ओडिशा

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आपदा और प्रबंधन
Posted on 26 Oct, 2013 04:11 PM भारतीय मौसम विभाग के अनुमान अकसर सही साबित नहीं होते, इसलिए उसकी व
Disaster management
खनन के खिलाफ एक बयान
Posted on 27 Sep, 2013 12:14 PM स्थानीय स्तर से लेकर दुनिया के स्तर तक खनिज और खदानें आज संकटों, संघर्षों, विवादों और घोटालों के केंद्र में हैं। इस स्थिति का तकाजा है कि खनन के बारे में बुनियादी स्तर पर पुनर्विचार किया जाए। धरती की कोख से कितना खनिज निकालें और कब तक, इस खनिज का आखिरकार क्या उपयोग होता है और वह कितना जरूरी है, इसमें किसके हित हैं और किसका नुकसान है, अंधाधुंध खनन के पीछे कौन सी ताक़तें हैं, विकास वृद्धि, भोगवाद, प
नियमगिरि में जनता की जीत
Posted on 26 Sep, 2013 04:09 PM उल्लेखनीय है कि माओवादियों ने परचा बांटकर लोगों को ग्रामसभा/(पल्लीस
बांधों से बढ़ गया बाढ़ का संकट
Posted on 03 Sep, 2013 04:10 PM होशंगाबाद जिले की दुधी, मछवासा, ओल, कोरनी आदि सभी नदियां सतपुड़ा से निकली हैं। नाम भी बहुत अच्छे हैं। दुधी यानी दूध जैसा साफ पानी
flood
कैसे धान का कटोरा बन गया कालाहांडी
Posted on 31 May, 2013 11:55 AM लगभग 11 लाख की आबादी वाला यह जिला देश के सबसे अधिक गरीबी वाले जिले में रखा जाता था। 1985 में जहां 88 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे थे, वहीं आज लगभग 33 फीसदी लोग ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। एफसीआइ के अनुसार यहां 1997 में 40 हजार टन चावल खरीदा गया था। जबकि आज यहां 80 हजार टन चावल खरीदा जा चुका है और 1.25 चावल प्राप्त किए जाने की उम्मीद है। यह पूरे राज्य का एक तिहाई है। कृषि जानकारों का कहन
अखिल भारतीय वनजन-श्रमजीवी यूनियन स्थापना सम्मेलन
Posted on 07 May, 2013 09:53 AM कार्यक्रम स्थल : टाउन हाल, पुरी, उड़ीसा
तारीख : 3-5 जून 2013


हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
इक खेत नहीं इक देश नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे

-फै़ज़ अहमद ‘फै़ज़’

बड़े-बड़े बांध, बड़े-बड़े बिजली के पावर प्लांट, खदानें, कारख़ानों के ज़रिये से विकास के नाम पर जंगल उजड़ते गए, लोग बेघर होते गए और बेरोज़गारी बढ़ती गई। जब इन सबके विरोध में जनांदोलन शुरू हुए तो राजसत्ता की हिंसा भी बढ़ गई। धीरे-धीरे पूरा जंगल क्षेत्र हिंसा का गढ़ बन गया, नतीजा न तो जंगल बचा ना लोग और ना ही बची जैवविविधता। इस हिंसा और लूटमार को जारी रखने के लिए सरकार द्वारा और भी सख्त कानून बनाए गए। कभी वन्य जन्तु को बचाने के नाम पर, तो कभी पर्यावरण को बचाने के नाम पर।भारत के वनों में वनाश्रित श्रमजीवियों की एक भारी तादाद मौजूद है, जिसकी संख्या लगभग 15 करोड़ है, जो वनों में स्वरोज़गारी आजीविका से जुड़े हुए हैं। जैसे वनोपज को संग्रह करना, वनोपज को बेचना, वनभूमि पर कृषि करना, वृक्षारोपण, पशुपालन, लघु खनिज निकालना, वनोत्पादों से सामान बनाना, मछली पकड़ना, निर्माण कार्य, व आग बुझाना आदि। वनाश्रित समुदाय का एक बहुत छोटा सा हिस्सा, जोकि वनविभाग के कार्यों में मज़दूरों के रूप में प्लांटेशन करना, आग बुझाना व निर्माण का कार्य भी करते हैं। वनाश्रित श्रमजीवी समुदायों को मूल रूप से दो श्रेणियों में देखा जा सकता है, एक जो सदियों से जंगल में पारंपरिक तरीके से अपनी मेहनत से आजीविका चलाते चले आ रहे हैं, जिन्हें हम ‘‘वनजन’’ कहते हैं, जो मुख्यतः आदिवासी व मूलनिवासी समुदाय हैं और दूसरा जो कि अंग्रेज़ी शासन काल मे वनविभाग द्वारा जंगल क्षेत्र में वृक्षारोपण या फिर अन्य कामों के लिए बसाए गए थे जिन्हें ‘वनटॉगिया वनश्रमजीवी’ कहते हैं।
Forest
खेत को मारती युकेलिप्टस की खेती
Posted on 20 Jun, 2012 10:33 AM

भारत में जमीन हड़पने के अनेक स्वरूप सामने आ रहे हैं। जबरन कब्जा करने के स्थान पर अब निजी कंपनियां किसानों को अधि

बड़ी परियोजनाएं और पर्यावरण मंजूरी के सवाल
Posted on 11 Apr, 2012 11:52 AM

कंपनी को परियोजना के लिए 4004 एकड़ जमीन चाहिए, जिसमें से 2900 एकड़ वनभूमि है। उड़ीसा की नवीन पटनायक सरकार ने अभी

उड़ीसा में समुद्री तूफान
Posted on 17 Mar, 2012 12:47 PM

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि समुद्रतटीय इलाकों में समुद्री चक्रवात से बचाव के प्रथम प्रहरी समुद्रतटीय और कछारी वनों (

गाद और प्रदूषण की चपेट में बैतरणी नदी बेसिन
Posted on 20 Dec, 2011 04:47 PM

क्या हम कचरा खाने के लिए हैं?

Baitarani river
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