डॉ. उषा भटनागर

डॉ. उषा भटनागर
मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण-शुद्धता की विधियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व
Posted on 16 Aug, 2012 01:28 PM

वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो स्पष्ट है कि वृक्ष की पूजा कर वहीं बैठ कर भोजन करना, यह शुद्ध वायु-प्राप्ति का एक तरीका है। गांवों में महिलाएँ चूल्हे-चौके या खेती-बाड़ी के कार्यों में लगी रहती हैं। शुद्ध वायु प्रत्येक के लिये आवश्यक होती है।

भारत के मध्य भाग में स्थित मालवा की अपनी अलग महिमा रही है। कल-कल करती वर्ष भर प्रवाहमान नदियां, हरे-भरे भू-भाग, माटी की सौंधी सुगंध, सर्व शुद्धता- इन सबसे प्रसन्न होकर लोकनायक कबीर ने अपने अनुभूतिजन्य विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था-

देश मालव गहन गम्भीर, पग-पग रोटी डग-डग नीर


कबीर की यह अनुभूति शाश्वत सत्य को प्रकट करती है। वास्तव में यहां के शुद्ध पर्यावरण में मालवा-वासियों एवं पर्यावरण के बीच अटूट रिश्ते की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। यह सब मालवा के ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण शुद्धता के लिये अपनाई जा रही विधियों का प्रतिफल है। आज पर्यावरण शुद्धता की इन विधियों एवं उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन की महती आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
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