मध्य प्रदेश

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कमलनाथ के क्षेत्र में बिना मंजूरी के बन रहा है बांध, किसान आंदोलन पर
Posted on 05 Nov, 2012 11:08 AM 1984 में जब पर्यावरण मंत्रालय नहीं था तब एक सादे कागज पर मंजूरी दी
ग्वालियर में निर्मल भारत यात्रा का भव्य आगाज
Posted on 31 Oct, 2012 03:33 PM

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश व मुख्यमंत्री आएंगे


ग्वालियर (म.प्र.)। देश के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता का अलख जगाने के लिये महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सेवाग्राम से शुरू निर्मल भारत यात्रा का बुधवार को ग्वालियर में भव्य आगाज होगा। केंद्रीय ग्रामीण मंत्री व वाश युनाइटेड एंड क्विकसैंड डिजायन स्टूडियो संगठन के संयुक्त तत्वाधान में चल रही यह यात्रा गुरुवार तक जिले में रहेगी। इन दो दिनों में मुरार के ग्राम पंचायत जलालपुर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट के सामने निर्मल भारत यात्रा के दो दिवसीय मेले का आयोजन होगा। मेले में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आएंगे।
खेती की पारम्परिक पद्धति की प्रासंगिकता
Posted on 29 Oct, 2012 09:47 AM मध्य प्रदेश में निवास करने वाली आदिम जनजाति बैगा पारम्परिक तौर पर
पहले पानी फिर निर्मल गांव
Posted on 15 Oct, 2012 05:10 PM समग्र स्वच्छता अभियान, मर्यादा अभियान, निर्मल ग्राम एवं अन्य कई नाम से ग्रामीण भारत को समग्र रूप से स्वच्छ बनाने का कार्य लंबे अर्से से चल रहा है, जिसमें एक महत्वपूर्ण घटक है - खुले में शौच खत्म करना। लेकिन क्या खुले में शौच को खत्म करना आसान है? इसका सकारात्मक जवाब मिलना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि अब तक देश में निर्मल ग्राम घोषित किए गए अधिकांश गांवों में लोग खुले में शौच आज भी जा रहे हैं।
जयराम रमेश कार्यकेरम में शिरकत करते हुए
खूनी भंडारा जो बुझा रहा है पीढ़ियों की प्यास लगातार बिना रुके बिना थके
Posted on 05 Oct, 2012 03:51 PM तकरीबन 100 फीट जमीन के नीचे दुनिया की एकमात्र जिंदा ऐसी सुरंग है जो अमृत जैसा पानी देती है। जो नापती है 4 किलोमीटर लंबा सफर। हैरान होने के लिए इतना ही काफी नहीं है। पिछले 400 सालों से इसने कई पीढ़ियों की प्यास बुझाई है। आज भी ये सुरंग लाखों लोगों की प्यास बुझा रही है।

ये जो आप कुओं की लंबी कतार देख रहे हैं ये कोई साधारण कुएं नहीं हैं। ये उसी खूनी भंडारे के निशान हैं
खूनी भंडारा का बाहरी हिस्सा
आग भेद नहीं करती
Posted on 04 Oct, 2012 04:15 PM विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन में बरती जा रही हृदयहीनता साफ दर्शा रही है कि सरकार एवं आम नागरिकों के मध्य खाई बढ़ती जा रही है। आवश्यकता इस बात की है कि आपसी समझबूझ से योजनाएं लागू की जाएं। प्रस्तुत आलेख विकास योजनाओं में हो रही अनिमितताओं को उजागर करने वाली तीन लेखों की श्रृंखला का अंतिम लेख है।
जनप्रतिनिधियों द्वारा जनविरोध
Posted on 04 Oct, 2012 03:44 PM जिसके पास थाली है,
हर भूखा आदमी,
उसके लिए, सबसे भद्दी
गाली है
- धूमिल

आखिरी लड़ाई की जद्दोजहद
Posted on 28 Sep, 2012 04:49 PM

बांध और विकास योजनाओं की नींव में पत्थर नहीं डले, बल्कि आदिवासियों और ग्रामीणों की हड्डियां डाली गई। आज तक भारत

मगर सत्ताधीशों को शर्म नहीं आती
Posted on 27 Sep, 2012 04:35 PM

मध्य प्रदेश सरकार कहती है हमने शिकायत निवारण केंद्र बना रखा है। उसमें आइए और अपनी शिकायत करिए। आंदोलन करने की को

जल सत्याग्रह: न्याय का आग्रह
Posted on 25 Sep, 2012 03:09 PM देश में चल रही बड़ी परियोजनाओं का दो कारणों से जनविरोध है। पहला ज्यादातर परियोजनाएं गांव, जंगल और नदियों, समुद्र के आसपास हैं और उन पर लोगों की आजीविका ही नहीं बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी निर्भर करती है इसलिए उन परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले लोग प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा चाहते हैं। वे एक एकड़ जमीन के बदले 10 लाख रुपए नहीं, बस उतनी ही जमीन चाहते हैं। वे एक सम्मानजनक पुनर्वास चाहते हैं। दूसरा, लोग यानी समाज जानता है कि यदि जंगल खत्म हो गए, नदियां सूख गईं और हवा जहरीली हो गई तो मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित घोघलगांव और खरदना गांव में 200 लोग 17 दिनों तक नर्मदा नदी में ठुड्डी तक भरे पानी में खड़े रहे। वे न तो कोई विश्व रिकार्ड बनाना चाहते थे और ना ही उन्हें अखबार में अपना चित्र छपवाना था। बल्कि विकास के नाम पर उनकी जलसमाधि दी जा रही थी, जिसके विरोध में उन्होंने जल सत्याग्रह शुरू किया। उनका कहना था कि यदि यह बांध देश के विकास के लिए बना है तो इससे उनके जीवन के अधिकार को क्यों खत्म किया जा रहा है। वैसे भी जमीन, पानी और प्राकृतिक संसाधन ही उनके जीवन के अधिकार के आधार हैं। मध्यप्रदेश में दो बड़े बांधों - इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर से बिजली बनती है और इनसे थोड़ी बहुत सिंचाई भी होती है। इन बांधों के दायरे के बाहर की दुनिया को इन बांधों से बिजली मिलती है और उनके घर इससे रोशन होते हैं। रेलगाड़ियां भी चलती हैं। नए भारत के शहरों को, उन उद्योगों को, जो रोजगार खाते हैं, मॉल्स और हवाई अड्डों को भी यही की बिजली रोशन करती है।
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