राजस्थान

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जोहड़ आंदोलन ने उबारा जल संकट से (अलवर जिले के विशेष संदर्भ में)
Posted on 17 Aug, 2014 11:27 PM जोहड़ का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है लेकिन मध्यकाल आते-आते लोगों
गांवों के लिए भी बन रहा है मास्टर प्लान
Posted on 06 Aug, 2014 04:23 PM आजादी के बाद से ही हमारी सरकारों का पूरा फोकस शहरों की तरफ रहा। शहरों की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर मास्टर प्लान बनें, मगर गांव उनकी नजरों से उपेक्षित ही रहा। यही वजह है कि तरक्की की राह में आज गांव काफी पीछे छूट गए हैं। गांवों में न तो सड़कें दुरुस्त हैं और न ही बुनियादी सहुलियतों के लिए कोई जगह। शहरों के साथ-साथ यदि गांवों के लिए भी मास्टर प्लान बनता, तो उनकी भी तस्वीर कुछ और जुदा होती।
प्रदेश की नदियों को जोडऩे की योजना का खाका तैयार
Posted on 19 Jun, 2014 03:23 PM

सीएम की मंजूरी का इंतजार, योजना की प्रगति पर निगरानी के लिए विशेष प्रकोष्ठ गठित

अरवरी जल संसद
Posted on 09 Jun, 2014 01:51 PM
अरवरी जल संसद की कहानी, राजस्थान के एक पिछड़े इलाके में कम पढ
arvari sansad
कैसे सूखी नदी
Posted on 04 May, 2014 10:18 AM भारत के गंवई ज्ञान ने तरुण भारत संघ को इतना तो सिखा ही दिया था कि जंगलों को बचाए बगैर जहाजवाली नदी जी नहीं सकती। लेकिन तरुण भारत संघ यह कभी नहीं जानता था कि पीने और खेतों के लिए छोटे-छोटे कटोरों में रोक व बचाकर रखा पानी, रोपे गए पौधे व बिखेरे गए बीज एक दिन पूरी नदी को ही जिंदा कर देंगे। जहाजवाली नदी के इलाके में भी तरुण भारत संघ पानी का काम करने ही आया था, लेकिन यहां आते ही पहले न तो जंगल संवर्द्धन का काम हुआ और न पानी संजोने का। अपने प्रवाह क्षेत्र के उजड़ने-बसने के अतीत की भांति जहाजवाली नदी की जिंदगी में भी कभी उजाड़ व सूखा आया था। आपके मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर एक शानदार झरने के बावजूद कैसे सूखी जहाजवाली नदी? तरुण भारत संघ जब अलवर में काम करने आया था...तो सूखे कुओं, नदियों व जोहड़ों को देखकर उसके मन में भी यही सवाल उठा था।

इस सवाल का जवाब कभी बाबा मांगू पटेल, कभी धन्ना गुर्जर...तो कभी परता गुर्जर जैसे अनुभवी लोगों ने दिया। प्रस्तुत कथन जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र के ही एक गांव घेवर के रामजीलाल चौबे का है।

चौबे जी कहते हैं कि पहले जंगल में पेड़ों के बीच में मिट्टी और पत्थरों के प्राकृतिक टक बने हुए थे। अच्छा जंगल था। बरसात का पानी पेड़ों में रिसता था। ये पेड़ और छोटी-छोटी वनस्पतियां नदी में धीरे-धीरे पानी छोड़ते थे। इससे मिट्टी कटती नहीं थी।
River
जहाज का जलागम
Posted on 04 May, 2014 10:06 AM

उजड़ते-बसते तट


पता नहीं, ऊमरी-देवरी में बेटी ब्याह की कहावत पहले की है या बाद की। पर सच है कि ऊमरी को हजारों साल पहले उम्मरगढ़ के नाम से जाना जाता था। कालांतर में उम्मरगढ़ किसी कारण नष्ट हो गया। ऐसा ही देवरी नगर के साथ भी हुआ। समय बीता। नगर की जगह विशाल जंगल आबाद हो गया। कालांतर में ये स्थान पुनः धीरे-धीरे बसे। देवरी गांव में भाभला गोत्र के मीणा आकर बस गए। पर जाने क्यों बाद में उनकी संख्या धीरे-धीरे कम होती चली गई। सन् 1933 में इस गोत्र का एकमात्र सदस्य दल्ला पटेल ही बचा था। जहाजवाली नदी के जलागम में जहाज नामक स्थान की खास महत्ता है। इस स्थान पर एक अखंड झरना है। यह झरना अमृतधारा की भांति है। स्वच्छ और निर्मल प्रवाह का स्रोत! यहां पर हनुमान जी का एक मंदिर है।

नामकरण - कहते हैं कि पौराणिक काल में यहां जाजलि ऋषि ने तपस्या की थी। जाजलि ऋषि बड़े विद्वान और वेद-वेदांगों के ज्ञाता तो थे ही, वह आयुर्वेद के सोलह प्रमुख विशेषज्ञों में से भी एक थे।

धन्वतरिर्दिवोदासः काशिराजोSश्विनी सुतौ। नकुलः सहदेवार्की च्यवनों जनको बुधः।।
जाबलो जाजलिः पैलः करभोSगस्त्य एवं चSएते वेदा वेदज्ञाः षोडश व्याधिनाशका:।।


अर्थात् धन्वन्तरि, दिवोदास, काशिराज, दोनों अश्वनि कुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध जाबाल, जाजलि, पैल, करभ और अगस्त्य-ये सोलह विद्वान वेद-वेदांगों के ज्ञाता तथा रोगों के नाशक वैद्य हैं।
पानी से धानी तक का सफर
Posted on 13 Mar, 2014 12:32 PM

परंपरा से मिला रास्ता


जब कोई व्यक्ति अथवा समुदाय समाज के भले के लिए काम करता है तो भगवान भी उसकी मदद करता है। इसीलिए तो अगले ही वर्ष ‘मोरे वाले ताल’ ने अपने जलागम क्षेत्र से बहकर आई हुई बरसात की हर एक बूंद को अपने आगार में रोक लिया। एक साथ इतना सारा पानी देखकर लोग हर्षातिरेक से आनंद-विभोर हो उठे। लेकिन दूसरे ही क्षण यह सोच कर चिंतित भी हो गए कि इतना बड़ा ताल है, कहीं टूट गया तो…? सब ने मिल कर चिंतन किया, और अंततः समाधान भी खोज लिया। बस! फिर क्या था? सभी स्त्री-पुरुष व बच्चे अपना-अपना फावड़ा-परात लेकर पाल की सुरक्षा के लिए तैनात रहने लगे। डांग में पानी कैसे आया? ‘महेश्वरा नदी’ का पुनर्जन्म कैसे हुआ? डांग के लोगों के चेहरे पर रौनक कैसे आई? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा इस काम की पृष्ठभूमि में जाना होगा। पानी के काम का प्रारम्भ तरुण भारत संघ ने सर्वप्रथम वर्ष 1985-86 ई. में अलवर जिले की तहसील थानागाजी के गांव गोपालपुरा से शुरू किया था और सुखद आश्चर्य की बात है कि पानी को संरक्षित करने की प्रेरणा भी हमें गोपालपुरा गांव के ही एक अनुभवी बुजुर्ग मांगू पटेल से ही मिली थी। मांगू पटेल की प्रेरणा से, सबसे पहले इस गांव में चबूतरे वाली जोहड़ी का काम शुरू हुआ था।
अरवरी संसद : स्वनुशासन से सुशासन का एक सफल प्रयोग
Posted on 25 Jan, 2014 12:50 PM इस काम की सबसे बड़ी बात यह रही कि इसने संवाद, सहमति, सहयोग, सहभाग
Arvari parliament
लापोड़िया गांव : खबरों में नहीं बहा
Posted on 09 Nov, 2012 10:27 AM हम छोटे-छोटे लोगों ने जैसी छोटी-छोटी योजनाएं बनाईं, हमारे बड़े देवता इंद्र ने उनको अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया। और हमें जो प्रसाद बांटा है उसका हम ठीक-ठीक वर्णन भी आपके सामने नहीं कर पाएंगे। अब हमारे गांव में खूब अच्छी बरसात आए, तो आनंद आता है, बाढ़ नहीं आती। पानी तालाबों में भरता है, विशाल गोचर में थोड़ी देर विश्राम करता है, धरती के नीचे उतरता है। नीचे से धीरे-धीरे झिरते हुए गांव के कुंओं में उतरता है। हमारे यहां तब तक पानी गिरा नहीं था। अगस्त का पहला हफ्ता बीत गया था। आसपास, दूर-दूर सूखा ही सूखा था। सूखा राहत का काम भी शुरू हो रहा था कि अगले दिन बरसात आ गई। सात अगस्त 2012 तक सूखा। और ये लो भई आठ अगस्त से राजस्थान में राजधानी जयपुर समेत दूर-दूर बाढ़ आ गई। बाढ़ राहत की मांग उठने लगी और वह काम भी शुरू हो गया!
इजराइली सहयोग की फसल
Posted on 24 Aug, 2012 03:06 PM इजराइल के सहयोग से भारत के कई सूखे इलाकों में इजराइली जल तकनीकों का इस्तेमाल कर फसल उगाने की कोशिश हो रही है और कोशिश कामयाबी की मिसाल भी बनती जा रही है। बीकानेर , महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों, हरियाणा के राजस्थान से जुड़े इलाकों में इजराइली जल तकनीकों से भरपूर फसल ली जा रही है। कामयाबी की नई इबारत के बारे में बता रहे हैं कुणाल मजूमदार।

राजस्थान में हुए इस प्रयोग से उत्साहित इजराइल अब पूरे देश में खेती और बागवानी के अलग-अलग क्षेत्रों में यही सफलता दोहराने की तैयारी में है। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया भी जा चुका है जब 2008 में दोनों देशों के लिए बीच एक कृषि सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए। दिसंबर, 2011 में भारत और इजराइल के कृषि मंत्रालयों ने तीन साल की एक योजना को आखिरी स्वरूप दिया। इसमें कृषि विशेषज्ञों के संयुक्त दौरे, परिचर्चाएं और किसानों के लिए कोर्स जैसी चीजें शामिल हैं।

राजस्थान के बीकानेर से दक्षिण-पूर्व की तरफ बढ़ने पर हर तरफ या तो रेत पसरी नजर आती है या फिर छोटी-मोटी झाड़ियां।
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