ओडिशा

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कोस्का की राह पर
Posted on 09 Jun, 2011 11:39 AM

कोस्का के लोगों ने सरकारी तरीके से कानून लागू करने की प्रक्रिया को ठेंगा दिखा दिया। इस पर स्थानीय वन विभाग और प्रशासन इन्हें 75 वर्षों के निवास प्रमाण की अनिवार्यता के मकड़जाल में फंसाकर इनके अधिकारों की राह में रोड़े अटकाने लगा। कोस्का में वनाधिकार कानून लागू करने के लिए सरकार को ही यहां के ग्रामीणों से प्रशिक्षण लेना चाहिए।

देश भर के वन क्षेत्रों में स्वशासन और वर्चस्व के सवाल पर वनवासियों और वन विभाग के बीच छिड़ी जंग के बीच उड़ीसा के जंगल में एक ऐसा गांव भी है, जिसने अपने हजारों हेक्टेयर जंगल को आबाद कर न सिर्फ पर्यावरण और आजीविका को नई जिंदगी दी है बल्कि वन विभाग और तकनीकी वन वैज्ञानिकों को चुनौती देकर एक नजीर भी पेश की है।

ताजा पानी के मोती का उत्‍पादन
Posted on 11 Dec, 2010 02:00 PM

मोती उत्‍पादन क्‍या है?

केंद्र ने किया पोलावरम परियोजना का समर्थन
Posted on 29 Oct, 2010 08:46 AM नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के बीच विवाद की जड़ गोदावरी नदी पर बनने वाली पोलावरम इंद्रा सागर परियोजना का केंद्र सरकार ने समर्थन किया है। केंद्रीय जल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफनामे में परियोजना को मंजूरी का समर्थन करते हुए कहा है कि डूब से बचने के लिए जरूरी उपाय किए जा सकते हैं। आयोग ने यह हलफनामा परियोजना का विरोध करने वाले उड़ीसा राज्य के मुकदमे में दाखिल कि
उड़ीसा ने सिखाया ब्रिटेन को प्रबंधन कला
Posted on 18 Jul, 2010 03:04 PM
पश्चिम के लोग प्रबंधकीय कौशल में श्रेष्ठतम होने का दावा करते हैं। किन्तु उड़ीसा के नयागढ़ जिले के अशिक्षित ग्रामीणों ने जंगलों के प्रबंधन के लिए जो पद्धति अपनाई है, वह ब्रिटेन के शिक्षाविदों को भी आकर्षित कर रही है। अब ब्रिटेन के विद्याथिर्यों को पाठयक्रम में उड़ीसा के ग्रामीणों के वन प्रबंधन कौशल के बारे में पढ़ाया जा रहा है।
कालाहाण्डी की एक रानी बचाती पानी
Posted on 10 May, 2010 09:22 AM

मुझे हमेशा यह बात चुभती थी कि क्षेत्र के किसान सिर्फ एक फसल ही ले पाते हैं जबकि दूसरे इलाकों में दोहरी फसल ली जाती है। फिर इधर भुखमरी और बदहाली की निरंतर उठती खबरों ने भी मुझे काफी परेशान किया। मुझे लगा कि इस समस्या का समाधान खेतों में ही निकलेगा।

पश्चिमी उड़ीसा के कालाहांडी अंचल में भुखमरी की एक अहम वजह पानी की किल्लत भी मानी जाती है। इलाके के राजपरिवार ने अब इस दिशा में कुछ सार्थक प्रयास शुरू किये हैं जिनकी कामयाबी साबित करती है कि इस तरह की देसी तकनीक को सरकारी स्तर पर बढ़ावा दिया जाए तो कभी अनावृष्टि और कभी अतिवृष्टि का कोपभाजन बनने वाले इलाकाई किसानों को दोहरी फसल का भी लाभ मिल सकता है।

कालाहांडी क्षेत्र का एक कस्बा राजाखरियार है। यहां एक राजपरिवार का प्राचीन महल है। जिसकी महारानी राजश्री देवी महल से बाहर निकल कर अपनी रियाया की तकलीफों का स्थानीय समाधान ढूंढने में जुटी हैं।

गांववासियों द्वारा खुद जल आपूर्ति की मिसाल
Posted on 22 Jan, 2010 12:29 PM

पानी के अभाव ने उड़ीसा के एक गांव को पानी का प्रबंधन करना सिखाया

 

water management
ज्ञानी के जल ज्ञान की सफलता
Posted on 21 Dec, 2009 03:21 PM देश में कहीं भी अगर सूखा, अकाल और भूख की चर्चा होती है, तो उसमें कालाहांडी का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उड़ीसा स्थित कालाहांडी क्षेत्र जंगलों की भारी कटाई, वर्षा की अनियमितता, पानी के तेज बहाव और मिट्टी के कटाव की मार झेलता रहा है। इन्हीं कारणों से यहां जनवरी माह से ही पानी की भारी किल्लत होने लगती है और भारी संख्या में लोग यहां से पलायन कर जाते हैं।
हम पी रहे है मीठा जहर
Posted on 08 Oct, 2009 10:26 AM

गंगा के मैदानी इलाकों में बसा गंगाजल को अमृत मानने बाला समाज जल मेंव्याप्त इन हानिकारक तत्वों को लेकर बेहद हताश और चिंतित है। गंगा बेसिनके भूगर्भ में 60 से 200 मीटर तक आर्सेनिक की मात्रा थोडी कम है और 220मीटर के बाद आर्सेनिक की मात्रा सबसे कम पायी जा रही है। विशेषज्ञों केअनुसार गंगा के किनारे बसे पटना के हल्दीछपरा गांव में आर्सेनिक की मात्रा1.8 एमजी/एल है। वैशाली के बिदुपूर में विशेषज्ञों ने पानी की जांच की तोनदी से पांच किमी के दायरे के गांवों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रादेखकर वे दंग रह गये। हैंडपंप से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा 7.5एमजी/एल थी ।

तटवर्तीय मैदानी इलाकों में बसे लोगों के लिए गंगा जीवनरेखा रही है। गंगा ने इलाकों की मिट्टी को सींचकर उपजाऊ बनाया। इन इलाकों में कृषक बस्तियां बसीं। धान की खेती आरंभ हुई। गंगा घाटी और छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर धान उत्पादक गांव बसे। बिहार के 85 प्रतिशत हिस्सों को गंगा दो (1.उत्तरी एवं 2. दक्षिणी) हिस्सों में बांटती है। बिहार के चौसा,(बक्सर) में प्रवेश करने वाली गंगा 12 जिलों के 52 प्रखंडों के गांवो से होकर चार सौ किमी की दूरी तय करती है। गंगा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग पेयजल एवं कृषि कार्यों में भूमिगत जल का उपयोग करते है।


गंगा बेसिन में 60 मीटर गहराई तक जल आर्सेनिक से पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। गांव के लोग इसी जल को खेती के काम में भी लाते है जिससे उनके शरीर में भोजन के द्वारा आर्सेनिक की मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाती है।

भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच
Posted on 13 Oct, 2008 01:21 PM

भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही है जबकि विश्व की जनसंख्या का 16.7 प्रतिशत जनसंख्या भारत वर्ष में निवास करती है। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ रहा है। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेयजल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, लोग वांचित होते जा रहे हैं आईये देखें - भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच

water availability
जेके पेपर लिमिटेड ( जयकयपुर, उड़ीसा):
Posted on 08 Oct, 2008 09:35 PM मिल में इस्तेमाल हुए पानी का दोबारा इस्तेमाल
प्रमुख कागज़ निर्माता कंपनी ने मिल में उत्पादन प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल हुए पानी को दोबारा इस्तेमाल करने के लिए कई उपाय किए। इससे न केवल मिल में पानी की खपत कम हुई वरन वहां से पानी के उत्सर्जन में भी कमी आई। संयंत्र में इस तरह के तकनीकी बदलाव किए गए कि इस्तेमाल हुआ पानी दोबारा पाइप के माध्यम से उत्पादन प्रक्रिया में लाया जा सके।
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