हमारी पृथ्वी पर जलवायु तथा मौसम परिवर्तन एवं जलचक्र के नियमित, अनवरत क्रियान्वित रहने की पृष्ठभूमि में वायुताप का विशेष महत्व है। वायुगति एवं वायुमंडलीय अनेकानेक प्रकार की हलचलों तथा पारिस्थितिक परिवर्तनों के पीछे भी इसका बहुत ही गहरा संबंध है। यह कहना कठिन है कि इसका मापन किसके लिए कितना सार्थक एवं कितना उपयोगी है, परन्तु इस विषय पर आम धारणा यह है कि इसकी उपयोगिता सभी के लिए है चाहे वह मौसम विज्ञानी, भौतिक शास्त्री, भू भौतिक शास्त्री, जलविज्ञानी, जलवायु विज्ञानी हो अथवा अन्य। जलविज्ञान के क्षेत्र में वाष्पन, वाष्पोत्सर्जन, हिमगलन-सरिता जल अपवाह अथवा जलगुणता निर्देशों में प्रयुक्त चर राशियों के आंकलन में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वायुताप मापन हेतु परम्परागत तथा आधुनिक अनेकों उपकरण, जिनमें प्रयुक्त सेंसर भिन्न-भिन्न भौतिक गुणों के सिद्धांत पर आधारित होते हैं और भिन्न-भिन्न स्थान तथा स्थिति के अनुपरक उपयोगी होते हैं, सामान्य रूप से काम में लाये जाते हैं। इनमें कुछ प्रमुख हैं पारे के उपयोग से निर्मित तापमापी, जेबी तापमापी अथवा सामान्य रूप से उपयोग में आने वाले तापमापी जिसमें अधिकतम एवं न्यूनतम ताप मापन में उपयोग होने वाले तापमापी भी सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त सुदूर संवेदन में प्रयुक्त, कागज चार्ट एवं चुम्बकीय टेप पर अथवा मेमोरी चिप पर अभिलेख अंकित करने वाले अनेकानेक प्रकार के स्वलेखी तापमापक जो वस्तुतः सस्ते, बहुउपयोगी, अतिसंवेदनशील तथा निरंतर ताप परिवर्तनों को दर्शाने में सक्षम एवं विख्यात हैं, काम में लाये जाते हैं।
वायुताप के निरंतर अंकन तु सामान्यतया हम यांत्रिक सिद्धांत पर कार्य करने वाले स्वलेखी तापमापक अथवा तापलेखी (Thermograph) नामक सस्ते उपकरण प्रयोग में लाते हैं। इनमे प्रयुक्त संवेदी भाग द्विधातुनिर्मित तापयुग्मी (Thermocouple) कार्य में लाया जाता है। इन उपकरणों में मान्य मापदण्डों के अनुरूप सावधानी बरतनी आवश्यक होती है, जिससे ये निर्बाध रूप से गुणपरक आंकड़ों के संग्रह में सहायक हों। प्रेक्षकों द्वारा त्रुटि तथा उपयोग संबंधी वांछित शर्तों का समुचित एवं कड़ाई से अनुपालन नहीं होने अथवा उपकरणों के दोषपूर्ण व्यवहार की स्थिति में लगातार उपयोग के फलस्वरूप तापलेखन अभिलेख का त्रुटिपूर्ण हो जाना स्वाभाविक है। ऐसे में दोषपूर्ण आंकड़ों का आंखमूंद कर उपयोग, पृथक-पृथक अतवा त्रुटियां एकीकृत होकर जलविज्ञानीय विश्लेषणों के परिणाम को त्रुटिपूर्ण कर सकते हैं।
प्रस्तुत लेख में राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रूड़की के तापलेखी के अभिलेखित आंकड़ों का उपयोग कर कुछ मुख्य-मुख्य बिन्दुओं पर भ्रमपूर्ण एवं त्रुटिपूर्ण आंकड़ों पर प्रकाश डाला गया है। संस्थान के स्वचालित जलविज्ञानीय स्टेशन के आधे घण्टे के अंतर पर लिए गए आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन हेतु प्रयोग किया गया है। ‘हाइमास’ साफ्टेवेयर तथा ग्राफर एवं अन्य उपयोगी साफ्टेवेयरों के अनुप्रयोग से आंकड़ों को पृथक करके ग्राफ बनाए गए हैं। स्वतापलेखी की उपयोगिता एवं कार्यप्रणाली पर अध्ययन कर आंकड़ों के मान्य मापदण्डों, संदर्भ, प्रतिफल तथा समाधान के मार्गदर्शी सिद्धान्तों की चर्चा की गई है। ऐसा विश्वास है कि प्रस्तुत यह शोध पत्र प्रेक्षण कार्य में संलग्न व्यक्तियों के लिए तथा विश्लेषकों के लिए लाभकारी एवं उपयोगी साबित होगा।
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वायुताप मापन हेतु परम्परागत तथा आधुनिक अनेकों उपकरण, जिनमें प्रयुक्त सेंसर भिन्न-भिन्न भौतिक गुणों के सिद्धांत पर आधारित होते हैं और भिन्न-भिन्न स्थान तथा स्थिति के अनुपरक उपयोगी होते हैं, सामान्य रूप से काम में लाये जाते हैं। इनमें कुछ प्रमुख हैं पारे के उपयोग से निर्मित तापमापी, जेबी तापमापी अथवा सामान्य रूप से उपयोग में आने वाले तापमापी जिसमें अधिकतम एवं न्यूनतम ताप मापन में उपयोग होने वाले तापमापी भी सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त सुदूर संवेदन में प्रयुक्त, कागज चार्ट एवं चुम्बकीय टेप पर अथवा मेमोरी चिप पर अभिलेख अंकित करने वाले अनेकानेक प्रकार के स्वलेखी तापमापक जो वस्तुतः सस्ते, बहुउपयोगी, अतिसंवेदनशील तथा निरंतर ताप परिवर्तनों को दर्शाने में सक्षम एवं विख्यात हैं, काम में लाये जाते हैं।
वायुताप के निरंतर अंकन तु सामान्यतया हम यांत्रिक सिद्धांत पर कार्य करने वाले स्वलेखी तापमापक अथवा तापलेखी (Thermograph) नामक सस्ते उपकरण प्रयोग में लाते हैं। इनमे प्रयुक्त संवेदी भाग द्विधातुनिर्मित तापयुग्मी (Thermocouple) कार्य में लाया जाता है। इन उपकरणों में मान्य मापदण्डों के अनुरूप सावधानी बरतनी आवश्यक होती है, जिससे ये निर्बाध रूप से गुणपरक आंकड़ों के संग्रह में सहायक हों। प्रेक्षकों द्वारा त्रुटि तथा उपयोग संबंधी वांछित शर्तों का समुचित एवं कड़ाई से अनुपालन नहीं होने अथवा उपकरणों के दोषपूर्ण व्यवहार की स्थिति में लगातार उपयोग के फलस्वरूप तापलेखन अभिलेख का त्रुटिपूर्ण हो जाना स्वाभाविक है। ऐसे में दोषपूर्ण आंकड़ों का आंखमूंद कर उपयोग, पृथक-पृथक अतवा त्रुटियां एकीकृत होकर जलविज्ञानीय विश्लेषणों के परिणाम को त्रुटिपूर्ण कर सकते हैं।
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