उल्लेखनीय है कि माओवादियों ने परचा बांटकर लोगों को ग्रामसभा/(पल्लीसभा) का बहिष्कार करने आह्वान किया था। लेकिन ‘नियमगिरि सुरक्षा समिति’ के बैनर तले संगठित लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की और बॉक्साईट खनन के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा। ओड़िशा में नियमगिरि में वेदांता कंपनी की प्रस्तावित बॉक्साईट खदान पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार ग्रामसभाओं का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें 12 ग्रामसभाओं में से सभी ग्रामसभाओं में लोगों ने कंपनी को खनन की अनुमति न देने का प्रस्ताव पारित किया है। यह जनता की जीत है।
उल्लेखनीय है कि गत 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ओड़िशा सरकार नियमगिरि के आसपास की 12 ग्रामसभाओं में लोगों से इस बारे में मतदान कराए। नियमगिरि पर्वत श्रृंखला के आसपास 112 गांव बसे हैं, इनमें से केवल 12 गाँवों को चुनने का जन संगठनों ने विरोध किया था। जिसमें नियमगिरि सुरक्षा समिति व अन्य प्रतिनिधियों ने अपना विरोध जताया था। केंद्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री किशोर चंद्रदेव ने भी राज्य सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े किए थे।
लेकिन 12 गाँवों में 18 जुलाई से पल्ली सभा (ग्रामसभा) का आयोजन शुरू कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार रायगढ़ जिले के गाँवों की ग्रामसभा के दौरान जिला जज शरतंद्र मिश्र और कालाहांडी जिले के गाँवों में अतिरिक्त जिला जज प्रमोदचंद्र जेना पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रहे। अब सभी 12 पल्ली सभा हो चुकी हैं और उनमें लोगों ने खनन के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की है। इनमें लोगों ने नियमगिरि में किसी भी कंपनी को खदान के लिए अनुमति न देने का प्रस्ताव पारित कर दिया है।
इन 12 गाँवों में से सिर्फ 2 गांव (ताड़ी झोला और इजरुपा) में गैर आदिवासी परिवार (गऊड यानी यादव जाति) बसे हैं। लेकिन इन दोनों गाँवों में भी सभी लोगों ने भी नियमगिरि में खनन का विरोध किया है। बाकी गाँवों में सभी आदिवासी गांव हैं।
पल्ली सभा (ग्रामसभा) के सामने सभी मतदाताओं को अपनी बात कहने का मौका दिया जाता था। डंगरिया कंध आदिवासी अपनी भाषा ‘कुई’ में बात रखते थे और उसका अनुवाद ओड़िया में किया जाता था। फिर ओड़िया में कही गई बातों को उनके लिए कुई में अनुवाद किया जाता था। पल्ली सभा के अंत में प्रस्ताव को पढ़कर सुनाया और समझाया जाता और लोग दस्तख़त या अंगूठा निशान देते।
पल्ली सभा (ग्रामसभा) के दौरान ग्रामीणों ने अपनी बात बेबाक तरीके से रखी जिसमें नियमगिरि का महत्व और आजीविका तथा धार्मिक व सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए खदान कैसे विनाशकारी हैं यह बताया। ग्रामीणों ने सवाल किया – “जगन्नाथ मंदिर के नीचे हीरा मिलेगा तो क्या उसे ध्वंस किया जाएगा? खदान प्रोजेक्ट से पहले उनके गांव में कोई सरकारी आदमी नहीं आया, अब क्यों आ रहे हैं?” सभी लोगों का एक ही स्वर था कि – “नियमगिरि उनके लिए भगवान है, मां-बाप समान है, उसे कतई ध्वंस होने नहीं देंगे, जान देकर उसे बचाएंगे।”
हर गांव की पल्ली सभा में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहते थे। शायद पहली बार लोगों को लगा होगा कि उनकी बात को सुनने के लिए सरकार उनके गांव पहुंची है।
यह एक माओवादी प्रभावित इलाक़ा होने के कारण बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती में की गई थी। उल्लेखनीय है कि माओवादियों ने परचा बांटकर लोगों को ग्रामसभा/(पल्लीसभा) का बहिष्कार करने आह्वान किया था। लेकिन ‘नियमगिरि सुरक्षा समिति’ के बैनर तले संगठित लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की और बॉक्साईट खनन के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा।
समता भवन, बरगढ़, ओड़िशा।
09437056029
उल्लेखनीय है कि गत 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि ओड़िशा सरकार नियमगिरि के आसपास की 12 ग्रामसभाओं में लोगों से इस बारे में मतदान कराए। नियमगिरि पर्वत श्रृंखला के आसपास 112 गांव बसे हैं, इनमें से केवल 12 गाँवों को चुनने का जन संगठनों ने विरोध किया था। जिसमें नियमगिरि सुरक्षा समिति व अन्य प्रतिनिधियों ने अपना विरोध जताया था। केंद्र सरकार के आदिवासी मामलों के मंत्री किशोर चंद्रदेव ने भी राज्य सरकार के इस निर्णय पर सवाल खड़े किए थे।
लेकिन 12 गाँवों में 18 जुलाई से पल्ली सभा (ग्रामसभा) का आयोजन शुरू कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार रायगढ़ जिले के गाँवों की ग्रामसभा के दौरान जिला जज शरतंद्र मिश्र और कालाहांडी जिले के गाँवों में अतिरिक्त जिला जज प्रमोदचंद्र जेना पर्यवेक्षक के रूप में उपस्थित रहे। अब सभी 12 पल्ली सभा हो चुकी हैं और उनमें लोगों ने खनन के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की है। इनमें लोगों ने नियमगिरि में किसी भी कंपनी को खदान के लिए अनुमति न देने का प्रस्ताव पारित कर दिया है।
इन 12 गाँवों में से सिर्फ 2 गांव (ताड़ी झोला और इजरुपा) में गैर आदिवासी परिवार (गऊड यानी यादव जाति) बसे हैं। लेकिन इन दोनों गाँवों में भी सभी लोगों ने भी नियमगिरि में खनन का विरोध किया है। बाकी गाँवों में सभी आदिवासी गांव हैं।
पल्ली सभा (ग्रामसभा) के सामने सभी मतदाताओं को अपनी बात कहने का मौका दिया जाता था। डंगरिया कंध आदिवासी अपनी भाषा ‘कुई’ में बात रखते थे और उसका अनुवाद ओड़िया में किया जाता था। फिर ओड़िया में कही गई बातों को उनके लिए कुई में अनुवाद किया जाता था। पल्ली सभा के अंत में प्रस्ताव को पढ़कर सुनाया और समझाया जाता और लोग दस्तख़त या अंगूठा निशान देते।
पल्ली सभा (ग्रामसभा) के दौरान ग्रामीणों ने अपनी बात बेबाक तरीके से रखी जिसमें नियमगिरि का महत्व और आजीविका तथा धार्मिक व सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए खदान कैसे विनाशकारी हैं यह बताया। ग्रामीणों ने सवाल किया – “जगन्नाथ मंदिर के नीचे हीरा मिलेगा तो क्या उसे ध्वंस किया जाएगा? खदान प्रोजेक्ट से पहले उनके गांव में कोई सरकारी आदमी नहीं आया, अब क्यों आ रहे हैं?” सभी लोगों का एक ही स्वर था कि – “नियमगिरि उनके लिए भगवान है, मां-बाप समान है, उसे कतई ध्वंस होने नहीं देंगे, जान देकर उसे बचाएंगे।”
हर गांव की पल्ली सभा में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहते थे। शायद पहली बार लोगों को लगा होगा कि उनकी बात को सुनने के लिए सरकार उनके गांव पहुंची है।
यह एक माओवादी प्रभावित इलाक़ा होने के कारण बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती में की गई थी। उल्लेखनीय है कि माओवादियों ने परचा बांटकर लोगों को ग्रामसभा/(पल्लीसभा) का बहिष्कार करने आह्वान किया था। लेकिन ‘नियमगिरि सुरक्षा समिति’ के बैनर तले संगठित लोगों ने अपनी आवाज़ बुलंद की और बॉक्साईट खनन के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा।
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