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रांची जिला
पर्यावरण के लिए बंजर भूमि के उपयोग पर सोचना होगा : एके मिश्र
Posted on 10 Jun, 2014 04:40 PMअजय कुमार मिश्र (एके मिश्र) भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं। वे राज्य के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक के पद पर कार्य कर चुके हैं। पिछले कुछ महीनों से वे झारखंड राज्य प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष हैं। एके मिश्र उन अधिकारियों से अलग हैं, जो सिर्फ सरकारी फाइलें को निबटाते हैं और अपने मातहतों को निर्देश देने में अपनी ड्यूटी पूरी मान लेते हैं। वे अधिकारियों, पर्यावरण में रुचि रखने वालों व आम ग्राममछली पालन कला है और खेल भी
Posted on 02 Jul, 2013 12:45 PM डोकाद गांव में अब खेती और जंगल के अलावा मछली पालन भी अहम रोजगार का रूप धारण कर चुका है। जिसके कारण गांव में लोगों की न सिर्फ आमदनी बढ़ी है बल्कि रोजगार के नाम पर होने वाला पलायन भी रुक गया है। अब नौजवान परदेस जाकर कमाने की बजाय विजय ठाकुर की तरह गांव में ही मछली पालन में रोजगार ढ़ूढ़ंने लगे हैं। यहां किसान कर्ज लेने के एक साल में ब्याज समेत चुका देता है। किसी भी इलाके के विकास के लिए केवल सरकार की योजनाएं ही काफी नहीं है। यदि समुदाय चाहे तो सरकारी योजनाओं का इंतजार किए बगैर मिसाल कायम कर सकता है। रांची से 35 किलोमीटर दूर जोन्हा पंचायत इसका उदाहरण है। जिसने विगत 6 सालों से मछली पालन से समृद्धि तो की है साथ ही गांव के विकास और पानी के श्रोत तथा मलेरिया जैसे बीमारियों पर भी काबू पा लिया। अनगड़ा प्रखंड का डोकाद गांव के विजय ठाकुर कभी अखबार से जुड़े हुए थे। लेकिन गांव के विकास और सामाजिक काम करने के प्रति उनकी इच्छाशक्ति के आगे उन्होंने इस काम को छोड़ दिया और गांव में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराने के लिए प्रयास करने लगे।तालाब खुदाई में लें सरकारी मदद
Posted on 24 Nov, 2012 01:44 AMतालाब एवं कुएं की महत्ता से हम सभी वाकिफ हैं। हममें से कई लोग तालाब एवं कूप निर्माण कराना चाहते भी हैं, लेकिन पैसे के अभाव में हमारी योजनाएं फेल हो जाती है। ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है। विभित्र प्रकार की नकारात्मकताएं होने के बाद भी कुछ चीजें साकारात्मक भी है जिसके जरिये स्थिति को बदला जा सकता है। सरकार के ग्रामीण विकास, कृषि, मत्स्य, जल संसाधन, वन आदि विभागों के पास तालाब एवं कूप निर्माणतालाब हैं तो गांव हैं
Posted on 21 Nov, 2012 09:45 AMझारखंड की कुल आबादी का 80 प्रतिशत कृषि एवं इससे संबंधित कार्यों पर निर्भर है। जबकि कृषि योग्य भूमि कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 48 प्रतिशत ही है। इसमें भी सिंचाई सुविधा महज 10 प्रतिशत पर ही उपलब्ध है। जबकि राष्ट्रीय औसत 40 प्रतिशत है। रबी में तो यह और घट जाता है। यानी 90 प्रतिशत से अधिक कृषि वर्षा पर आधारित है। जिस साल बारिश अच्छी हुई उस साल ठीक-ठाक उत्पादन होता है और जिस साल बारिश नहीं हुई, उस साल स्थिति चिंताजनक हो जाती है। पलायन एवं बेरोजगारी बढ़ जाती है।उग्रवाद की गोद में विकास की पहल
Posted on 22 Feb, 2011 01:37 PMलगभग सत्ताइस साल पहले चार सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नेतरहाट के वीरान इलाके बिशुनपुर में आदिवासियों के बीच विकास का अलख जगाना शुरू किया। आज वह प्रयास जादू की तरह अपना असर दिखा रहा है। उग्रवाद से गंभीर रूप से ग्रसित जिन इलाकों में पुलिस भी नहीं घुसती वहाँ भी इस संस्था की सहज पहुँच है।
झारखंड विधानसभा से सेवानिवृत्त होने के बाद विकास भारती से जुड़कर सामाजिक विकास में योगदान कर रहे अयोध्यानाथ मिश्र बताते हैं कि झारखंड में ऐसी संस्थाओं के प्रयासों की बेहद आवश्यकता है।विकास भारती की स्थापना 1983 में अशोक भगत, डॉ. महेश शर्मा, रजनीश अरोड़ा और स्वर्गीय डॉ. राकेश पोपली की पहल पर हुई थी। विकास भारती के वर्तमान सचिव अशोक भगत बिशनपुर के आदिवासी समुदाय के बीच कार्य करने के मिशन के साथ आए थे। उन्होंने क्षेत्र का सर्वेक्षण किया तो महसूस
पानी- सप्लाई 33, खपत 6 और बर्बादी 27 एमजीडी की
Posted on 31 Dec, 2010 09:06 AM
रांची. राजधानी में पेयजल उपभोक्ताओं को सप्लाई किए जाने वाले 33 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) पानी में से सिर्फ छह एमजीडी ही इस्तेमाल होता है। शेष 27 एमजीडी पानी कहां जाता है, इसका हिसाब नगर निगम के पास नहीं है, जबकि इतना पानी राजधानी के लगभग 7.50 लाख उपभोक्ता की जल संबंधी जरूरत पूरी कर सकता है।
भूभौतिकी में रोज़गार
Posted on 30 Dec, 2010 03:42 PMभूभौतिकी पृथ्वी विज्ञान की एक शाखा है जिसके अंतर्गत मात्रात्मक भौतिकीय विधियों विशेषकर भूकम्पीयइलैक्ट्रोमैग्नेटिक तथा रेडियोधर्मिता पद्धतियों द्वारा पृथ्वी का अध्ययन किया जाता है। भूभौतिकी की तकनीकों और सिद्धांतों को सामान्यतः ग्रह विज्ञान में त्वरित रूप से प्रयोग में लाया जाता है। जैसा कि नाम से ही परिलक्षित होता है, भूभौतिकी पृथ्वी की विशेषताओं की खोज हेतु भौतिकी सिद्धांतों तथा मापन का अनुप्र