तालाब एवं कुएं की महत्ता से हम सभी वाकिफ हैं। हममें से कई लोग तालाब एवं कूप निर्माण कराना चाहते भी हैं, लेकिन पैसे के अभाव में हमारी योजनाएं फेल हो जाती है। ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है। विभित्र प्रकार की नकारात्मकताएं होने के बाद भी कुछ चीजें साकारात्मक भी है जिसके जरिये स्थिति को बदला जा सकता है। सरकार के ग्रामीण विकास, कृषि, मत्स्य, जल संसाधन, वन आदि विभागों के पास तालाब एवं कूप निर्माण की कई योजनाएं हैं। इसकी मदद लेकर हम तालाब एवं कूप निर्माण के सपने को साकार कर सकते हैं। ग्रामीण विकास विभाग के पास सबसे बड़ा फंड मनरेगा है जिसके जरिये तालाब एवं कुआं दोनों निर्माण कार्य करा सकते हैं।
ग्रामीण विकास, कृषि एवं गत्रा, मत्स्य, वन व जल संसाधन विभाग के पास है योजनाएं। प्रस्तुत है विभिन्न विभागों की मुख्य योजनाएं -
वन विभाग भी गांवों में तालाब खुदवाता है। इसमें कुछ काम मनरेगा से होता है और कुछ काम विभाग की अपनी पौधरोपण योजना से। अब पौधरोपण की हर सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए वन विभाग को कुछ आरंभिक कार्य करवाने होते हैं। इस कार्य को तकनीकी भाषा में इंट्री प्वाइंट कहते हैं। इंट्री प्वाइंट के तहत ग्रामीणों की सहमति से उनके लिए योजनाएं ली जाती हैं। इसमें चापानल, कुआं, चेकडैम एवं तालाब शामिल हैं। आपके गांव के आसपास यदि वनभूमि है तो इसमें पौधरोपण के लिए विभाग के जिलास्तरीय कार्यालय में संपर्क करें। पौधरोपण की योजना अपने गांव-पंचायत के लिए स्वीकृत कराएं और उसमें इंट्री प्वाइंट के तहत तालाब बनवा सकते हैं।
मनरेगा : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ग्रामीण विकास विभाग की मुख्य योजना है। इसके तहत विभित्र प्रकार के तालाब एवं कुएं का भी निर्माण कराया जाता है। इसमें शतप्रतिशत राशि सरकार से मिलती है। इस योजना अब तक बड़े पैमाने पर कुएं का निर्माण झारखंड में कराया भी गया है। योजना ग्रामसभा बनाती है।
विधायक निधि : विधायकों को हर साल तीन करोड़ रुपये तक की योजनाएं स्वीकृत करने का अधिकार है। इसमें एक है विधायक निधि की जल समृद्धि योजना। इसके तहत एक वित्तीय वर्ष में एक विधायक को 50 लाख रुपये मिलता है। इसके जरिये तालाब निर्माण या जीर्णोद्धार का कार्य कराया जा सकता है। योजना का लाभ लेने के लिए आप अपने विधायक या उपविकास आयुक्त से संपर्क करें।
समेकित जलछाजन विकास कार्यक्रम : समेकित जलछाजन विकास कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) भूमिगत जलस्तर एवं खाद्यात्र उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में शुरू की गयी है। इसके तहत एक हजार से लेकर पांच हजार हेक्टेयर के भू-भाग का एक कलस्टर बनाकर काम किया जाता है। इस योजना में भी तालाब निर्माण एवं जीर्णोद्धार के लिए आवश्यकतानुसार राशि दी जाती है।
भूमि संरक्षण विभाग से बंजरभूमि विकास कार्यक्रम एवं धान परती भूमि विकास कार्यक्रम के तहत पुराने सार्वजनिक तालाबों की मरम्मत एवं नवीनीकरण का कार्य किया जाता है। इसमें उन तालाबों का चयन किया जाता है जिसका रकवा कम से कम एक हेक्टेयर और कमांड एरिया 25 एकड़ होता है। योजना का कार्यान्वयन पानी पंचायत के जरिये होता है। इस योजना की खासियत यह है कि इसमें मशीन से काम होता है।
एफएफडीए : मत्स्य किसान विकास अभिकरण(एफएफडीए) मछली पालन एवं जलीय कृषि के लिए सहायता उपलब्ध कराता है। इसके तहत नया तालाब निर्माण में दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर और नवीनीकरण में 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की की दर से अनुदान दिया जाता है। यह राशि पूरे इस्टीमेट का 20 प्रतिशत होता है। बाकी पैसा बैंक ऋण होता है।
एनएमपीएस : राष्ट्रीय पूरक प्रोटीन मिशन(एनएमपीएस) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की ही एक उपयोजना है। इसके तहत मछली पालन के लिए दो प्रकार का तालाब निर्माण कराया जाता है। नर्सरी के लिए छह लाख रुपये एवं सदाबहार तालाब के लिए दो लाख रुपये का अनुदान प्रति हेक्टेयर दिया जाता है। झारखंड में इस योजना का कार्यान्वयन मत्स्य विभाग की ओर से किया जाता है। इसके अलावा राज्य सरकार के फंड से भी तालाबों की मरम्मत कराती है।
कृषि सिंचाई के लिए योजनाएं बनाना और उसका कार्यान्वयन करने का मुख्य विभाग जल संसाधन विभाग ही है। इसके तहत वृहत, मध्यम एवं लघु सिंचाई कुल तीन प्रकार की योजनाओं का कार्यान्वयन किया जाता है। इस विभाग के पास अभी दो कार्यक्रम मुख्यरूप से है जिसमें तालाब, आहर, बड़े व्यास का सिंचाई कूप आदि का निर्माण कराया जाता है। एक का नाम त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) है। इसकी शुरूआत वर्ष 1996 में हुई है। दूसरी योजना का नाम जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनर्स्थापन (आरआरआर) है। इसकी शुरूआत 30 जनवरी 2005 को हुई है। इसका उद्देश्य लघु सिंचाई योजनाओं की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनर्स्थापन करना है। ताकि छोटे-छोटे तलाबों, आहरों, झीलों की जल संचयन क्षमता बढ़ाई जा सके।
राष्ट्रीय बागवानी मिशन : झारखंड में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) का कार्यान्वयन उद्यान निदेशालय से होता है। राज्य में यह वर्ष 2005-06 से शुरू हुआ है। मिशन के तहत 17 जिले आते हैं। इसमें देवघर, दुमका, जामताड़ा, पलामू, चतरा, लातेहार, रांची, लोहरदगा, हजारीबाग, सरायकेला, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिभमी सिंहभूम, खूंटी एवं रामगढ़। शामिल है। एनएचएम की योजनाओं के लिए 85 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार अनुदान देती है। बाकी पैसा राज्य सरकार लगाती है। आप एनएचएम के तहत अपने आसपास तालाब खुदवा सकते हैं। इसमें दो तरह की योजनाएं हैं। एक सामुदायिक, दूसरा व्यक्तिगत। सामुदायिक तालाब के लिए 10 हेक्टेयर कमान एरिया जरूरी है। इसमें सामान्य क्षेत्र में 15 लाख एवं पहाड़ी क्षेत्र में 17 लाख 25 हजार रुपये दिया जाता है। इसकी संरचना 100 फीट लंबी एवं चौड़ी और 10 फीट गहरी है। दूसरी योजना जो व्यक्तिगत है, के लिए कमान एरिया दो हेक्टेयर है। इसकी संरचना 20 मीटर लंबी एवं चौड़ी और तीन मीटर गहरी है। इसके लिए सामान्य क्षेत्र में एक लाख 20 हजार रुपये और पहाड़ी क्षेत्र में एक लाख 38 हजार रुपये दिया जाता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना : 11 वीं पंचवर्षीय योजना में 4 प्रतिशत कृषि दर हासिल करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की शुरूआत 2007 में की गयी थी। यह योजना 12वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी है और झारखंड में लागू है। आरकेवीवाई की एक उपयोजना है ‘कम वर्षा वाले क्षेत्रों का विकास कार्यक्रम’। इसके तहत मछली उत्पादन आधारित संयुक्त कृषि में तालाब निर्माण के लिए 35 हजार रुपये तक का अनुदान दिया जाता है। इसमें छोटे आकार के नर्सरी या रियरिंग या स्टॉकिंग तालाब का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा आरकेवीवाईमें जल संचयन प्रबंधन के लिए एक लाख 20 हजार रुपये और एक लाख 38 हजार रुपये की योजना है। इसमें 20 मीटर लंबा एवं चौड़ा और तीन मीटर गहरा तालाब बनाया जाता है। तालाब जीर्णोद्धार के लिए 10 हजार रुपये दिया जाता है। सिंचाई के लिए बोरिंग में 30 हजार से लेकर 50 हजार तक की योजना है। इसके साथ ही राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरह ही आरकेवीवाई से भी 15 लाख एवं 17.25 लाख रुपये से सामुदायिक तालाब निर्माण किया जा सकता है। इसकी संरचना एनएचएम के तालाब की तरह ही होती है। लाभ लेने के लिए जिला कृषि कार्यालय, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण(आत्मा) कार्यालय और जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क करें।
मुख्यमंत्री किसान खुशहाली योजना : यह योजना झारखंड सरकार की अपनी है। इसकी शुरूआत वर्ष 2008-09 में हुईहै। इसके तहत दो से तीन पंचायत को मिलाकर एक कलस्टर बनाया जाता है। इसमें जलस्रोतों के विकास के लिए आवश्यकतानुसार राशि दी जाती है। इसका कार्यान्वयन कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण के जिला कार्यालय से होता है।
ग्रामीण विकास, कृषि एवं गत्रा, मत्स्य, वन व जल संसाधन विभाग के पास है योजनाएं। प्रस्तुत है विभिन्न विभागों की मुख्य योजनाएं -
वन विभाग
वन विभाग भी गांवों में तालाब खुदवाता है। इसमें कुछ काम मनरेगा से होता है और कुछ काम विभाग की अपनी पौधरोपण योजना से। अब पौधरोपण की हर सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए वन विभाग को कुछ आरंभिक कार्य करवाने होते हैं। इस कार्य को तकनीकी भाषा में इंट्री प्वाइंट कहते हैं। इंट्री प्वाइंट के तहत ग्रामीणों की सहमति से उनके लिए योजनाएं ली जाती हैं। इसमें चापानल, कुआं, चेकडैम एवं तालाब शामिल हैं। आपके गांव के आसपास यदि वनभूमि है तो इसमें पौधरोपण के लिए विभाग के जिलास्तरीय कार्यालय में संपर्क करें। पौधरोपण की योजना अपने गांव-पंचायत के लिए स्वीकृत कराएं और उसमें इंट्री प्वाइंट के तहत तालाब बनवा सकते हैं।
ग्रामीण विकास विभाग
मनरेगा : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) ग्रामीण विकास विभाग की मुख्य योजना है। इसके तहत विभित्र प्रकार के तालाब एवं कुएं का भी निर्माण कराया जाता है। इसमें शतप्रतिशत राशि सरकार से मिलती है। इस योजना अब तक बड़े पैमाने पर कुएं का निर्माण झारखंड में कराया भी गया है। योजना ग्रामसभा बनाती है।
विधायक निधि : विधायकों को हर साल तीन करोड़ रुपये तक की योजनाएं स्वीकृत करने का अधिकार है। इसमें एक है विधायक निधि की जल समृद्धि योजना। इसके तहत एक वित्तीय वर्ष में एक विधायक को 50 लाख रुपये मिलता है। इसके जरिये तालाब निर्माण या जीर्णोद्धार का कार्य कराया जा सकता है। योजना का लाभ लेने के लिए आप अपने विधायक या उपविकास आयुक्त से संपर्क करें।
समेकित जलछाजन विकास कार्यक्रम : समेकित जलछाजन विकास कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) भूमिगत जलस्तर एवं खाद्यात्र उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से वर्ष 2008 में शुरू की गयी है। इसके तहत एक हजार से लेकर पांच हजार हेक्टेयर के भू-भाग का एक कलस्टर बनाकर काम किया जाता है। इस योजना में भी तालाब निर्माण एवं जीर्णोद्धार के लिए आवश्यकतानुसार राशि दी जाती है।
भूमि संरक्षण विभाग
भूमि संरक्षण विभाग से बंजरभूमि विकास कार्यक्रम एवं धान परती भूमि विकास कार्यक्रम के तहत पुराने सार्वजनिक तालाबों की मरम्मत एवं नवीनीकरण का कार्य किया जाता है। इसमें उन तालाबों का चयन किया जाता है जिसका रकवा कम से कम एक हेक्टेयर और कमांड एरिया 25 एकड़ होता है। योजना का कार्यान्वयन पानी पंचायत के जरिये होता है। इस योजना की खासियत यह है कि इसमें मशीन से काम होता है।
मछली पालन विभाग
एफएफडीए : मत्स्य किसान विकास अभिकरण(एफएफडीए) मछली पालन एवं जलीय कृषि के लिए सहायता उपलब्ध कराता है। इसके तहत नया तालाब निर्माण में दो लाख रुपये प्रति हेक्टेयर और नवीनीकरण में 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की की दर से अनुदान दिया जाता है। यह राशि पूरे इस्टीमेट का 20 प्रतिशत होता है। बाकी पैसा बैंक ऋण होता है।
एनएमपीएस : राष्ट्रीय पूरक प्रोटीन मिशन(एनएमपीएस) राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की ही एक उपयोजना है। इसके तहत मछली पालन के लिए दो प्रकार का तालाब निर्माण कराया जाता है। नर्सरी के लिए छह लाख रुपये एवं सदाबहार तालाब के लिए दो लाख रुपये का अनुदान प्रति हेक्टेयर दिया जाता है। झारखंड में इस योजना का कार्यान्वयन मत्स्य विभाग की ओर से किया जाता है। इसके अलावा राज्य सरकार के फंड से भी तालाबों की मरम्मत कराती है।
जल संसाधन विभाग
कृषि सिंचाई के लिए योजनाएं बनाना और उसका कार्यान्वयन करने का मुख्य विभाग जल संसाधन विभाग ही है। इसके तहत वृहत, मध्यम एवं लघु सिंचाई कुल तीन प्रकार की योजनाओं का कार्यान्वयन किया जाता है। इस विभाग के पास अभी दो कार्यक्रम मुख्यरूप से है जिसमें तालाब, आहर, बड़े व्यास का सिंचाई कूप आदि का निर्माण कराया जाता है। एक का नाम त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) है। इसकी शुरूआत वर्ष 1996 में हुई है। दूसरी योजना का नाम जल निकायों की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनर्स्थापन (आरआरआर) है। इसकी शुरूआत 30 जनवरी 2005 को हुई है। इसका उद्देश्य लघु सिंचाई योजनाओं की मरम्मत, नवीनीकरण एवं पुनर्स्थापन करना है। ताकि छोटे-छोटे तलाबों, आहरों, झीलों की जल संचयन क्षमता बढ़ाई जा सके।
कृषि एवं गत्रा विकास विभाग
राष्ट्रीय बागवानी मिशन : झारखंड में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एनएचएम) का कार्यान्वयन उद्यान निदेशालय से होता है। राज्य में यह वर्ष 2005-06 से शुरू हुआ है। मिशन के तहत 17 जिले आते हैं। इसमें देवघर, दुमका, जामताड़ा, पलामू, चतरा, लातेहार, रांची, लोहरदगा, हजारीबाग, सरायकेला, गुमला, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिभमी सिंहभूम, खूंटी एवं रामगढ़। शामिल है। एनएचएम की योजनाओं के लिए 85 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार अनुदान देती है। बाकी पैसा राज्य सरकार लगाती है। आप एनएचएम के तहत अपने आसपास तालाब खुदवा सकते हैं। इसमें दो तरह की योजनाएं हैं। एक सामुदायिक, दूसरा व्यक्तिगत। सामुदायिक तालाब के लिए 10 हेक्टेयर कमान एरिया जरूरी है। इसमें सामान्य क्षेत्र में 15 लाख एवं पहाड़ी क्षेत्र में 17 लाख 25 हजार रुपये दिया जाता है। इसकी संरचना 100 फीट लंबी एवं चौड़ी और 10 फीट गहरी है। दूसरी योजना जो व्यक्तिगत है, के लिए कमान एरिया दो हेक्टेयर है। इसकी संरचना 20 मीटर लंबी एवं चौड़ी और तीन मीटर गहरी है। इसके लिए सामान्य क्षेत्र में एक लाख 20 हजार रुपये और पहाड़ी क्षेत्र में एक लाख 38 हजार रुपये दिया जाता है।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना : 11 वीं पंचवर्षीय योजना में 4 प्रतिशत कृषि दर हासिल करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) की शुरूआत 2007 में की गयी थी। यह योजना 12वीं पंचवर्षीय योजना में भी जारी है और झारखंड में लागू है। आरकेवीवाई की एक उपयोजना है ‘कम वर्षा वाले क्षेत्रों का विकास कार्यक्रम’। इसके तहत मछली उत्पादन आधारित संयुक्त कृषि में तालाब निर्माण के लिए 35 हजार रुपये तक का अनुदान दिया जाता है। इसमें छोटे आकार के नर्सरी या रियरिंग या स्टॉकिंग तालाब का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा आरकेवीवाईमें जल संचयन प्रबंधन के लिए एक लाख 20 हजार रुपये और एक लाख 38 हजार रुपये की योजना है। इसमें 20 मीटर लंबा एवं चौड़ा और तीन मीटर गहरा तालाब बनाया जाता है। तालाब जीर्णोद्धार के लिए 10 हजार रुपये दिया जाता है। सिंचाई के लिए बोरिंग में 30 हजार से लेकर 50 हजार तक की योजना है। इसके साथ ही राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरह ही आरकेवीवाई से भी 15 लाख एवं 17.25 लाख रुपये से सामुदायिक तालाब निर्माण किया जा सकता है। इसकी संरचना एनएचएम के तालाब की तरह ही होती है। लाभ लेने के लिए जिला कृषि कार्यालय, कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण(आत्मा) कार्यालय और जिला मत्स्य कार्यालय से संपर्क करें।
मुख्यमंत्री किसान खुशहाली योजना : यह योजना झारखंड सरकार की अपनी है। इसकी शुरूआत वर्ष 2008-09 में हुईहै। इसके तहत दो से तीन पंचायत को मिलाकर एक कलस्टर बनाया जाता है। इसमें जलस्रोतों के विकास के लिए आवश्यकतानुसार राशि दी जाती है। इसका कार्यान्वयन कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण के जिला कार्यालय से होता है।
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