राजस्थान

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बिन पानी सब सून
Posted on 26 Jul, 2010 05:05 PM
पानी की यही राम कहानी, बिन पानी आंखों में पानी। राजस्थान, जहां पानी की मोल घी से भी ज्यादा माना जाता है, एक बार फिर से पानी के लिए तरस रहा है। दूरदराज के गांवों की बात तो दूर इस बार राजधानी जयपुर के बाशिंदे तक पानी के लिए तरसने को मजबूर हो गए हैं। गुलाबी नगरी में ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि यहां के लोग पानी के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हो रहे हैं और सरकार को पुलिस के पहरे में पानी बांटने को विवश होना पड़ रहा है।

यह सब हो रहा है अब तक की मानसून की बेरुखी के चलते। यह पहला साल नहीं है जब मानसून राजस्थान से रूठा हो। आजादी के बाद के कुछ सालों को छोड़ दें तो ज्यादातर समय राजस्थान को अकाल से मुकाबला करने को विवश होना पड़ा है।
कायम है आशा की किरण
Posted on 14 Jul, 2010 03:20 PM
आज जब युवाओं पर भौतिकवादी होने का आरोप लगाया जाता है, अनेक युवा सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में कार्य करते हुए मिसाल बन रहे हैं। एक ऐसा ही नाम है आलिम हाजी का। अप्रवासी भारतीय आलिम का जन्म एवं शिक्षा अमेरिका में हुई है, लेकिन उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र राजस्थान के झुंझनु जिले के छोटे से गांव बगड़ को चुना है। आलिम के साथ करीब आधा दर्जन युवाओं को टीम ने बगड़ में देश के पहले महिला बीपीओ का आगाज क
विदेशी धन पर 'जंगलराज'
Posted on 05 Jul, 2010 09:18 AM
जंगलों की सुरक्षा और विकास के लिए जापान सरकार की ओर से दी गई सहायता राशि पर वन विभाग के अफसर जमकर मनमानी कर रहे हैं। विभाग के लगभग सभी डिवीजन में इस बजट से पौधरोपण, एनीकट आदि के काम किए जा रहे हैं। कई जगहों पर एनीकट बनाने का यह काम कागजों में ही पूरा करके बिल फाइनल हो रहे हैं और चेक भी काट दिए गए हैं।
सिंधु नदी-प्रणाली और राजस्थान
Posted on 15 Jun, 2010 10:13 AM थार के विशाल मरुस्थल में स्थित सिंधु नदी-प्रणाली (इन्डस रीवर सिस्टम) विश्व की एक महानतम नदी प्रणाली है। इस प्रणाली में सिंध नदी के अलावा उसकी प्रमुख सहायक नदियां , झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलज और लुप्त प्राय सरस्वती शामिल है। भारत के इतिहास में युग में प्रवेश करने के पूर्व भी पंजाब, सिंधु और राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग सिंधु नदी प्रणाली से लाभान्वित होते रहे थे। गत कुछ दशकों मे की गई पुरातत्व सम्बन्धी खोज के फलस्वरूप यह सिद्ध हो गया है कि ईसा के 2300 वर्ष पूर्व गंगानगर जिले में स्थित कालीबंगा सभ्यता का केंद्र था, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है। कालीबंगा महानदी सरस्वती के किनारे पर स्थित थी।

यद्यपि सिंधु घाटी में बारह महीनों बहने वाली नदियां विद्यमान थी, तथापि इस क्षेत्र में सिंचाई उक्त नदियों के किनारे-किनारे
सिंधु नदी तंत्र और राजस्थान
Posted on 15 Jun, 2010 10:07 AM जिस गति से देश में पानी का संकट गहराता जा रहा है, वह निश्चय ही राष्ट्रीय विकास नीति निर्धारकों के समक्ष एक अहम मुद्दा बनता जा रहा है और समय रहते हुए जल नियोजन के लिए सटीक प्रयास नहीं किए गये तो राष्ट्रीय विकास गति मन्थर पड़ जाएगी, यद्यपि यह निश्चित है कि बदली हुई पर्यावरणीय दशाओं के कारण समाप्त हुए भू-जल स्रोतों का पुनर्भरण तो नहीं हो सकता किन्तु जल की खपत को नियंत्रित कर उसके विकल्प तलाशे जा सकते हैं, जैसे कठोर जनसंख्या नियंत्रण, शुष्क-कृषि पद्धतियां एवम् जल उपयोग के लिए राष्ट्रीय राशनिंग नीति इत्यादि। साथ ही के. एल. राव (1957)द्वारा सुझाए गए नवीन नदी प्रवाह ग्रिड सिस्टम का अनुकरण एवम् अनुसंधान कर हिमालियन एवम् अन्य नदियों को मोड़ कर देश के आन्तरिक जल न्यून वाले सम्भागों की ओर उनके जल को ले जाया जा सकता है। सम्प्रति देश की समस्त नदियों के जल का 25 प्रतिशत भाग ही काम में आता है। शेष 75 प्रतिशत जल समुद्र में गिर कर सारा खारा हो जाता है।

संकट में है सुजान गंगा
Posted on 17 May, 2010 08:22 AM
राजस्थान के भरतपुर जिले में एक सुजान गंगा है. ऐतिहासिक महत्व की ये नहर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष के साथ लोगों के लिए मुसीबत बन गई है. अब एक बार फिर न्यायालय ने सुजान गंगा के उद्धार के लिए हस्तक्षेप किया है. देखना ये है कि कोर्ट की फटकार के बाद सरकारी अमला कुछ करता है या फिर वो ही ढाक के तीन पात वाली बात होकर रह जायेगी.
जल अनुशासन ही समाधान
Posted on 16 May, 2010 08:57 AM

सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में समाज को अपने ऊपर निर्भर बनाने की कोशिश की है। सस्ता विकल्प था समाज की पहल से तालाब, कुएं, बेरियां खुदवा कर समाज के सुपुर्द कर देना। आज भी बिप्रासर का तालाब इसलिए सिर उठाए खड़ा है, क्योंकि वहां के समाज ने उसके आगोर में कोई अतिक्रमण स्वीकार नहीं किया।

राजस्थान के 33 में से 26 जिले अकालग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं। जैसलमेर और बाड़मेर तो अनंतकाल से ही 'सूखाग्रस्त' रहे हैं, लेकिन वहां पानी के लिए कभी दंगा नहीं हुआ, जैसा इंदिरा गांधी नहर का लाभ पा रहे श्रीगंगानगर, बीकानेर या हनुमानगढ़ में हुआ। यहां के समाज ने कमतर पानी की उपलब्धता के साथ जीना सीखा है। पानी के परिवहन के बजाय पानी के अनुशासन के साथ जीना सीखा है। ऎसा नहीं कि बीकानेर, श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के लोगों में ये गुण नहीं थे। वे भी उतने ही गुणवान रहे हैं और अनुशासित भी। लेकिन नहर के झुंझुने ने उनका अनुशासन बहुत पहले तोड़ दिया।
रेगिस्तान का हीरो फ़रहाद कॉंट्रेक्टर
Posted on 16 May, 2010 08:38 AM
जिस समय फ़रहाद कॉंट्रेक्टर ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें यूनिवर्सिटी में पुस्तकों में अपना सिर नहीं खपाना है, न ही उन्हें “अहमदाबाद” जैसे चमक-दमक वाले शहर में ऐशोआराम का जीवन बिताने का कोई शौक था। बल्कि आम युवाओं से हटकर फ़रहाद का एक स्वप्न था, गाँव में जाकर रहना और काम करना। यह सब उनके पिता फ़िरोज़ कॉण्ट्रेक्टर की शिक्षाओं और संस्कारों का ही असर था कि फ
राजस्‍थान के रास्‍ते महाविनाश की दस्‍तक
Posted on 15 May, 2010 07:03 AM

रेगिस्तान के सामने दीवार बनकर खड़ी अरावली की पहाड़ियां अब नंगी हो गई हैं और मरुस्थल की ताक़त के समक्ष दम तोड़ने लगी हैं. उपग्रह से लिए गए चित्र बताते हैं कि किस तरह रेगिस्तान इस अरावली की कमज़ोर हो चुकी दीवार में सेंध लगाकर अपना आकार बढ़ाने पर आमादा है. इन चित्रों में साफ नज़र आता है कि रेगिस्तान की रुकावट बनी अरावली की पहाड़ियों में नौ दर्रे बन गए हैंजहां से रेगिस्तान का प्रसार हो रहा है. इन दर्रों के ज़रिए रेत लगातार दक्षिणी राजस्थान की ओर बढ़ रही है.

यह पंचांग बांचने वाले किसी पंडित की भविष्यवाणी नहीं है. यह सरहद पार के किसी दुश्मन की साजिश भी नहीं है. यह हमारी अपनी करनी है, जिसका फल हमें भुगतना पड़ेगा. जी हां, राजस्थान के रास्ते महाविनाश देश में दस्तक दे रहा है. थार मरुस्थल के लिए पहचाना जाने वाला राजस्थान हमें अपने मतलबपरस्त और अदूरदर्शी कामों के लिए सजा देने का ज़रिया बनेगा. जब यह महाविनाश आएगा तो किसी की तिजोरी में जमा धन काम नहीं आएगा. कोई चाहे कितना अमीर या पावरफुल हो, सब इसकी जद में होंगे. और, यह भयानक नज़ारा अब हमसे दूर नहीं है. हमारी अपनी ही बनाई गई व्यवस्था में वह एक-एक क़दम आगे बढ़ाता जा रहा है. मौजूदा पीढ़ी शायद इसकी आहट ही महसूस कर रही हो, लेकिन आने वाली पीढ़ियों को हमारे कर्मों का फल ज़रूर भुगतना पड़ेगा.

बाईबिल में जल का महत्व
Posted on 08 Feb, 2010 01:02 PM जल स्वयं में देवता, देवताओं का अर्पण और पितरों का तर्पण। जिन्दा को जल, जलने पर जल, मरने पर जल, कितना महत्वपूर्ण है जल। तभी तो आज भी प्रथम अनिवार्य आवश्यकता जल ही जीवन है। इस तथ्य को दुनिया की सभी सरकारें एवं सामाजिक संस्थाएँ आत्मसात् किये हुए हैं। आज के उपभोक्तावादी युग में जल का प्रबंधन एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में स्वीकृत हो रहा है। पुरातन युग में विशेष जल का प्रबंध धार्मिक अनुष्ठानों को सफल और
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