उत्तराखंड

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मथुरा जनपद, उत्तर प्रदेश में भूमिजल गुणवत्ता का पर्यावरण पर प्रभाव
Posted on 11 Jan, 2012 11:38 AM मानव एवं प्रकृति दोनों ही जलीय पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। मनुष्य जलीय पिण्डों को जलस्रोत भोजन, यातायात एवं मनोरंजन हेतु प्रयुक्त करता है। प्रायः वही जल मनुष्य के लिए गन्दगियों का कूड़ादान भी हो जाता है। प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा भी तलछट की प्रचुर मात्रा इन जलपिण्डों में लाई जाती हैं। इसके फलस्वरूप जल का प्रदूषण होता है एवं गंम्भीर रूप से मानव जीवन को प्रभावित करता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में फ्लोराइड संघटक का वर्गीकरण
Posted on 11 Jan, 2012 11:04 AM सर्वविदित है कि सभ्यता के साथ-साथ जल की महत्ता की अनिवार्यता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष के जल के नमूनों के विश्लेषण के उपरान्त अध्ययन से ज्ञात होता है कि कुछ संघटक कम मात्रा में पाये जाते हैं। एवं कुछ संघटक अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसी कारण से सभी संघटकों की अनुज्ञेय सीमा निर्धारित की गई है क्योंकि उनके अधिक या कम सीमा में होने से मानव तथा जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़
राजस्थान के जल-स्रोतों में नाइट्रेट स्तर
Posted on 11 Jan, 2012 10:50 AM राजस्थान में भूजल अन्वेषण हेतु किए गए जल परीक्षणों में अनेक स्थानों पर भू-जल में नाइट्रेट की मात्रा निर्धारित पेय-जल सीमा से अधिक पाई जाती है। राज्य के मध्यवर्ती एवं उत्तरी जिलों नागौर, चुरू एवं बीकानेर का काफी विस्तृत क्षेत्र नाइट्रेट समस्या से प्रभावित है। अन्य स्थानों पर नाइट्रेट युक्त जल सीमित भू-जल इकाइयों में बंटा है। यह देखने में आया है कि भूगर्भीय अधोगत जल-भण्डार (कन फाइन्ड जोन), अधोजल भंड
हल्की जमीन में प्लास्टिक खड़ी मल्च का धान में जल रुकाव एवं उत्पादन पर प्रभाव
Posted on 07 Jan, 2012 10:42 AM यह प्रयोग में विभिन्न उपचारों जैसे कि नियंत्रित (T.1) खेत में 15 से.मी. गहराई तक वर्टिकल मल्च (T.2) खेत में बंद की चोटी से 15 से.मी. भूमि की गहराई तक (T.3) तक प्लास्टिक मल्च द्वारा खेत में बंद को पूर्ण रूप से ढकते हुए एवं भूमि में 15 से.मी.
उत्तर प्रदेश में जलाक्रांति एवं ऊसर
Posted on 07 Jan, 2012 10:39 AM राष्ट्र एवं राज्य की बढ़ती आबादी के लिये खाद्यान्न पूर्ति हेतु कृषि विकास एक अपरिहार्य एवं चुनौती पूर्ण कार्य में सिंचाई की भूमिका सर्वाधिक है। ऐसा अनुभव किया जा रहा है कि सिंचाई जल का संतुलित एवं समन्वित उपयोग न होने पर कुछ क्षेत्रों में जलाक्रांति एवं ऊसर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। परिणामतः पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है। उपजाऊ कृषि भूमि अनुपयोगी होती जा रही है। ऊसर/परती भूमि की बढ़ोत्तरी के साथ-
लोकतक झील के विशेष उल्लेख के साथ भारत में अधिक ऊंचाई पर स्थित झीलों का विश्लेषण
Posted on 07 Jan, 2012 09:12 AM अधिक ऊंचाई पर स्थित भारतीय झीलों के सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है कि ये झीलें भी प्रदूषण की चपेट में आ गयी हैं। इन झीलों के आवाह क्षेत्र में अधिक से अधिक भूमि को कृषि योग्य बनाने से मिट्टी का कटान काफी बढ़ गया है जिसके फलस्वरूप झीलों में गाद जमाव की गति तीव्र हो गई है। इन झीलों में पानी आवाह क्षेत्र से बहकर पहले झील में आता है तथा अपने द्वारा लाया गाद झील में जमाकर नदी या झीलों के आस-पास के छोटे
जलाक्रांत क्षेत्रों में जायद धान – उत्पादन की सम्भावनाएं एवं लाभ
Posted on 06 Jan, 2012 04:29 PM उत्तर प्रदेश में सतही जल एवं भू-गर्भ जल के अनियोजित एवं असंतुलित उपयोग से पर्यावरण एवं कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जलाक्रांत एवं अर्धजलाक्रांत क्षेत्रों में ऊसर/परती भूमि में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। खाद्यान्न उत्पादन एवं उत्पादकता गंभीर रुप से प्रभावित हुआ है। दलहन एवं तिलहन का उत्पादन घटा है। भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण हुई है। जलाक्रांत प्रभावी कुछ विकास खंडों में फसल सघनता प्रदेश औस
मथुरा जनपद की भूजल-संपदा का आंकलन एवं विकास
Posted on 06 Jan, 2012 04:24 PM कहा गया है “जल ही जीवन है” । यह सत्य भी है क्योंकि किसी भी जीवन के लिये चाहे वह पेड़, पौधा, जानवर या मनुष्य हो जल अत्यंत आवश्यक है। जल की उपलब्धता मनुष्यों के जीवन में उनके घरेलू उपयोग तथा सिंचाई के लिए अत्यंत आवश्यक है। मथुरा जिले की भूजल-संपदा मूलरुप से कठोर लवण युक्त तथा खारेपन के कारण समस्या मूलक है। इस स्वच्छ भूजल के निष्कासन में भूजलीय, भूभौतिकीय एवं सुदूर-संवेदन तकनीकी का प्रयोग किया जाता ह
कुओं का विसंक्रमण
Posted on 06 Jan, 2012 04:19 PM कई राज्यों में एवं कुछ विशेष प्रदेशों में स्थित घरेलू एवं नगरीय जल वितरण हेतु जिन कुंओं का उपयोग किया जाता है, उन कुंओं को रोगजनक जीवाणुओं से मुक्त करने हेतु विसंक्रमण अति आवश्यक है। कुंओं का विसंक्रमण कई प्रकार से किया जा सकता है, परंतु क्लोरीनीकरण की प्रक्रिया आसान, सस्ती व सुलभ है। क्लोरीन उत्पन्न करने वाले यौगिक /मिश्रण को कुंए के अंदर पानी की मात्रा ज्ञात करने के पश्चात मिश्रण/यौगिक की गुणवत्
बुलन्दशहर क्षेत्र में जल निकासी प्रणाली के अभिकल्पन हेतु जल वैज्ञानिक मृदा गुणधर्मों का आंकलन
Posted on 06 Jan, 2012 12:22 PM अधिक सिंचाई अथवा अतिशय वर्षा के कारण मृदा की ऊपरी सतह अथवा फसलों के मूल क्षेत्र में जल निकास की समस्या पैदा हो सकती है। यदि किसी क्षेत्र की ऊपरी मृदा कम पारगम्य हो तो स्थिति और भी भयंकर हो जाती है जैसाकि उ.प्र. के पश्चिमी भाग में स्थित बुलन्दशहर जिले में मृदा के ऊपरी सतह में कार्वोनेट की उपस्थिति से ऐसी स्थिति पाई गई है। बुलन्दशहर जिले का कुल क्षेत्रफल 4588 वर्ग किमी.
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