मध्य प्रदेश

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इस घर से नहीं निकलता है कचरा, बच रहा पानी
Posted on 25 Sep, 2012 12:05 PM

घर की छत पर लगाया बायोगैस प्लांट, बनाई जाती है रसोई गैस और खाद, रीसाइकल कर बचा रहे 500 लीटर पानी

नर्मदा बचाओ आंदोलन का जल सत्याग्रह
Posted on 20 Sep, 2012 04:19 PM नर्मदा बचाओ आंदोलन का यह 26वां साल है। मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के घोघलगांव में हुआ जल सत्याग्रह नर्मदा बचाओ आंदोलन को नया खाद-पानी दे गया। मीडिया और आम लोगों के बीच इस बार के जल सत्याग्रह को काफी जगह मिली और लोगों की सहानुभूति जल सत्याग्रह को मिला। पूरी तरह अहिंसक और अपनी जमीन पर चला यह सत्याग्रह हिंसक आंदोलनों के लिए नसीहत बनकर उभरा और अहिंसक संघर्षों को ताकत दे गया। हालांकि म.प्र. सरकार के वादों की असलियत तो बाद में ही पता चलेगी फिर भी इस आंदोलन की सफलता अहिंसक लोकतांत्रिक हथियार को धारदार कर गया, बता रहे हैं शिरीष खरे।

पिछले कुछ महीनों के दौरान देश में अन्ना आंदोलन से लेकर परमाणु संयंत्र विरोध और जमीन अधिग्रहण जैसे मसलों पर तमाम आंदोलन हुए लेकिन जैसी कामयाबी जल सत्याग्रह के हिस्से में आई वैसा उदाहरण कोई दूसरा देखने को नहीं मिला। ऐसे में यह सवाल सहज ही उठ रहा है कि क्या इस जल सत्याग्रह ने कई दिनों से सुसुप्त-से दिख रहे अपने मातृआंदोलन- नर्मदा बचाओ आंदोलन में नई जान डाल दी है। पिछले दिनों जल सत्याग्रह के चलते मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का घोघलगांव सुर्खियों में आया और उसी के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन भी। नर्मदा घाटी में जल सत्याग्रह का तरीका नया नहीं है। 1991 में मणिबेली (महाराष्ट्र) का सत्याग्रह जल समाधि की घोषणा के साथ ही चर्चा में आया था। तब से कई जल सत्याग्रह हुए। लेकिन इस बार का जल सत्याग्रह अपनी लंबी समयावधि और मीडिया में मिली चर्चा की वजह से बहुत अलग रहा।
पहले 'शर्म', अब 'गर्व' यात्रा निकालते हैं ग्रामीण
Posted on 20 Sep, 2012 12:36 PM

सामाजिक बदलाव रंग लाया मर्यादा अभियान मप्र में बुधनी के 32 गांव में खुले में शौच बंद

काले पानी से मुक्ति के खिलाफ लड़ता एक नगर
Posted on 18 Sep, 2012 05:30 PM बिजुरी- म.प्र.अनूपपुर जिले के कोयलांचल क्षेत्र का प्रमुख नगर बिजुरी लंबे समय से साफ और पर्याप्त पानी की लड़ाई लड़ रहा है। मध्यप्रदेश सरकार एवं कालरी प्रबंधन द्वारा करोड़ों खर्च के बाद भी यहां पेयजल के नाम पर आम आदमी के हिस्से में कोयला खदानों से निकलने वाला काला दूषित बदबूदार पानी ही है।
तालाब बचाने के लिए मप्र में बनेगा कानूनः शिवराज
Posted on 17 Sep, 2012 10:40 AM जो शहर अपने पानी और उसके निकास के बारे में नहीं सोचता वह अपने नदिय
Pond
नर्मदा घाटी में मिले करोड़ों साल पुरानी नदी के निशान
Posted on 17 Sep, 2012 10:35 AM इंदौर, 29 जुलाई (भाषा)। जबर्दस्त भौगोलिक हलचलों की गवाह रही मध्य प्रदेश स्थित नर्मदा घाटी में खोजकर्ताओं के समूह ने एक प्राचीन नदी के वजूद के निशान ढूंढ निकालने का दावा किया है। खोजकर्ताओं के मुताबिक यह विलुप्त नदी कम से कम 6.5 करोड़ साल पुरानी है।
मर्यादा बचाने को घर-घर में हो शौचालय
Posted on 15 Sep, 2012 03:47 PM महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। ‘‘गांव की नई नवेली दुल्हन दिन के उजाले में या घर आए मेहमानों के सामने किसी के सामने नहीं निकलती, पर जब शौच के लिए उसे खुले खेत, नदी या तालाब किनारे जाना पड़ता है, तो वह न केवल उसके लिए बल्कि पूरे घर के लिए अपमानजक स्थिति होती है। घर में शौचालय का होना सिर्फ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का मामला है।’’ मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के मुंडेरी गांव की पुष्पा का यह उद्गार कोई भाषण नहीं है, बल्कि उस अभियान की अवधारणा है, जिसका बीजारोपण पिछले साल 2 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शिवपुरी जिले में किया गया था। इस अवधारणा को मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अपनाया गया है, जिसे मर्यादा अभियान नाम दिया गया है।
पुलिस दमन द्वारा 245 जल सत्याग्रही गिरफ्तार एवं रिहा
Posted on 14 Sep, 2012 04:49 PM 10 सितम्बर को राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध में जारी जल सत्याग्रह की मांगों को स्वीकार करते हुए ओंकारेश्वर बांध में पानी का स्तर 189 मीटर तक करने का निर्णय लिया एवं प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन देने की घोषणा की है। परन्तु सरकार द्वारा इंदिरा सागर बांध में पानी कम करने की मांग न स्वीकार करने के कारण इंदिरा सागर परियोजना के डूब में गांव खरदना में जल सत्याग्रह जारी रहा। इंदिरा सागर परियोजना के डूब के ग्राम खरदना में गत 15 दिन से जारी जल सत्याग्रह पर सैकड़ों पुलिसकर्मियों द्वारा दमनात्मक कार्यवाही करते हुए 245 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें 104 महिलाएं और 141 पुरुष शामिल हैं, इनमें नर्मदा आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता सुश्री चित्तरूपा पालित भी शामिल हैं। बाद में बढ़ते जनआक्रोश के चलते शाम को इन्हें रिहा कर दिया गया। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरकार के इस दमन की निंदा की। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विज्ञप्ति में कहा है कि आंदोलन मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर कर बांध का जलस्तर 260 मी. तक लाने की मांग करेगा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की महत्वपूर्ण विजय
Posted on 14 Sep, 2012 04:32 PM इंदौर। नर्मदा बचाओ आंदोलन के जल सत्याग्रह के 17वें दिन अंततः मध्यप्रदेश सरकार को झुकना पड़ा एवं जल सत्याग्रहियों की दो प्रमुख मांगों बांध के जल स्तर को घटाकर 189 मीटर पर लाने एवं जमीन के बदले जमीन देने की पुनर्वास नीति के अंतर्गत समाहित शर्त को पूरा किए जाने पर अपनी सहमति भी जतानी पड़ी। गौरतलब है कि खंडवा जिले के घोघलगांव में आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित एवं 50 अन्य सक्रिय कार्यकर्ता लगातार 17 दिनों तक पानी में जल सत्याग्रह करते रहे। इससे उनके शरीर को काफी नुकसान पहुंचा है।
पानी में गलते विस्थापितों की जीत
Posted on 14 Sep, 2012 04:26 PM सुनो/वर्षों बाद
अनहद नाद/दिशाओं में हो रहा है
शिराओं से बज रही है/एक भूली याद वर्षों बाद ......।


ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के संबंध में वर्ष 1989 में नर्मदा पंचाट के फैसले में यह स्पष्ट कर गया था कि हर भू-धारक विस्थापित परिवार को जमीन के बदले जमीन एवं न्यूनतम 5 एकड़ कृषि योग्य सिंचित भूमि का अधिकार दिया जायेगा। इसके बावजूद पिछले 25 सालों में मध्यप्रदेश सरकार ने एक भी विस्थापित को आज तक जमीन नहीं दी है। लेकिन 17 दिन के जल सत्याग्रह से सत्याग्रहियों ने सरकार को नाकों चने तो चबवा दिए हैं।

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 10 सितम्बर 2012 को तब चरितार्थ हो गई जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने खंडवा जिले के घोघलगांव में पिछले 17 दिनों से जारी जल सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सत्याग्रहियों की मांगे मान लीं तथा विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन देने का भी एलान किया। सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घंटों में कम भी कर दिया। यह एक ऐतिहासिक जीत थी। सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां गांव वालों के सामने रहीं कि वे उसी मोटली माई (नर्मदा), जिसे वे पूजते हैं, में स्वयं को गला देने के लिए मजबूर हो गए।
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