राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच
अखिल भारतीय वनजन-श्रमजीवी यूनियन स्थापना सम्मेलन
Posted on 07 May, 2013 09:53 AMकार्यक्रम स्थल : टाउन हाल, पुरी, उड़ीसातारीख : 3-5 जून 2013
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
इक खेत नहीं इक देश नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे
-फै़ज़ अहमद ‘फै़ज़’
बड़े-बड़े बांध, बड़े-बड़े बिजली के पावर प्लांट, खदानें, कारख़ानों के ज़रिये से विकास के नाम पर जंगल उजड़ते गए, लोग बेघर होते गए और बेरोज़गारी बढ़ती गई। जब इन सबके विरोध में जनांदोलन शुरू हुए तो राजसत्ता की हिंसा भी बढ़ गई। धीरे-धीरे पूरा जंगल क्षेत्र हिंसा का गढ़ बन गया, नतीजा न तो जंगल बचा ना लोग और ना ही बची जैवविविधता। इस हिंसा और लूटमार को जारी रखने के लिए सरकार द्वारा और भी सख्त कानून बनाए गए। कभी वन्य जन्तु को बचाने के नाम पर, तो कभी पर्यावरण को बचाने के नाम पर।भारत के वनों में वनाश्रित श्रमजीवियों की एक भारी तादाद मौजूद है, जिसकी संख्या लगभग 15 करोड़ है, जो वनों में स्वरोज़गारी आजीविका से जुड़े हुए हैं। जैसे वनोपज को संग्रह करना, वनोपज को बेचना, वनभूमि पर कृषि करना, वृक्षारोपण, पशुपालन, लघु खनिज निकालना, वनोत्पादों से सामान बनाना, मछली पकड़ना, निर्माण कार्य, व आग बुझाना आदि। वनाश्रित समुदाय का एक बहुत छोटा सा हिस्सा, जोकि वनविभाग के कार्यों में मज़दूरों के रूप में प्लांटेशन करना, आग बुझाना व निर्माण का कार्य भी करते हैं। वनाश्रित श्रमजीवी समुदायों को मूल रूप से दो श्रेणियों में देखा जा सकता है, एक जो सदियों से जंगल में पारंपरिक तरीके से अपनी मेहनत से आजीविका चलाते चले आ रहे हैं, जिन्हें हम ‘‘वनजन’’ कहते हैं, जो मुख्यतः आदिवासी व मूलनिवासी समुदाय हैं और दूसरा जो कि अंग्रेज़ी शासन काल मे वनविभाग द्वारा जंगल क्षेत्र में वृक्षारोपण या फिर अन्य कामों के लिए बसाए गए थे जिन्हें ‘वनटॉगिया वनश्रमजीवी’ कहते हैं।
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