राजस्थान

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सूखे से निपटती छोटी जल परियोजनाएं
Posted on 30 Jun, 2012 10:31 AM

बेलू वाटर नामक संस्थान ने कोरसीना बांध परियोजना के लिए 18 लाख रुपये का अनुदान देना स्वीकार कर लिया। इस छोटे बांध की योजना में न तो कोई विस्थापन है न पर्यावरण की क्षति। अनुदान की राशि का अधिकांश उपयोग गांववासियों को मजदूरी देने के लिए ही किया गया। मजदूरी समय पर मिली व कानूनी रेट पर मिली। इस तरह गांववासियों की आर्थिक जरूरतें भी पूरी हुईं तथा साथ ही ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में पानी रोकने का कार्य तेजी से आगे बढ़ने लगा।

जहां एक ओर बहुत महंगी व विशालकाय जल-परियोजनाओं के अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहे हैं, वहां दूसरी ओर स्थानीय लोगों की भागेदारी से कार्यान्वित अनेक छोटी परियोजनाओं से कम लागत में ही जल संरक्षण व संग्रहण का अधिक लाभ मिल रहा है।
जल संकट दूर करने के सफल प्रयास
Posted on 16 Feb, 2012 11:27 AM

कोरसीना बांध के पूरा होने के एक वर्ष बाद ही इससे लगभग 50 कुओं का जल स्तर ऊपर उठ गया। अनेक हैंडपंपों व तालाबों को भी लाभ मिला। कोरसीना के एक मुख्य कुएं से पाइपलाइन अन्य गांवों तक पहुंचती है जिससे पेयजल लाभ अनेक अन्य गांवों तक भी पहुंचता है।यदि यह परियोजना अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाई तो इसका लाभ 20 गांवों के लोगों, किसानों को मिल सकता है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव-जंतुओं, पक्षियों की जो प्यास बुझेगी वह अलग है।

जहां किसी महानगर के पॉश इलाकों में मात्र एक फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए तक पहुंच रही है, वहां इससे भी कम धन राशि में पेयजल संकट झेल रहे 40 गांवों के लगभग 50,000 लोगों व 1,50,000 पशुओं का संकट दूर किया जा सकता है, पर इसके लिए जरूरी है स्थानीय गांववासियों की भागेदारी से काम करना। यह अनुकरणीय उदाहरण राजस्थान के जयपुर व अजमेर जिलों में तीन स्वैच्छिक संस्थाओं ने प्रस्तुत किया है। कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गांवों में पेयजल का संकट इतना बढ़ गया था कि कुछ वर्षों में इन गांवों के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल, राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लॉक) में स्थित यह गांव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। इसका प्रतिकूल असर आसपास के गांवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।
रेत में लोटती हरियाली
Posted on 13 May, 2011 11:24 AM

धरती की जल-ग्रहण क्षमता बढ़ गई है। इसके साथ अनेक वन्य जीवों व पक्षियों को जैसे नवजीवन मिल गया है। एक समय बंजर सूख रही इस धरती पर जब हम घूम रहे थे तो पक्षियों के चहचहाने के बीच हमें नीलगाय के झुंड भी नजर आए। वह हरियाली उनके लिए भी उतना ही वरदान है जितना गाँववासियों के लिए।

सूखी भूमि को हरा-भरा करने का कार्य बहुत जरूरी है, सब मानते हैं, फिर भी न जाने क्यों पौधरोपण व वनीकरण के अधिकांश कार्य उम्मीद के अनुकूल परिणाम नहीं दे पाते हैं। खर्च अधिक होने पर भी बहुत कम पेड़ ही बच पाते हैं। इस तरह के अनेक प्रतिकूल समाचारों के बीच यह खबर बहुत उत्साहवर्धक है कि राजस्थान में सूखे की अति प्रतिकूल स्थिति के दौर में भी एक लाख से अधिक पेड़ों को पनपाने का काम बहुत सफलता से किया गया है।

रेत के टीलों पर उगा दिए पेड़
Posted on 23 Apr, 2011 10:10 AM

जोधपुर. रेत के धोरों (टीलों) पर रेत ही नहीं थमती। पेड़ की जड़ें थमना तो दूर की बात है। लेकिन नहीं! इंसान का जज्बा यह कारनामा भी कर सकता है। जोधपुर के ओसियां क्षेत्र का एक गांव है, एकलखोरी। यहां के राणाराम खींचड़ यही कमाल कर रहे हैं।

राणाराम
लाख जतन का लाखोलाव
Posted on 23 Apr, 2011 09:02 AM

हमारा यह छोटा-सा शहर मूंडवा इस मामले में एकदम अनोखा है। नगरवासियों और नगरपालिका- दोनों ने मिलकर यहां के तालाबों की रखवाली की है। और शहर को इन्हीं से मिलता है पूरे वर्ष भर मीठा पानी पीने के लिए। शहर के दक्षिण में न जाने कितने सौ बरस पहले बने लाखोलाव तालाब का यहां विशेष उल्लेख करना होगा।

हमारा शहर बड़ा नहीं है। पर ऐसा कोई छोटा-सा भी नहीं है। इस प्यारे से शहर का नाम है मूंडवा। यह राजस्थान के नागौर जिले में आता है। नागौर से अजमेर की ओर जाने वाली सड़क पर कोई 22 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में है यह मूंडवा। आबादी है कोई चौदह हजार। इसकी देखरेख बाकी छोटे बड़े नगर की तरह ही एक नगरपालिका के माध्यम से की जाती है। शहर छोटा है पर उमर में बड़ा है, काफी पुराना है। इसकी गवाही यहां की सुंदर हवेलियां देती हैं। समय-समय पर इस शहर से कई परिवार बाहर निकले और पूरे भारत वर्ष में व्यापार के लिए गए। हां पर यहां की खास बात यह है कि ये लोग इसे छोड़कर नहीं गए। साल भर ये लोग कोई न कोई निमित्त से,
अपने हाथों रची गांव की जीवन रेखा
Posted on 21 Apr, 2011 09:21 AM

ग्रामीणों ने तालाब खरीदा, नहर बनाई और बढ़ गया अंटाली गांव में जलस्तर
आसींद (भीलवाड़ा)/उदयपुर.गांव वालों ने मिल कर निजी तालाब को खरीदा। फिर अपने श्रम और अर्थ दान को जारी रखते हुए नहर बनाई। बाद में इस संपदा को सरकार से भी जोड़ा।

तरुण भारत संघ
Posted on 14 Jan, 2011 02:44 PM ‘तरुण भारत संघ’ ने पिछले 25 वर्षों में देशभर में दस हजार से ज्यादा जोहड़-तालाब बनवाये हैं। इस संगठन के कार्यकर्ताओं ने समुदायों को सचेत करके जल की समझ बढ़ाकर और उन्हें जल सहेजने वाले कार्यों में जोड़कर तथा जल संरक्षण व जल के अनुशासित उपयोग के संस्कार बनाकर और कम पानी में पैदा होने वाले अन्न उत्पादन को बढ़ावा देकर सात नदियों को पुनर्जीवित किया है।
फिल्टरेशन पिट से बढ़ेगा कुओं का जल स्तर
Posted on 03 Jan, 2011 09:49 AM

वर्षा की कमी व अत्यधिक दोहन के कारण भू जल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। इससे भू जल भंडारण में कमी हो रही है। इसे दूर करने के लिए राज्य सरकार ने नाबार्ड की सहायता से कूप पुनर्भरण योजना बनाई। इसमें कुएं के समीप फिल्ट्रेशन पिट बनाकर कुएं का जल स्तर बढ़ाया जाएगा। इस पिट में वर्षा का जल इकट्ठा किया जाएगा। इसका ग्राम पंचायत क्षेत्र सिलोरा में पहला प्रदर्शनीय प्लांट लगाने के लिए भू-जल विभाग के पदाध

दक्षिण-पूर्व राजस्थान में जल संरक्षण
Posted on 14 Dec, 2010 10:46 AM

निम्न तथा अत्यंत अनिश्चित फसल उत्पादन और भू-जल के तेजी से गिरते स्तर अर्ध-शुष्क वर्षा-पोषित क्षेत्रों के लिए बड़ी चुनौतियाँ हैं जिन्हें हल किया जाना जरूरी है। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में अधिक और अनियमित वर्षा तथा मिट्टी की अल्प पारगम्यता के कारण भारी मात्रा में वर्षा जल धरातल पर बह जाता है और गंभीर अपरदन के खतरे उत्पन्न होते हैं। इस क्षेत्र में जल का संरक्षण, बेंच टैरेस के जरिए खेतों में वर्षा ज

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