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उड़ीसा में बाढ़ में डूब गये 2600 गांव
Posted on 19 Sep, 2011 12:39 PM

उड़ीसा में महानदी तथा अन्य नदियों में बाढ़ आने से 19 जिलों के करीब 2,600 गांव डूब गये हैं और इस आपदा में आठ लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य सरकार ने आज 11 लाख प्रभावित लोगों के लिए राहत तथा बचाव कार्य तेज कर दिया। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि बाढ़ में तीन लोग लापता भी हो गये हैं। इससे पुरी, केंद्रपाड़ा, कटक, जगतसिंहपुर, संबलपुर, बौध तथा सोनीपुर जिलों में अनेक स्थानों पर सड़क संपर्क टूट गया है। बाढ

उड़ीसा में बाढ़ से बदहाल जीवन
बस कुछ नाम बदल गए हैं
Posted on 06 Sep, 2011 10:41 AM

हमारे प्रधानमंत्री ने उन अकालग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था। लोगों की स्थिति देखी थी, समझी थ

अस्सी चूल्हों का गणतंत्र
Posted on 09 May, 2011 02:44 PM

इस इलाके में एक शब्द प्रचलित है - ठेंगापाली। ठेंगा माने डंडा और पाली माने बारी। यानी ठेंगा क

उड़ीसा के तट पर कराहते चमत्कारी कछुए
Posted on 09 May, 2011 11:44 AM

ओलिव रिडले कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है। वैसे तो ये कछुए समु

turtle
मनरेगा और पानी
Posted on 07 Jan, 2011 09:56 AM

बीते तीन सालों से तमाम आशंकाओं और अटकलों के बीच देश में ठीक-ठाक बारिश होती रही है। औसत बारिश का 78 प्रतिशत, जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं। दैनिक ज़रूरतों और दूसरे कामों के लिए हमें जितना पानी चाहिए, उससे दोगुनी मात्रा में पानी बरस कर जल- संकायों एवं धरती के गर्भ में जमा हो रहा है। वर्ष 2009 की सबसे अच्छी बात यह रही कि जब सौ सालों की अवधि में इस दौरान चौथा भयंकर सूखा पड़ने की आशंका बन रही थी तब सरक

प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक कदंब
Posted on 29 Dec, 2010 11:32 AM
कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़नेवाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में होता है। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई ४५ मीटर तक हो सकती है। पत्तियों की लं
ये भला कैसा वेदांत?
Posted on 08 Dec, 2010 09:52 AM कच्चे माल की मांग का बढ़कर सिर चकरा देने वाले 1.6 करोड़ टन प्रति वर्ष पर पहुंच जाने को लेकर पड़ने वाले पर्यावरण के प्रभावों का अभी तक आकलन ही नहीं किया गया है। इतना सारा बाक्साइट कहां से आएगा? इसके लिए कितनी नई खदानों की जरूरत होगी? कितना अतिरिक्त जंगल काटा जाएगा? कितना पानी निगल लिया जाएगा, कितना साफ पानी भयानक गंदा हो जाएगा?पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा उड़ीसा में वेदांत परियोजना पर रोक लगाने के फैसले को समझाना चाहिए। यह एक ताकतवर कंपनी द्वारा कानून तोड़े जाने की कहानी है। परंतु यह कहानी विकास की उस भूल भुलैया की भी है और यह देश की सबसे समृद्ध भूमि पर सबसे गरीब लोगों के रहने की कड़वी कहानी भी है।

एन.सी. सक्सेना समिति ने तीन आधारों पर खनन समूहों द्वारा पर्यावरण कानूनों को तोड़ने की ओर संकेत किया है। पहला कब्जा करके गांव के वनों को बिना किसी अनुमति के घेर लिया गया। दूसरा कंपनी अपने कच्चा माल अर्थात बाक्साइट की आपूर्ति अवैध खनन के माध्यम से कर रही थी।
कहीं झीलों का शहर कहीं लहरों पर घर
Posted on 17 Oct, 2010 08:51 AM सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पे अपना एक घर हो..। कोई बात नहीं जो झीलों के शहर में लहरों पर अपना घर नहीं हो पाए, कुछ समय तो ऐसा अनुभव प्राप्त कर ही सकते हैं जो आपको जिंदगी भर याद रहे। कहीं झीलों में तैरते घर तो कहीं, उसमें बोटिंग का रोमांचक आनन्द। कहीं झील किनारे बैठकर या वोटिंग करते हुए डॉलफिन मछली की करतबों का आनन्द तो कहीं धार्मिक आस्थाओं में सराबोर किस्से। ऐसी अनेक झीलें हैं हमारे देश में जिनमें से 10 महत्वपूर्ण झीलों पर एक रिपोर्ट।

डल लेक

जहां लहरों पर दिखते हैं घर


डल लेक का तो नाम ही काफी है। देश की सबसे अधिक लोकप्रिय इस लेक को प्राकृतिक खूबसूरती के लिए तो दुनियाभर में जाना ही जाता है, यह लोगों की आस्था से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस लेक के किनारे देवी दुर्गा की निवास स्थली थी और इस स्थली का नाम था सुरेश्वरी। लेकिन यह झील ज्यादा लोकप्रिय हुई अपने प्राकृतिक और भौगोलिक
पुष्कर लेक
लापता तालाब उर्फ जिला नुआपाड़ा
Posted on 16 Oct, 2010 09:15 AM
अगर आपसे कहा जाये कि किसी गांव के तालाब गायब हो गये तो शायद आप यकीन न करें. लेकिन नुआपाड़ा जिले के बिरीघाट पंचायत के झारसरम में ऐसा ही हुआ है. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि गांव में दो साल पहले 1 तालाब खोदा गया है लेकिन गांव के लोग हैरान हैं कि आखिर ये तालाब हैं कहां?

इन दिनों इस तालाब की तलाश चल रही थी. दो साल पहले ही बना यह तालाब कागजों पर तो हैं लेकिन गांव में इसका पता नहीं है.

एक और मामला सुनें. हरि मांझी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन सरकार की मानें तो उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार
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