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मध्य प्रदेश
बांधों से आई बाढ़ की आफत
Posted on 17 Aug, 2012 12:31 PMआजकल बाढ़ प्राकृतिक होने की बजाय मानव निर्मित ज्यादा दिखाई देने लगी है। बाढ़ से बचने के लिए हमें नदियों के जल-भर
मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण-शुद्धता की विधियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व
Posted on 16 Aug, 2012 01:28 PMवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो स्पष्ट है कि वृक्ष की पूजा कर वहीं बैठ कर भोजन करना, यह शुद्ध वायु-प्राप्ति का एक तरीका है। गांवों में महिलाएँ चूल्हे-चौके या खेती-बाड़ी के कार्यों में लगी रहती हैं। शुद्ध वायु प्रत्येक के लिये आवश्यक होती है।
भारत के मध्य भाग में स्थित मालवा की अपनी अलग महिमा रही है। कल-कल करती वर्ष भर प्रवाहमान नदियां, हरे-भरे भू-भाग, माटी की सौंधी सुगंध, सर्व शुद्धता- इन सबसे प्रसन्न होकर लोकनायक कबीर ने अपने अनुभूतिजन्य विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था-देश मालव गहन गम्भीर, पग-पग रोटी डग-डग नीर
कबीर की यह अनुभूति शाश्वत सत्य को प्रकट करती है। वास्तव में यहां के शुद्ध पर्यावरण में मालवा-वासियों एवं पर्यावरण के बीच अटूट रिश्ते की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। यह सब मालवा के ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण शुद्धता के लिये अपनाई जा रही विधियों का प्रतिफल है। आज पर्यावरण शुद्धता की इन विधियों एवं उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन की महती आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
मालवा के ग्रामीण तालाब और उनका स्वरूप
Posted on 16 Aug, 2012 10:09 AMतालाब बनाने के लिए यों तो दसों दिशाएँ खुली है, फिर भी जगह का चुनाव करते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है, जैसे
सरदार सरोवर बांध और नर्मदा में बाढ़ : खेती की बर्बादी
Posted on 13 Aug, 2012 01:33 PMनर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और राज्य शासन के रिपोर्टों की पोल खुली
डूब और नुकसानों को अवैध साबित करते हुए, भादल पिछौड़ी, छोटा बड़दा आदि गाँवों के किसानों, मछवारों और आदिवासियों ने बताया कि केवल पिछोड़ी के 15 परिवारों को सुप्रीम कोर्ट में केस चलते हुए जो खेत जमीन के पत्र आंवटित हुए, वह भी सन 2000 से डूब आते हुए, 2012 में उस जमीन का भी कब्जा मूल मालिक जमीन छोड़ने तैयार न होने से, शासन उन्हें नहीं दे पायी है। महाराष्ट्र और म.प्र. के पहाड़ी आदिवासी गाँवों में 1994 से सैकड़ों की जमीन और घर डूब में गया है, ऐसं भी सैकड़ों परिवारों का कानूनन पुर्नवास बाकी है।
सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में पिछले तीन दिनों से, खेंतों में और कुछ घरो में भी पानी घुसने से, बर्बादी का सिलसिला चला है। उपर के तीन बड़े बांधों (ओंकारेश्वर, इंदिरा सागर और महेश्वर) से पानी सरदार सरोवर के जलाशय में एकत्रित होकर, डूब की भयावह स्थिति सामने आया।सम्पूर्ण स्वच्छता अभियानः कहानी अनीता की
Posted on 08 Aug, 2012 03:09 PM“आधे भारतीय घरों में सेलफोन हैं, किंतु शौचालय नहीं”, घरेलू जनगणना-2011
स्थान था दक्षिण कोरिया की राजधानी शहर-सिओल का कोरिया डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (के.डी.आई.)। भारत एवं कोरिया के अधिकारियों से भरे एक सम्मेलन–कक्ष में एक लघु फिल्म दिखाई जा रही थी, इस फिल्म में एक सफलता की कहानी प्रदर्शित की जा रही थी कि किस तरह से एक गांव को खुले में शौच करने से मुक्त (ओ.डी.एफ) कराया गया।
ओलम्पिक मशाल बनाम भोपाल का बुझता चिराग
Posted on 13 Jul, 2012 04:29 PMसैंकड़ों करोड़ रुपए खर्च होने बाद भी सरकारी व ट्रस्टों का चिकित्सा तंत्र सही इलाज नहीं कर पा रहा है। प्रायः लक्षण
नर्मदा के बेटे हो गए लुटेरे
Posted on 07 Jul, 2012 09:54 AM‘नमामि देवि नर्मदे’ मेकलसुता महीयसी नर्मदा को रेवा नाम से भी जाना जाता है। नर्मदा प्राचीन संस्कृति की नैहर ही नहीं है, बल्कि वह दक्षिण भारत और उत्तर भारत, द्रविड़ संस्कृति और आर्य संस्कृति को जोड़नेवाली एक कड़ी भी है। यही नहीं, हमारे आदिवासी भाइयों की संस्कृति भी इसी के आसपास विकसित हुई है। नर्मदा को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा भी कहा जाता है। यह पश्चिमी भारत की सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा को गरीबो
जीवन न्यौछावर को तैयार जनसमूह
Posted on 06 Jul, 2012 05:06 PM‘ओंकारेश्वर तीर्थ अलौकिक है। भगवान शंकर की कृपा से यह देवस्थान के तुल्य है। यहां जो अन्नदान, तप, पूजा करते अथवा मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनका शिवलोक में निवास होता है।’- स्कंद पुराण रेवा खंड अ – 22
ओंकारेश्वर के आधुनिक बदसूरत मंदिर की ओर जब भी ध्यान आता है तो एकाएक मन में विचार उठने लगने लगता है कि क्या हम अपने देश की संस्कृति के साथ इतना घटिया व्यवहार भी कर सकते हैं? पूरे देश की धार्मिक व सांस्कृतिक भावनाएं ओंकारेश्वर से जुड़ी हैं और नर्मदा नदी उस आस्था का अभिन्न अंग है। पूरे देश से लोग यहां आते हैं और बिना विरोध जताए ‘पवित्र’ दर्शन कर लौट भी जाते हैं। हमारे नीति निर्माता देश के पवित्रतम स्थानों में से एक को एक बदबूदार नाले में बदलकर चैन की नींद कैसे सो सकते हैं?
ओंकारेश्वर एक अनूठा तीर्थ है। बारह ज्योतिर्लिंगों में इसकी गणना होती है। इसकी एक और विशेषता यह है कि यहां एक नहीं दो ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर एवं अमलेश्वर हैं। लेकिन द्वादश (बारह) ज्योतिर्लिंगों की गणना करते समय इन्हें एक ही गिना जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम वाले श्लोकों में इसे ‘ओंकारममलेश्वरम’ कहा गया है। ये दोनों मंदिर नर्मदा नदी के आर-पार बने हुए है, जिन्हें एक पैदल पुल आपस में जोड़ता है।उजड़ रहे सिंगरौली के जंगल
Posted on 06 Jul, 2012 12:40 PMसिंगरौली के जंगलों को उजाड़कर जमीन से खनिज निकाल कर, पहाड़ों को खोखला बना कर, हरी-भरी जमीन को बंजर बना कर आगे बढ़ जाना कॉरपोरेट घरानों का काम है। इसमें कोई समस्या आती है तो यह विकास को रोकने की साजिश है। स्थानीय लोगों को इस प्रक्रिया में नजरअंदाज किया जा रहा है। वहां के आदिवासियों को किसान से मजदूर बनाया जा रहा है। यहां आदिवासी को जंगल के जानवरों से कोई खतरा नहीं है लेकिन बाहरी जानवरों से बहुतमहिलाएं ही बचा सकती हैं खेती को
Posted on 03 Jul, 2012 02:05 PMयह कहा जा सकता है कि कृषि में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। खासतौर पर जंगल और पहाड़ में खेती उन पर ही निर्भर