राजस्थान

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..और नदियों के किनारे घर बसे हैं
Posted on 23 Sep, 2010 01:02 PM मानव सभ्यता और बाढ़ का रिश्ता आदिकाल से चला आ रहा है। अनेक सभ्यताएं नदियों के किनारे पनपी और बाढ़ से नेस्तनाबूद हो गई। आज भी बाढ़ एक ऐसी आपदा है जिसके नाम से ही देश के अनेक गांवों एवं नगरों के लोग थर्रा उठते हैं। एक शोध के अनुसार 1980 से 2008 के दौरान भारत में चार अरब से भी अधिक लोग बाढ़ प्रभावित हुए। प्रति वर्ष बाढ़ से करोड़ों रुपयों के घर-बार, खेती और मवेशी नष्ट हो जाते हैं।
रसातल में पानी
Posted on 21 Sep, 2010 03:09 PM आज धरती की कोख खाली हो रही है, भू-जल रीत रहा है और पीने के पानी के लाले पड रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में 21 अप्रेल, 2009 को चेतावनी के स्वर मुखरित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'देश की जनता पानी की किल्लत के चलते मुश्किल हालात में जीवन काटने को मजबूर है।' हालात यही रहे तो आगे चलकर पानी को लेकर लोग सडकों पर उतर सकते हैं। देश भर में भू-जल के अंधाधुंध दोहन के कारण इसका स्तर लगातार नीचे जा रहा है। कई
रेगिस्तान का पानी
Posted on 28 Aug, 2010 10:30 AM
सोने-चांदी के गहनों और दूसरी कीमती चीजों को तो हर कोई बहुत संभालकर रखता है। मगर राजस्थान के बीकानेर जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर एक गांव ऐसा भी है, जहां पीने के पानी का भंडारण करने वाले तालाब पर सुरक्षा प्रहरी तैनात हैं। ऐसा इसलिए, ताकि ग्रामीण अपनी जरूरत के मुताबिक ही तालाब से पानी लेकर जाएं और उसका सदुपयोग हो। तकरीबन आठ हजार की आबादी वाले इस गांव की प्यास बुझाने के लिए यही एकमात्र ताला
अरावली में अवैध खनन
Posted on 27 Aug, 2010 09:46 AM
राजस्थान की पहचान वैसे तो रेगिस्तान से है। लेकिन अरावली की श्रृखलाएं भी उसके बहुत बडे हिस्से में फैली हुई हैं। अभी तक अरावली की इन श्रृखलाओं को हरा-भरा करने के नाम पर देश और विदेशी मदद के पैसे को अकेला वन विभाग हड़प करता रहा। अब इन श्रृखलाओं से पत्थर और लकडी का दोहन सरकार के दर्जनों विभाग और उनकी आड़ में खुद सरकारें कर रही हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले में अवैध खनन के गोरखधंधे की पड़ताल कर
एक उद्यमी किसान ऐसा भी
Posted on 12 Aug, 2010 09:16 AM किसानों की समस्याएं और सामाजिक कार्यों के चलते 1977 में निर्विरोध वार्ड पंच चुन लिया गया और 1978 में पंचायत के सभी किसानों की भूमि की पैमाइश कराई। पूरे गांव की जमीन को एकत्रित कराकर जमीन की चकबंदी कराई और जमीन के टुकड़ों की समस्या को सदा के लिए दूर कर दिया।

मैंने होश संभाला तब पिताजी लाव-चरस से खेती करते थे। साठ बीघा जमीन थी लेकिन दो बीघा जमीन पर भी मुश्किल से खेती होती थी। ‘भारतीय कृषि मानसून का जूआ है।’ यह उन दिनों बिल्कुल सटीक बैठती थी। सातवीं कक्षा में ही बालक कैलाश के हाथ से कागज कलम छूट गये और हल फावड़े ने उसकी जगह ले ली। वक्त हाथ में कैद मिट्टी के कणों की तरह धीरे-धीरे फिसलता रहा।
50 हजार कुओं की 'मौत'
Posted on 09 Aug, 2010 02:01 PM अलवर, कुओं पर रहट से निकल खेतों में कलकल बहता पानी। नेजू से पानी भर कर लाती महिलाओं के सुरीले गीत, बीते 50 साल में हुई 50 हजार कुओं की मौत के साथ गुम हो गए। अंधाधुंध जलदोहन और अल्पवृष्टि के बाद जिले में महज 10 हजार कुओं में ही पानी बचा है।
सिर से ऊपर बह रहा पानी
Posted on 30 Jul, 2010 07:51 AM धरती से पानी खत्म होता जा रहा है। नदियां, नाले और झीलें सूख रही हैं। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जमीनी पानी दिनोंदिन नीचे खिसकता जा रहा है। पीने के पानी की विकराल होती समस्या के कारण मारपीट, धरना-प्रदर्शन, तोड़फोड़ की नौबत आने लगी है। दूसरी ओर हर वर्ष काफी बरसाती पानी यों ही बेकार चला जाता है, उसके प्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं है। पानी के कुप्रबंधन के कारण प्रकृति की पूरी संरचना ही बिगड़ती लग रही है
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धरती मांगे और बारिश
Posted on 28 Jul, 2010 08:39 AM

माना इस बार अच्छे मानसून की उम्मीद है लेकिन भूमिगत जल स्तर बढने की फिलहाल कोई सूरत नजर नहीं आती। एक मानसून क्या कई मानसूनों की अच्छी बारिशें धरती की सूखी कोख को तर करने के लिए चाहिए। इंसानी करतूतों ने इस जमीं के जल को इतना निचोड लिया है कि धरती पूरी तरह रीत चुकी है। आज जरूरत है बारिश की एक-एक बूंद को सहेजने की। ऎसे में धरती मांग रही है और बारिश। भूजल संकट पर गजेंद्र गौतम की खास रपट-
मैं सुनीता को तब से जानता हूं जब उसने आठवीं बोर्ड की परीक्षा में 80 फीसदी अंक लाकर पूरे गांव को चौंकाया था। बेहद सीमित संसाधनों के जरिए अपनी पढाई करने वाली सुनीता को उम्मीद थी कि दसवीं में इस रिकॉर्ड को कायम रखते हुए वह डॉक्टर बनने के अपने लक्ष्य की तरफ बढेगी। लेकिन पिछले दो साल में हालात बदल गए हैं। सुनीता जिस गांव की रहने वाली है, वह पानी की भीषण किल्लत का सामना कर रहा है। उसके घर के नजदीक लगा हैंडपंप नाकारा हो चुका है। पूरा गांव अब महज एक हैंडपंप पर निर्भर है, जो सुनीता के घर से खासी दूरी पर स्थित है। जब पूरा गांव पेयजल के लिए इसी हैंडपंप पर निर्भर हो तो जाहिर है कि पानी के लिए जद्दोजहद भी बढेगी और लगने वाला समय भी। सुनीता पर भी यह जिम्मेदारी है कि वह परिवार की जरूरतों के लिए पानी इस हैंडपंप से लेकर आए।

सिर्फ 15 दिन का पानी
Posted on 27 Jul, 2010 09:01 AM
चित्तौड़गढ़। चित्तौड़गढ़ शहर का मुख्य पेयजल स्त्रोत भैरड़ा माइंस में नाममात्र का पानी बचा है। मानसून की बेरूखी क चलते शहर के साथ जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के होश भी फाख्ता है। यही स्थिति रही तो माह के अन्त तक भीषण पेयजल संकट खड़ा हो सकता है। संभावित संकट को देखते हुए विभाग अब आपात योजना तैयार कर रहा है।
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