र
बर्फ, जल और वाष्प, पानी के तीन स्वरूप हैं। व्यापक अर्थ में देखें तो ये लगातार एक दूसरे में परिवर्तित होते रहते हैं। वैसे तो यह एक सामान्य-सी प्रक्रिया है, पर सागर की सतह का निर्धारण, तापक्रम का सामंजस्य और धरती को जीवन धारण करने योग्य बनाए रखने में इनका बहुत महत्व है। पानी के एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया ही जल-चक्र कहलाती है। विश्व में पानी की कुल मात्रा 1.4 बिलियन घन किलो मीटर आंकी गई है, जिसका 97 प्रतिशत महासागरों में खारे पानी के तौर पर है। शेष जल में से कुल 300 लाख घन किलो मीटर हिमखंड के रूप में ध्रुवों और ऊंचे पहाड़ों चोटियों पर है और 40 से 600 लाख घन किलो मीटर भू-जल ऐसा है, जिसका आसानी से उपयोग नहीं किया जा सकता।

प्रतिवर्ष महासागरों से करीब 4,53,000 घन किलो मीटर जल वाष्प बनकर वायुमंडल में जाता है। तत्पश्चात इसका 90 प्रतिशत भाग संघनित होकर वापस महासागरों में आ जाता है। शेष लगभग 41,000 घन किलो मीटर वाष्पीकृत जल, वायु के साथ पृथ्वी पर आता है और धरती पर उत्पन्न 72,000 घन किलो मीटर जलवाष्प के साथ मिल जाता है। इस प्रकार वर्षा के तौर पर करीब 1,13,000 घन किलोमीटर जल आ जाता है। यदि यह सारी वर्षा एक साथ हो जाए तो सारी भूमि 83 सेंटीमीटर गहरे पानी में डूब जाएगी। पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि सारी वर्षा एक साथ नहीं होती और वर्षा के पानी का एक बड़ा भाग नदियों के माध्यम से समुद्र में मिल जाता है।

समुद्र और बादल-जल-चक्र के प्रमुख अवयवसमुद्र और बादल-जल-चक्र के प्रमुख अवयववर्षा से भूमि की नमी और भू-जल का नवीनीकरण होता है। भूमि की नमी पौधों, वृक्षों और कृषि के लिए आवश्यक है। भू-जल का नवीनीकरण इसे साफ रखने के लिए आवश्यक है। प्रत्येक वर्ष लगभग 41,000 घन किलो मीटर जल नदियों के माध्यम से वापस सागर और महासागर में चला जाता है। इस प्रकार जल-चक्र पूरा होता है। भारत विश्व में सबसे अधिक वर्षा वाले देशों में से एक है। यहाँ औसत वर्षिक वर्षा 1,170 मिली. मीटर होती है, चेरापूंजी में 11,400 मिली मीटर और राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में 210 मिली मीटर औसत वर्षा होती है। जबकि मध्य-पश्चिम अमेरिका में, जो आज दुनिया का अन्नदाता माना जाता है, वार्षिक औसत वर्षा मात्र 200 मिलीमीटर होती है।

एक अनुमान के अनुसार वर्षा से भारत को 40 करोड़ हेक्टेयर-मीटर जल प्राप्त होता है। इसमें से 21.5 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल भूमि तथा मिट्टी में अंतःस्रावित हो जाता है। 7 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल तुरन्त वाष्पित हो जाता है तथा 11.5 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल भू-गर्भ में उपलब्ध रहता है। इसमें से कुल 3.8 हेक्टेयर मीटर जल ही विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त हो जाता है। इसका 3.5 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल सिंचाई तथा 0.3 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल अन्य उपयोगों में लाया जाता है- जिसमें जल आपूर्ति, औद्योगिक तथा घरेलू कार्यों इत्यादि में उपयोग होने वाला पानी शामिल है। शेष पानी नदियों द्वारा वापस समुद्र में चला जाता है।

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