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मध्य प्रदेश
जल संरक्षण में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी परियोजना की भूमिका
Posted on 28 Dec, 2011 09:53 AMप्राकृतिक जल संसाधन के स्रोत दिन-प्रतिदिन नष्ट होते चले जा रहे हैं। आज मनुष्य के सामने जल संकट एक विकराल समस्या के रूप में प्रकट हुआ है। हमारे देश में शुद्ध पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हुई है। हमारा देश नदियों का देश होने के बाद भी हमारे देश के कई भागों में आज शुद्ध पेयजल आपूर्ति नहीं हो पा रही है। यह समस्या सरकार के साथ-साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए एक चुनौति साबित हो रही है। बढ़ती जनसंख्या, औदपेयजल: निजीकरण से भी घातक है पीपीपी
Posted on 21 Dec, 2011 05:26 PMइस अनुबंधन में वित्तीय, संचालन संबंधी, नियामक और जल संसाधनों के स्थाई, समतामूलक और न्यायपूर्ण
नदी सूखी तो सपने भी हो गये रेत
Posted on 18 Dec, 2011 12:11 PMयोजना-परियोजनायें बनी, तो बात बड़ी-बड़ी नदी, तालाब, झील या वर्षा व भूजल तक सीमित होकर रह गई। अ
बस्तर के वन प्राणी
Posted on 12 Dec, 2011 05:46 PMबस्तर के वनों में एक जमाने में तरह-तरह के वन्य प्राणी भारी संख्या में रहते थे। लेकिन प्रगति उनके ले काल साबित हुई। आज वे पश्चिम और दक्षिण पश्चिम बस्तर में, कहीं दूर कोने में ठेल दिए गए हैं। 1981 और 1983 के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में चार अभ्यारण्य बनाए- इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान (1,258 वर्ग किलोमीटर) कांगर घाटी राष्ट्रीय उद्यान (200 वर्ग किलोमीटर), पामेड जंगली भैंसा अभ्यारण्य (139 वर्ग किलनदियां मैली, जंगल छोटे धरती छलनी
Posted on 07 Dec, 2011 02:31 PMसूत्रों के अनुसार नदियों में बॉयो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड अर्थात बीओडी की मात्रा का आकलन किया गय
खतरे में है नर्मदा का उद्गम
Posted on 16 Nov, 2011 08:46 AMअमरकंटक के जंगल दुर्लभ वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों और वन्य प्राणियों के लिए मशहूर रहे हैं। खदानों
नर्मदा को प्रदूषित करते बांध
Posted on 07 Nov, 2011 10:24 AMनर्मदा नदी पर बन रहे एवं बन चुके बांधों के कारण प्रदूषण रहित यह नदी अब दिनों-दिन प्रदूषित होती जा रही है। अवैध रेत खनन से इस इलाके का दलदलीकरण भी बढ़ेगा जो कि स्थानीय पर्यावरण के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। इन्हीं खदानों के माध्यम से नर्मदा नदी का पानी धीरे-धीरे आगे बढ़ेगा और जमीन का दलदलीकरण प्रारम्भ हो जायेगा। इसका असर जल्दी दिखाई नहीं देगा लेकिन जब परिणाम सामने आएगें तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। विकास की अवधारणा विनाश को आमत्रंण दे चुकी है। संभलने का वक्त अभी गुजरा नहीं है।
देश में विकास की अवधारणा को लेकर सालों से बहस जारी है। नदियों के प्रवाह को बांधों से रोकने, नहरों से सिंचाई करने और बिजली उत्पादन की छोटी-बड़ी सैकड़ों-हजारों परियोजनाओं के निर्माण से होने वाले असरों को आम आदमी समझ रहा है लेकिन देश के नीति निर्माताओं को अभी लगता है इसकी कोई परवाह नहीं है। देश भर में नदियों पर बनने वाले बांध और नहर परियोजनाओं के परिणाम आम लोगों के लिए कभी भी सुखद नहीं रहे हैं। इन परियोजनाओं से लाभ से अधिक नुकसान हुआ है। इसका ताजा उदाहरण सरदार सरोवर परियोजना में देखने को मिल रहा है। यह परियोजना नर्मदा नदी पर बनी हुई देश की विशालतम बांध परियोजनाओं में से एक है। विगत 10 सालों में इस परियोजना के कारण सैकड़ों किलोमीटर के इलाके में नर्मदा नदी का प्रवाह थम गया है। पानी रुकने के दुष्परिणाम सामने दिखाई देने लगे हैं। मानसून के अलावा भी लगभग पूरे साल नर्मदा का पानी कुछ स्थानों पर प्रदूषित दिखाई पड़ता है।नर्मदा घाटी: नहरों से बर्बाद होती खेती
Posted on 07 Nov, 2011 09:41 AMबिना समझबूझ का विकास कैसे विनाश का कारण बनता है इसे नर्मदा घाटी के बांधों से सिंचाई के लिए हो
पलायन: कोई विकल्प नहीं है
Posted on 05 Nov, 2011 03:43 PMकहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए,कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
- दुष्यंत कुमार