आज धरती की कोख खाली हो रही है, भू-जल रीत रहा है और पीने के पानी के लाले पड रहे हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में 21 अप्रेल, 2009 को चेतावनी के स्वर मुखरित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'देश की जनता पानी की किल्लत के चलते मुश्किल हालात में जीवन काटने को मजबूर है।' हालात यही रहे तो आगे चलकर पानी को लेकर लोग सडकों पर उतर सकते हैं। देश भर में भू-जल के अंधाधुंध दोहन के कारण इसका स्तर लगातार नीचे जा रहा है। कई जगह तो यह खतरनाक स्थिति तक पहुंच गया है। अगर इसी तरह भू-जल स्तर गिरता रहा तो अगले 10-15 वर्षों में गंभीर जल संकट का सामना करना पड सकता है। हो सकता है कि लोगों को पेयजल की एक-एक बूंद के लिए तरसना पडे। राजस्थान में तो वैसे भी नदियां बहुत कम हैं। ऎसे में पानी के दुरू पयोग पर लोग समय रहते नहीं चेते तो राजस्थान में त्राहि-त्राहि मच सकती है। अब भी नौबत यह है कि पांच शहरों और कस्बों में चार दिन बाद पानी मिल रहा है। करीब एक दर्जन कस्बों में 3 दिन और 60 कस्बों में दो दिन बाद पानी की आपूर्ति हो रही है।
यह विडंबना है कि राजस्थान देश के सर्वाधिक शुष्क क्षेत्रों में से एक है। राजस्थान का क्षेत्रफल भारत के भू-भाग का 10.4 प्रतिशत, आबादी 5.4 प्रतिशत तथा पशुधन 11 प्रतिशत है, परन्तु भू-जल सिर्फ 1.72 प्रतिशत और सतही जल तो केवल 1.16 प्रतिशत है। राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा 531 मिलीमीटर है, जैसलमेर में तो केवल 119 मि.मी.। प्रदेश में जमीन से निकाले जा रहे कुल पानी में से आठ प्रतिशत ही पीने के काम आ रहा है। शेष 92 प्रतिशत पानी खेती और उद्योगों में काम लिया जा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में सालाना औसतन 150 मिलीमीटर वर्षा होती है। मानसून नियमित नहीं है। एक-दो नदियां ही बारहमासी हैं। राज्य के सभी सतही जल संसाधन मुख्य रू प से दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में सीमित हैं। राज्य का 60 प्रतिशत भू-भाग रेगिस्तान है। यह मुख्यत: राज्य के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसका अपना कोई सुपरिभाषित जल निकास बेसिन नहीं है एवं जिसकी सिंचाई रावी-व्यास तथा सतलुज नदियों से प्राप्त जल पर निर्भर है। राजस्थान में 65 प्रतिशत खेती वर्षा पर ही निर्भर है, जिससे राजस्थान के निवासियों को किसी न किसी रू प में लगभग हमेशा ही अकाल का सामना करना पडता है।
आज पानी के अनियंत्रित दोहन पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। वर्षा के पानी के संचयन, भू-जल संरक्षण एवं कृत्रिम पुनर्भरण, भू-जल विकास के विनियम और जल के सदुपयोग की 'जल-संस्कृति' और 'जल-क्रांति' की आवश्यकता है। इसके लिए आमजन में जल संरक्षण, पुनर्भरण एवं सदुपयोग के बारे में चेतना जागृत करनी चाहिए। गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए वर्षा जल का संग्रहण करना होगा, साथ ही ट्यूबवैलों व हैण्डपम्पों की अंधाधुंध खुदाई पर रोक लगानी होगी। राज्य में जल्द ही पानी के अनाप-शनाप दोहन को नहीं रोका तो कुछ साल बाद लोगों को पीने का पानी मुहैया कराना मुश्किल हो जाएगा। राज्य सरकार के समक्ष जल नीति व भू-जल विकास एवं प्रबंध के विनियमन और नियंत्रण कानून का प्रस्ताव 3 साल से विचाराधीन है। अब इसे अविलंब लागू करने की जरू रत है। बिना कानून के भू-जल दोहन पर नियंत्रण संभव नहीं होगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री ने पानी की समस्या पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि जनसहयोग के बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं है। उनकी चिंता है कि भू-जल का स्तर काफी नीचे चला गया है। पानी आएगा कहां से जनता में अब भी यह धारणा है कि जल संसाधन विकास व प्रबंधन मुख्यत: राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है। आज सबसे बडी प्राथमिकता यह है कि घर का पानी घर में, खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में, 'अमृत' की तरह सहेजा जाए। समय रहते, राज और समाज, दोनों नहीं चेते, तो भविष्य अंधकारमय होगा।
ज्ञानप्रकाश पिलानिया
यह विडंबना है कि राजस्थान देश के सर्वाधिक शुष्क क्षेत्रों में से एक है। राजस्थान का क्षेत्रफल भारत के भू-भाग का 10.4 प्रतिशत, आबादी 5.4 प्रतिशत तथा पशुधन 11 प्रतिशत है, परन्तु भू-जल सिर्फ 1.72 प्रतिशत और सतही जल तो केवल 1.16 प्रतिशत है। राजस्थान की औसत वार्षिक वर्षा 531 मिलीमीटर है, जैसलमेर में तो केवल 119 मि.मी.। प्रदेश में जमीन से निकाले जा रहे कुल पानी में से आठ प्रतिशत ही पीने के काम आ रहा है। शेष 92 प्रतिशत पानी खेती और उद्योगों में काम लिया जा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में सालाना औसतन 150 मिलीमीटर वर्षा होती है। मानसून नियमित नहीं है। एक-दो नदियां ही बारहमासी हैं। राज्य के सभी सतही जल संसाधन मुख्य रू प से दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में सीमित हैं। राज्य का 60 प्रतिशत भू-भाग रेगिस्तान है। यह मुख्यत: राज्य के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित है, जिसका अपना कोई सुपरिभाषित जल निकास बेसिन नहीं है एवं जिसकी सिंचाई रावी-व्यास तथा सतलुज नदियों से प्राप्त जल पर निर्भर है। राजस्थान में 65 प्रतिशत खेती वर्षा पर ही निर्भर है, जिससे राजस्थान के निवासियों को किसी न किसी रू प में लगभग हमेशा ही अकाल का सामना करना पडता है।
आज पानी के अनियंत्रित दोहन पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। वर्षा के पानी के संचयन, भू-जल संरक्षण एवं कृत्रिम पुनर्भरण, भू-जल विकास के विनियम और जल के सदुपयोग की 'जल-संस्कृति' और 'जल-क्रांति' की आवश्यकता है। इसके लिए आमजन में जल संरक्षण, पुनर्भरण एवं सदुपयोग के बारे में चेतना जागृत करनी चाहिए। गिरते भू-जल स्तर को रोकने के लिए वर्षा जल का संग्रहण करना होगा, साथ ही ट्यूबवैलों व हैण्डपम्पों की अंधाधुंध खुदाई पर रोक लगानी होगी। राज्य में जल्द ही पानी के अनाप-शनाप दोहन को नहीं रोका तो कुछ साल बाद लोगों को पीने का पानी मुहैया कराना मुश्किल हो जाएगा। राज्य सरकार के समक्ष जल नीति व भू-जल विकास एवं प्रबंध के विनियमन और नियंत्रण कानून का प्रस्ताव 3 साल से विचाराधीन है। अब इसे अविलंब लागू करने की जरू रत है। बिना कानून के भू-जल दोहन पर नियंत्रण संभव नहीं होगा।
राजस्थान के मुख्यमंत्री ने पानी की समस्या पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि जनसहयोग के बिना इस समस्या का समाधान संभव नहीं है। उनकी चिंता है कि भू-जल का स्तर काफी नीचे चला गया है। पानी आएगा कहां से जनता में अब भी यह धारणा है कि जल संसाधन विकास व प्रबंधन मुख्यत: राज्य सरकार का उत्तरदायित्व है। आज सबसे बडी प्राथमिकता यह है कि घर का पानी घर में, खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में, 'अमृत' की तरह सहेजा जाए। समय रहते, राज और समाज, दोनों नहीं चेते, तो भविष्य अंधकारमय होगा।
ज्ञानप्रकाश पिलानिया
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