उत्तर प्रदेश

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कभी साधु तो कभी सैनिक
Posted on 19 Jan, 2013 02:58 PM एक जीवन पद्धति से दूसरे में जाने-आने के मामले में नागा संन्यासी त
नोएडा-ग्रेनो बिल्डर्स भूजल दोहन स्थगनादेश
Posted on 18 Jan, 2013 05:14 PM

आज नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन, ग्रेटर नोएडा के इलाकों में सैंकड़ों बिल्डर्स भूजल को मुफ्त का समझकर अंधाधुंध खींच रहे

building construction affects groundwater
को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...
Posted on 17 Jan, 2013 02:48 PM कुंभ महज प्रदेश का पर्व या राष्ट्रीय जमावड़ा नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सबब भी है। दुनिया भर की निगाह कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथ इस आयोजन के बंदोबस्त को लेकर की गई व्यवस्था पर भी होती है।

प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर साधु-संतों का आगमन बढ़ने लगा है। इसी क्रम में श्री शंभू पंचाग्नि अखाड़े की शोभायात्रा शाही अंदाज में निकाली गई। अखाड़ों की परंपरा से अलग हटकर पहली बार अग्नि अखाड़े ने अपने महामंडलेश्वरों की अलग से शोभायात्रा निकाली है। इस यात्रा को दर्जनों डीजे व हाथी-घोड़ों के साथ कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला गया। शोभा यात्रा में शामिल महामंडलेश्वरों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। यह शोभा यात्रा भारी सजावट के साथ हाथी, घोड़ों व चार पहिया वाहन को साथ लेकर हिंदी साहित्य सम्मेलन से निकली। को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...। इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार मानस की इन लाइनों को साकार करने में शिद्दत से जुटी है। इसकी वजह भी साफ है कि जब तक प्रयाग के प्रभाव का जिक्र नहीं होगा तब तक कुंभ की सफलता को लेकर पीठ नहीं थपथपाई जा सकेगी क्योंकि कुंभ महज प्रदेश का पर्व नहीं है, राष्ट्रीय जमावड़ा नहीं बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सबब है। दुनिया भर की निगाह कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथ ही साथ इस आयोजन के बंदोबस्त को लेकर की गई व्यवस्था पर भी होती है। एक तरफ जहां कुंभ देश के धार्मिक समागम की अभिव्यक्ति होता है, वहीं साधु-संतों, नागाओं-हठयोगियों की परंपरा का ऐसा वाहक होता है जो न केवल हमें विस्मित करता है बल्कि हमारी संपन्न धार्मिक विरासत से भी हमें रू-ब-रू कराता है। साधना और प्रार्थना के साधनों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध भारत के हठयोगी कुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन बैठे हैं।
बांदा में मनरेगा के तालाब
Posted on 16 Jan, 2013 03:45 PM मनरेगा के तहत खोदे गए तालाब ज्यादातर उपयोगी नहीं है। कारण कि उनको बनाते समय न तो स्थान, न ही उनके कैचमेंट और न ही निकासी का ध्यान रखा गया है। इन कारणों से ये तालाब बहुत उपयोगी नहीं रह गए हैं। ज्यादातर सूखे पड़े हुए हैं। तालाबों को बनाने में न तो लोक ज्ञान का इस्तेमाल किया गया है, न ही परंपरागत ज्ञान का इस्तेमाल हुआ है और न ही आधुनिक विज्ञान का। इनको बनाने में दबंगई, पैसा और लूट-खसोट का इस्तेमाल
महाकुंभ की पवित्र छाया में
Posted on 16 Jan, 2013 10:10 AM मैं कुंभ की पवित्रता का अनुभव कर सकता हूं और उनके दिलों की धड़कन स
कुंभ: साझी समझ से बासी आडंबर तक
Posted on 15 Jan, 2013 04:14 PM

पौराणिक संदर्भ प्रमाण हैं कि कभी नदियों की समृद्धि के काम में राजा-प्रजा-ऋषि...

mahakumbh
कुंभ: सिद्धांत और व्यवहार
Posted on 15 Jan, 2013 03:52 PM

कुंभ का सिद्धांत

kumbh in prayag
कुंभ : आस्था और विज्ञान
Posted on 15 Jan, 2013 03:27 PM

कुंभ की आस्था

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क्यों जानना जरूरी है कुंभ परिचय
Posted on 15 Jan, 2013 03:00 PM भारत का पांरपरिक ज्ञान भले ही कितना गहरा व व्यावहारिक हो, लेकिन स
Kumbh introduction
कुंभ निवेदन
Posted on 15 Jan, 2013 02:36 PM

ए नये भारत के दिन बता!
ए नदिया जी के कुंभ बता!
उजरे-कारे सब मन बता!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गये ?
या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही है महान नहीं।
नदी सभ्यतायें तो कई जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
“नदियों में गंगधार हूं मैं’’
क्या श्रीकृष्ण वाक्य तुम भूल गये?

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